महिलाओं की कुंडली में नौ ग्रहों का फल

महिलाओं की कुंडली में नौ ग्रहों का फल

प्रेषित समय :21:25:09 PM / Tue, May 3rd, 2022

सूर्य

 शुभ: अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देती है.

अशुभ सूर्य: 

जब यही सूर्य उसकी कुंडली में नीच का हो या दूषित हो जाये तो महिला अपने दिल पर एक बोझ सा लिए फिरती है. अन्दर से कभी भी खुश नहीं रहती और आस -पास का माहौल भी तनाव पूर्ण बनाये रखती है. जो घटना अभी घटी ही ना हो उसके लिए पहले ही परेशान हो कर दूसरों को भी परेशान किये रहती है.

बात-बात पर शिकायतें, उलाहने उसकी जुबान पर तो रहते ही हैं, धीरे -धीरे दिल पर बोझ लिए वह एक दिन रक्त चाप की मरीज बन जाती है और न केवल वह बल्कि उसके साथ रहने वाले भी इस बीमारी के शिकार हो जाते है.

दूषित सूर्य वाली महिलाएं अपनी ही मर्जी से दुनिया को चलाने में यकीन रखती हैं सिर्फ अपने नजरिये को ही सही मानती हैं दूसरा चाहे कितना ही सही हो उसे विश्वास नहीं होगा.

सूर्य का आत्मा से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह अगर दूषित या नीच का हो तो दिल डूबा-डूबा सा रहता है जिस कारण चेहरा निस्तेज सा होने लगता है.
.
शुभ चन्द्र:

 चंद्रमा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. स्त्री की कुंडली में इसका महत्व और भी अधिक है.

चन्द्र राशि से स्त्री का स्वभाव, प्रकृति, गुण -अवगुण आदि निर्धारित होते है.

चंद्रमा माता, मन, मस्तिष्क, बुद्धिमत्ता, स्वभाव, जननेन्द्रियाँ, प्रजनन सम्बंधी रोगों, गर्भाशय अंडाशय, मूत्र -संस्थान, छाती और स्तन का कारक है..इसके साथ ही स्त्री के मासिक -धर्म ,गर्भाधान एवं प्रजनन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं.

अच्छे चंद्रमा की स्थिति में कोई भी महिला खुश -मिजाज होती है. चेहरे पर चंद्रमा की तरह ही उजाला होता है. यहाँ गोरे रंग की बात नहीं की गयी है क्योंकि चंद्रमा की विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है.

कुंडली का अच्छा चंद्रमा किसी भी महिला को सुहृदय ,कल्पनाशील और एक सटीक विचारधारा युक्त करता है.

अच्छा चन्द्र महिला को धार्मिक और जनसेवी भी बनाता है.

अशुभ चन्द्र:

 किसी महिला की कुंडली मंे यही चन्द्र नीच का हो जाये या किसी पापी ग्रह के साथ या अमावस्या का जन्म को या फिर क्षीण हो तो महिला सदैव भ्रमित ही रहेगी. हर पल एक भय सा सताता रहेगा या उसको लगता रहेगा कोई उसका पीछा कर रहा है या कोई भूत -प्रेत का साया उसको परेशान कर रहा है. कमजोर या नीच का चन्द्र किसी भी महिला को भीड़ भरे स्थानों से दूर रहने को उकसाएगा और एकांतवासी कर देता है धीरे-धीरे.

महिला को एक चिंता सी सताती रहती है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है. बात-बात पर रोना या हिस्टीरिया जैसी बीमारी से भी ग्रसित हो सकती है. बहुत चुप रहने लगती है या बहुत ज्यादा बोलना शुरू कर देती है. ऐसे में तो घर-परिवार और आस पास का माहौल खराब होता ही है.

बार-बार हाथ धोना, अपने बिस्तर पर किसी को हाथ नहीं लगाने देना और देर तक नहाना भी कमजोर चन्द्र की निशानी है.

ऐसे में जन्म-कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करवाकर उपाय करवाना चाहिए.

शुभ मंगल:

 जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है. शुभ मंगल से स्त्री अनुशासित, न्यायप्रिय,समाज में प्रिय और सम्मानित होती है.

अशुभ मंगल

 जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और हृदय हीन भी बना देता है. मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना, उग्रता और आक्रामकता लाता है इसीलिए जन्म-कुंडली में विवाह से संबंधित भावों--जैसे द्वादश, लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम व अष्टम भाव में मंगल की स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है. ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है. लेकिन जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुजदिल होती है,थोड़ी सी डरपोक भी होती है. मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है.

शुभ बुध 

 बुध ग्रह एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है. यह किसी भी स्त्री में बुद्धि, निपुणता, वाणी ..वाकशक्ति, व्यापार, विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक कारक है. यह द्विस्वभाव, अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ-साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह के साथ स्थित होता है, उसी प्रकार के फल देने लगता है.

जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी ऊँचाइयों को छूती हैं, अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान् और चतुर और एक अच्छी सलाहकार साबित होती हंै. व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी समस्याओं का हल निकाल लेती हैं.

अशुभ बुध  

अगर यह पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी, अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं कि कानों की कच्ची होती है. जो घटना घटित भी न हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है.

बुध बुद्धि का परिचायक भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है.

शुभ बृहस्पति: 

बृहस्पति एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है. इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और बृहस्पति देवताओं के गुरु भी हैं.बृहस्पति बुद्धि, विद्वत्ता, ज्ञान, सदगुणों, सत्यता, सच्चरित्रता, नैतिकता, श्रद्धा, समृद्धि, सम्मान, दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है. किसी भी स्त्री के लिए यह पति, दाम्पत्य,पुत्र और घर-गृहस्थी का कारक होता है.

शुभ बृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक,न्याय प्रिय और ज्ञानवान, पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता है. स्त्री विदुषी होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है.

अशुभ बृहस्पति: 

अशुभ ग्रहों के साथ या दूषित बृहस्पति स्त्री को स्वार्थी, लोभी और क्रूर विचारधारा की बना देता है.दाम्पत्य-जीवन भी दुखी होता है और पुत्र-संतान की भी कमी होती है. पेट और आँतों से सम्बन्धित रोग भी पीड़ा दे सकते है. कई बार पति-पत्नी अलग-अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते.

शुभ शुक्र:

 शुक्र एक शुभ एवं रजोगुणी ग्रह है. यह विवाह, वैवाहिक जीवन, प्यार, रोमांस, जीवन साथी तथा यौन सम्बन्धों का नैसर्गिक कारक है. यह सौंदर्य, जीवन का सुख, वाहन, सुगंध और सौन्दर्य प्रसाधन का कारक भी है. किसी भी स्त्री की कुंडली में जैसे बृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वैसे ही शुक्र भी दाम्पत्य जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है. कुंडली का अच्छा शुक्र चेहरा देखने से ही प्रतीत हो जाता है. यह स्त्री के चेहरे को आकर्षण का केंद्र बनाता है. यहाँ यह जरुरी नहीं कि स्त्री का रंग गोरा है या सांवला. सुन्दर -नेत्र और सुंदर केशराशि से पहचाना जा सकता है. स्त्री का शुक्र शुभ ग्रहों के सान्निध्य में है तो वह सौंदर्य-प्रिय भी होती है. अच्छे शुक्र के प्रभाव से स्त्री को हर सुख सुविधा प्राप्त होती है. वाहन, घर, ज्वेलरी, वस्त्र सभी उच्च कोटि के. किसी भी वर्ग की औरत हो, उच्च, मध्यम या निम्न उसे अच्छा शुक्र सभी वैभव प्रदान करता ही है. यहाँ यह कहना भी जरूरी है कि अगर आय के साधन सीमित भी हांे तो भी वह ऐशो आराम से ही रहती है. अच्छा शुक्र किसी भी स्त्री को गायन, अभिनय, काव्य-लेखन की ओर प्रेरित करता है. चन्द्र के साथ शुक्र हो तो स्त्री भावुक होती है और अगर साथ में बुध का साथ भी मिल जाये तो स्त्री लेखन के क्षेत्र में पारंगत होती है और साथ ही वाक्पटु भी, बातों में उससे शायद ही कोई जीत पाता हो.

अच्छा शुक्र स्त्री में मोटापा भी देता है. जहाँ बृहस्पति स्त्री को थुलथुला मोटापा देकर अनाकर्षक बनाता है वहीं शुक्र से आने वाला मोटापा स्त्री को और भी सुन्दर दिखाता है. यहाँ हम शुभा मुद्गल और किरण खेर, फरीदा जलाल का उदाहरण दे सकते हैं.

अशुभ शुक्र:

 कुंडली का बुरा शुक्र या पापी ग्रहों का सान्निध्य या कुंडली के दूषित भावों का साथ स्त्री में चारित्रिक दोष भी उत्पन्न करवा सकता है. यह विलम्ब से विवाह, कष्टप्रद दाम्पत्य जीवन, बहु विवाह, तलाक की ओर भी इशारा करता है. अगर ऐसा हो तो स्त्री को हीरा पहनने से परहेज करना चाहिए. कमजोर शुक्र स्त्री में मधुमेह, थायराइड, यौन रोग, अवसाद और वैभव हीनता लाता है.

शुभ शनि:

 शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है. यह सबसे धीमा चलने वाला, शीतल, निस्तेज, शुष्क, उदास और शिथिल ग्रह है. इसे वृद्ध ग्रह माना गया है. इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है. यह कुंडली में कान, दांत, अस्थियों, स्नायु, चर्म, शरीर में लौह तत्व व वायु तत्व, आयु, जीवन, मृत्यु , जीवन शक्ति, उदारता, विपत्ति, भूमिगत साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक है. किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे उदार, लोकप्रिय बनाता है और तकनीकी ज्ञान में अग्रणी रखता है. वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है. राजनीति में भी उच्च पद प्राप्त करती है.

अशुभ शनि:

 दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है और निम्न स्तर के जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है. दूषित शनि स्त्री को ईष्र्यालु और हिंसक भी बना देता है. यह स्त्री में निराशा, उदासीनता और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग जाती है. स्त्रियों में कमर-दर्द, घुटनों का दर्द या किसी भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि का ही परिणाम है. चंद्रमा के साथ शनि स्त्री को पागलपन का रोग तक दे सकता है.

शुभ राहु:

 राहु एक तमोगुणी म्लेच्छ और छाया ग्रह माना गया है. इसका प्रभाव शनि की भांति ही होता है. यह तीक्ष्ण बुद्धि, वाकपटुता, आत्मकेंद्रिता, स्वार्थ, विघटन और अलगाव, रहस्य, मति भ्रम, आलस्य छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं, जुआ और झूठ का कारक है. राहु से प्रभावित स्त्री एक अच्छी जासूस या वकील, अच्छी राजनीतिज्ञ हो सकती है. वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेती है. विदेश यात्राएं बहुत करती है. कुंडली में राहु जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है. अगर बृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो स्त्री को ज्योतिष में रूचि होगी. शनि के प्रभाव में हो तो तांत्रिक-विद्या में निपुण होगी. चंद्रमा के साथ हो तो वह कई सारे वहमों में उलझी रहेगी, जैसे उसे कुछ दिखाई दे रहा है (भूत-प्रेत आदि)...., या भयभीत रहती है. अगर वह ऐसा कहती है तो गलत नहीं कह रही होती क्योंकि अगर स्त्री के लग्न में राहु हो या राहु की दशा-अन्तर्दशा में ऐसी भ्रम की स्थिति हो जाया करती है.

अशुभ राहु:

 खराब राहु से प्रभावित स्त्री की वाणी में कटुता आ जाती है. वह थोड़ी घमंडी भी हो जाया करती है. भ्रमित रहने के कारण वह कई बार सही गलत की पहचान भी नहीं कर पाती जिसके फलस्वरूप उसका दाम्पत्य जीवन भी नष्ट होते देखा गया है. राहु के दूषित प्रभाव के कारण स्त्री चर्म -रोग, मति-भ्रम, अवसाद रोग से ग्रस्त हो सकती है.

शुभ केतु: 

केतु ग्रह उष्ण, तमोगुणी पाप ग्रह है.केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है. किसी स्वगृही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चैगुना कर देता है.यह नाना, ज्वर, घाव, दर्द, भूत-प्रेत, आंतों के रोग, बहरापन और हकलाने का कारक है. यह मोक्ष का कारक भी माना जाता है. केतु मंगल की भांति कार्य करता है. यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दोगुना हो जाता है. राहु की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है. जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है. केतु से प्रभावित महिला कुछ भ्रमित सी रहती है. शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्योंकि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहु इस देह का कटा सिर होता है. अच्छा केतु महिला को उच्च पद, समाज में सम्मानित, तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है.

अशुभ केतु: 

बुरा केतु महिला की बुद्धि भ्रमित कर उसे सही निर्णय लेने में बाधित करता है. चर्म रोग से ग्रसित कर देता है. काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है. वाणी भी कटु कर देता है. केतु का प्रभाव अलग-अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण ज्यादा या कम हो सकता है.

यदि आपका जीवन भी मुश्किल दौर से गुजर रहा है या आपसी सम्बन्धों में खटास पैदा हो रही है तो हो सकता है आप किसी बुरे ग्रह की दशा में हों.

अपनी कुंडली के अनुसार ही ग्रहों के उपाय लिया करें. कई बार क्रूर ग्रह की महादशा में साधारण उपाय विपरीत फल दे जाते हैं. आप करेंगे कुछ लेकिन होगा कुछ.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 30 अप्रैल 2022 तक का साप्ताहिक राशिफल

जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 23 अप्रैल 2022 तक का साप्ताहिक राशिफल

जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 16 अप्रैल 2022 तक का साप्ताहिक राशिफल

Leave a Reply