एआईआरएफ के अधिवेशन में रेल कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने सरकार को दिया अल्टीमेटम, केन्द्र की नीति मजदूर विरोधी : मुकेश गालव

एआईआरएफ के अधिवेशन में रेल कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने सरकार को दिया अल्टीमेटम, केन्द्र की नीति मजदूर विरोधी : मुकेश गालव

प्रेषित समय :18:57:14 PM / Wed, Apr 20th, 2022

जबलपुर. केन्द्र सरकार की नीति लगातार कर्मचारियों के साथ-साथ हर वर्ग के खिलाफ है. वह रेल कर्मचारियों की न्यू पेंशन स्कीम हटाकर गारंटेड पेंशन स्कीम, बड़े उद्योगपति के हित में लेबर कोड लाना, मान्यता के चुनाव को भी लगातार टाल रही है. आल इंडिया रेलवेमैंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के उज्जैन में गत 12 व 13 अप्रैल को आयोजित 97वें अधिवेशन में इन तमाम मुद्दों को उठाकर केंद्र सरकार व रेल मंत्रालय को अल्टीमेटम दिया है कि रेल कर्मचारियों की मांगों को हर हाल में पूरा करना ही होगा, अन्यथा फेडरेशन इसके लिए आर-पार का संघर्ष करने बाध्य होगी. यह बात एआईआरएफ के असिस्टेंट जनरल सैक्रेट्री (एजीएस) व डबलूसीआरईयू के महामंत्री कॉम. मुकेश गालव ने पत्रकार वार्ता में कही. इस मौके पर यूनियन  के जोनल कोषाध्यक्ष इरशाद खान, मंडल अध्यक्ष बीएन शुक्ला, मंडल सचिव रोमेश मिश्रा व मनीष यादव मौजूद रहे.

एआईआरएफ के उज्जैन अधिवेशन में फेडरेशन के एजीएस निर्वाचित होने पर पहली बार जबलपुर आगमन पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए श्री गालव ने कहा कि अधिवेशन में 9 सूत्रीय प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसमें सामाजिक, आर्थिक सहित रेल कर्मचारियों की मांगें शामिल हैं. यह प्रस्ताव साल भर फेडरेशन, यूनियंस के लिए एक आइना काम करेगा और इसी के मुताबिक साल भर की आंदोलन की रूपरेखा तैयार होगी.

सरकार नहीं चेती तो आर्थिक हालत श्रीलंका से बद्तर हो सकते हैं

श्री गालव ने कहा कि एआईआरएफ के अधिवेशन में आर्थिक सामाजिक प्रस्ताव में स्पष्ट कहा गया है कि देश की वर्तमान में जो आर्थिक हालत है, जीडीपी लगातार गिर रही है, महंगाई बढ़ रही है, यह अच्छा संकेत नहीं है, केंद्र सरकार की आर्थिक संबंधी जो नीति व रणनीति है, वह इसे सही ढंग से नियंत्रित नहीं कर पा रही है, ऐसे ही हालात बने रहे तो आने वाले समय में भारत की आर्थिक स्थिति श्रीलंका से भी खराब हो सकती है. भारत सरकार को तत्काल गंभीर कदम उठाने होंगे.

एनपीएस हटाओ, गारंटेड पेंशन स्कीम लाओ

श्री गालव के मुताबिक एआईआरएफ ने सरकार को स्पष्ट कहा है कि रेल कर्मचारियों के लिए नेशनल पेेंशन स्कीम (एनपीएस) को हटाकर गारंटेड पेंशन स्कीम लाना होगा. श्री गालव ने कहा कि एनपीएस हटाने के लिए फेडरेशन, यूनियन पिछले काफी समय से लगातार संघर्ष करती रही है, जिसके बाद यह स्थिति बनी है कि देश के आधे राज्य एनपीएस हटाकर गारंटेड पेंशन स्कीम लागू करने का निर्णय ले चुकी है या उस पर गंभीरता  से विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि यह रेल कर्मचारियों के दबाव का ही परिणाम है कि अभी तक सत्ताधारी दल भाजपा के किसी मंत्री व पदाधिकारियों ने एनपीएस पर कोई चर्चा नहीं की, लेकिन अब वक्त बदल रहा है. राजनीतिक चेतना बढ़ रही है, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में बयान दिया है कि प्रधानमंत्री एनपीएस मामले पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और पीएमओ इस पर विचार-विमर्श कर रहा है.

एनपीएस अच्छा तो सांसद, विधायकों पर क्यों नहीं  लागू

श्री गालव ने सवाल उठाया कि भारत सरकार एनपीएस को अच्छा बता रही है, लेकिन यदि यह इतना ही अच्छा है तो वह सांसद, विधायकों पर क्यों नहीं इसे लागू करती, उसे तो कुछ साल के प्रतिनिधित्व करने  पर ही गारंटेड पेंशन की सुविधा मिल रही है. उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में पहले एनपीएस लागू था, लेकिन जबर्दस्त विरोध होने पर 2009 में एनपीएस वापस ले लिया, श्री गालव ने कहा कि रेल कर्मचारियों की सेवा भी सेना से किसी भी तरह कम नहीं है, रेल कर्मचारी भी लाखों यात्रियों को सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाने के लिए लगातार काम करता है, हर साल 500 से 600 कर्मचारी रेल कत्र्तव्य करते समय शहीद हो रहे हैं. इसलिए रेल कर्मचारियों को गारंटेड पेंशन की सुविधा हर हाल में मिलना ही चाहिए.

रेल कर्मचारी का दूसरे जोनल रेलवे में 10 साल तबादला नहीं हो सकेगा

श्री गालव ने कहा कि रेल मंत्रालय मनमाफिक निर्णय ले रहा है, वह मान्यता प्राप्त संगठन से भी कर्मचारियों के संबंध में लेने वाले नीतिगत निर्णय पर कोई चर्चा नहीं कर रहा है. ऐसा ही निर्णय हाल ही में रेल मंत्रालय ने लिया है, जिसमें किसी कर्मचारी की नौकरी लगने पर वह 10 साल तक दूसरी रेलवे (जोन) में तबादला नहीं करा सकता. इस निर्णय का विरोध फेडरेशन, यूनियन ने किया है, क्योंकि इससे कर्मचारी अपने घर के समीप पहुंचने में बड़ा स्पीड ब्रेकर लगा दिया गया है, 10 साल कर्मचारी आवेदन करेगा तो उसे काफी नुकसान होगा, उसे पदोन्नति व सीनियारिटी का भी नुकसान होगा.

मान्यता के चुनाव शीघ्र हों

एआईआरएफ ने रेल मंत्रालय से मांग की है कि श्रमिक संगठन की मान्यता के चुनाव तत्काल कराये जाएं, रेलवे में यह चुनाव 2019 में होना था, लेकिन साढ़े तीन साल होने को हैं, सरकार इस पर ठोस निर्णय नहीं ले पा रही है, वह अपने जेबी संगठन को मान्यता दिलाने के लिए तरह तरह  के जतन कर रही है और नियमों में बदलाव कर रही है. फेडरेशन ने स्पष्ट किया है कि माननीय न्यायालय के निर्देश पर शुरु हुए मान्यता चुनाव, तत्काल करायें जाएं, ताकि रेल कर्मचारी अपना  श्रमिक संगठन चुन सकें.

मौद्रीकरण बनाम निगमीकरण बनाम निजीकरण

एआईआरएफ के एजीएस श्री गालव ने बताया कि सरकार रेलवे सहित तमाम सरकारी संपत्तियां बेचने पर आमादा है, वह पहले निजीकरण, निगमीकरण का नाम देती  रही, अब बदलकर मौद्रीकरण कर दिया है. सरकार  ने रेलवे से इस निर्णय के हिसाब से डेढ़ लाख करोड़ रुपए जुटाने की तैयारी की है, जिसमें 15 रेलवे स्टेडियम, 400 रेलवे स्टेशन, 150 ट्रेन, रेलवे की खाली जमीन को लीज पर देकर इस राशि को जुटाना चाहती है. जिसका विरोध फेडरेशन ने किया है और कहा है कि मौद्रीकरण का नाम देकर इसे सीधे अपने खास उद्योगपतियों  को औने-पौने दामों पर रेल संपत्ति बेचने का जतन है, जिसका विरोध किया जायेगा. श्री गालव ने इस मुद्दों के अलावा रिटायर रेल कर्मचारियों की पेंशन की समस्या,  पारिवारिक पेंशन समेत अन्य मुद्दों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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