नई दिल्ली. बारिश में मच्छरजनित बीमारियों के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल सरकार को मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए दोषी लोगों व संस्थानों पर लगाए गए जुर्माने की राशि को 5000 रुपये से बढ़ाकर 50000 रुपये करने पर विचार का निर्देश दिया है. अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह इस संबंध में मुकदमों की भरमार रोकने के लिए मौके पर ही जुर्माना लगाने पर विचार करे.
दिल्ली में बड़े पैमाने पर मच्छरों के प्रजनन को रोकने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने अरविंद केजरीवाल सरकार को यह निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि यदि मौके पर ही जुर्माना नहीं लगाया जाता है तो एक निवारक के रूप में जुर्माना लगाने की प्रणाली की प्रभावशीलता पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी और नियमों उल्लंघन करने वालों का सिर्फ चालान करने से अदालतों में ऐसे मुकदमों का बोझ बढ़ेगा.
पीठ ने कहा कि नगर निगमों ने जहां जुर्माना 500 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये करने और मौके पर जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया था, वहीं दिल्ली सरकार के वकील ने बताया कि जुर्माना 500 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये करने का प्रस्ताव है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर लोगों के मन में उनके परिसर में मच्छरों के प्रजनन की अनुमति नहीं देने के लिए डर बनाना है, तो हमारे विचार में राज्य सरकार को मौके पर ही जुर्माना लगाने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
अदालत ने आगे कहा कि हमारा यह भी विचार है कि जहां संस्थान इस तरह के आचरण के लिए दोषी पाए जाते हैं, वहां जुर्माने की राशि केवल 5,000 तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि 50,000 उच्चतम स्तर पर होनी चाहिए ताकि लोगों के मन में डर बने. आपको बता दें कि इस संबंध में गत मार्च में उच्च न्यायालय ने कानून में संशोधन और जुर्माना बढ़ाने के पहलू पर दिल्ली सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सभी स्थानीय निकायों, अधिकारियों और विभागों को वेक्टर जनित बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए विकसित किए गए सामान्य प्रोटोकॉल के संदर्भ में अपने-अपने दायित्वों का सख्ती से पालन करने और उन्हें पूरा करने का भी निर्देश दिया था. तब अदालत ने कहा था कि नगर निगमों में डीएचओ, एनडीएमसी में सीएमओ और दिल्ली छावनी बोर्ड में सहायक स्वास्थ्य अधिकारी सामान्य प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे.
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि एमसीडी के आयुक्त और एनडीएमसी और डीसीबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रमश: डीएचओ, सीएमओ और एएचओ के कामकाज की निगरानी के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे. अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड को भी चार सप्ताह का समय प्रदान किया है. साथ ही कोर्ट ने डीडीए को इमारतों में मच्छरदानी लगाना अनिवार्य बनाने के सुझाव की जांच करने और उस संबंध में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है. इस मामले में अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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