नई दिल्ली. धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों के लिए सरकार जल्द एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना कर सकती है। दरअसल केंद्र ने जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत, ईसाई और इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना के लिए अंतर-मंत्रालयी चर्चा के आधार पर एक कैबिनेट प्रस्ताव तैयार किया है। प्रस्ताव पर उच्च-स्तरीय चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि इस चर्चा में दलित ईसाइयों को विशेष महत्व दिया जा रहा है। जनवरी से इस मुद्दे पर अंतर-मंत्रालयी चर्चा शुरू हुई थी और हाल ही में समाप्त हुई।
काफी हद तक इस बात पर सहमति बनी कि धर्मांतरित दलितों की स्थिति और जीवन पर एक गहन, साक्ष्य आधारित और डेटा-समर्थित अध्ययन की आवश्यकता है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी संकेत दिया था। उसी के आधार पर दलित धर्मान्तरितों की सामाजिक-आर्थिक और रहने की स्थिति का आकलन करने के लिए तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया जाएगा।
धर्मांतरित दलितों को मिलेगा आरक्षण का लाभ?
पैनल की रिपोर्ट सरकार की स्थिति के लिए महत्वपूर्ण होगी कि क्या धर्मांतरित दलितों को आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जो अदालत में विचाराधीन भी है। दरअसल 2020 में ईसाई समूहों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें मांग की गई थी कि एससी का दर्जा 'धर्म तटस्थ' बनाया जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया है। फिलहाल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलित नौकरी और शिक्षा में आरक्षण के पात्र हैं। संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार, यदि ईसाई और मुस्लिम धर्मों में परिवर्तित हो जाते हैं, तो दलित आरक्षण खो देते हैं। आजादी के बाद से सरकारों ने तर्क दिया है कि अनुसूचित जाति की स्थिति केवल हिंदू धर्म में प्रचलित अस्पृश्यता की प्रथा से जुड़ी हुई है। बाद में सिख धर्म और बौद्ध धर्म में धर्मान्तरित लोगों को शामिल करने के लिए संशोधन किए गए।
क्या थी रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट
रंगनाथ मिश्रा आयोग की 2007 की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के पैरा 3 को धर्म से अनुसूचित जाति की स्थिति को अलग करने और अनुसूचित जनजातियों के मामले में अनुसूचित जाति को पूरी तरह से धर्म-तटस्थ बनाने के लिए हटा दिया जाना चाहिए। सरकार ने इस आधार पर सिफारिश को स्वीकार नहीं किया कि इस विषय पर कोई क्षेत्र अध्ययन या डेटा नहीं था और न ही आयोग ने एससी सूची में इस तरह के समावेशन के प्रभाव का आकलन किया था।
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