गायत्री मन्त्र के जाप से आपकी स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती

गायत्री मन्त्र के जाप से आपकी स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती

प्रेषित समय :20:02:04 PM / Fri, Jun 10th, 2022

गायत्री जयंती- 11, जून, 2022, गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं. इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है. मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है.

कौन हैं गायत्री,

चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं. वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है. माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है. इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है. मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है.

कैसे हुआ गायत्री का विवाह,

कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे. मान्यता है कि यदि धार्मिक कार्यों में पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता है लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्रि मौजूद नहीं थी इस कारण उन्होंनें यज्ञ में शामिल होने के लिये वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया. उसके पश्चात एक विशेष वर्ग ने देवी गायत्री की आराधना शुरु कर दी.

कैसे हुआ गायत्री का अवतरण,

माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ. मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की. आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाये उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया.

कब मनाई जाती है 

गायत्री जयंती की तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत सामने आते हैं. कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा और गायत्री जयंती की तिथि एक समान बताई जाती है तो कुछ इसे गंगा दशहरे से अगले दिन यानि ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते हैं. वहीं श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती के उत्सव को मनाया जाता है. श्रावण पूर्णिमा के दिन गायत्री जयंती को अधिकतर स्थानों पर स्वीकार किया जाता है. लेकिन अधिक मास में गंगा दशहरा अधिक शुक्ल दशमी को ही मनाया जाता है जबकि गायत्री जयंती अधिक मास में नहीं मनाई जाती.


गायत्री की महिमा, , , , गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं. वेद, शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं.

अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है.

महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है. यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनू (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है. जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है.

गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है. गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है. जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है जैसे केंचुली से छूटने पर सांप होता है.

इसी दिन गंगा दशहरा मनाया जाता है. इस दिन तप की प्रतिमूर्ति भागीरथ ने गंगा का अवतरण किया था. घोर तप के फलस्वरूप ही वह प्यासी जनता को तृप्त कर सके थे. भागीरथ की आत्मा हमें पुकार-पुकार कर कह रही है केवल योजनाओं और बातों से काम न चलेगा वरन् काम के लिए कमर कसनी होगी और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने जीवनों को खपाना होगा तभी गंगा प्रसन्न होगी और मुँह माँगा वरदान देंगी. अनैतिकता झूठ, छल, कपट, बेईमानी, नास्तिकता, लोभ, स्वार्थीपन, अन्धविश्वास के इस युग में ज्ञान गंगा को अवतरित करने के लिए घोर परिश्रम करना होगा. गायत्री माता को घर-घर पहुँचाने के लिए परिजनों को जो कष्ट मुसीबतें और संघर्षों का सामना करना पड़ा वैसे ही समय परिश्रम और तप की बलि अब भी देनी होगी. एक शाखा में एक वेद की स्थापना तो सरल है. कुछ सदस्य मिलकर इस कार्य को कर सकते हैं गाँव मुहल्ले से चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं. परन्तु यहाँ तक हमें सीमित नहीं रहना है. हमें तो सारे विश्व को वेद ज्ञान ने सींचना है. संसार में वेदों की धूम मचा देनी है और एक बार फिर दिखा देना है कि भारत जगतगुरु है और सारे विश्व को अध्यात्म ज्ञान देने का अधिकारी है, वह सबका नेतृत्व करेगा और वेदों की अद्वितीय महत्ता को और स्थापना करेगा. गायत्री का न अक्षर हमें यह शिक्षा देता है कि जो कुछ तुम्हारे पास है परहित के लिए लुटा दो. अपने पास कुछ मत रखो. वेद सृष्टि का आदि ज्ञान है. हमें इस बीज को सब ओर बखेर देना हैं ताकि उससे सुन्दर फल देने वाले कल्याणकारी और शान्तिदायक पेड़ उगे और उसकी छाया में बैठकर विश्व

सुख और समृद्धि का अनुभव करे.

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्.

गायत्री मंत्र से सभी सनातनी लोग भली-भांती परिचित होते हैं. बचपन में स्कूल के दिनों से ही इस मन्त्र का जाप शुरू करवा दिया जाता है और जीवन के अंतिम पड़ाव ‘बुढ़ापे’ तक यह जप चलता रहता है. हिन्दू धर्म का सबसे सरल मन्त्र यही है और वेदों में इस मन्त्र को ईश्वर की प्राप्ति का मन्त्र बताया गया है.

यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3. 62. 10  के मेल से गायत्री मन्त्र का निर्माण हुआ है. इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है.

गायत्री मन्त्र का शाब्दिक अर्थ

ॐ - सर्वरक्षक परमात्मा

भू: - प्राणों से प्यारा

भुव: - दुख विनाशक

स्व: - सुखस्वरूप है

तत् -उस

सवितु: - उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक

वरेण्य - वरने योग्य

भुर्ग: - शुद्ध विज्ञान स्वरूप का

देवस्य - देव के

धीमहि - हम ध्यान करें

धियो - बुद्धियों को

य: - जो

न: - हमारी

प्रचोदयात - शुभ कार्यों में प्रेरित करें.

भावार्थ : उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे,  दु:खनाशक,  सुखस्वरूप श्रेष्ठ,  तेजस्वी,  पापनाशक,  देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें  तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें.

गायत्री मन्त्र का लाभ...गायत्री मंत्र के निरंतर जाप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है. यदि घर का कोई सदस्य बीमार है या घर में सुख-शांति नहीं आ रही है तो प्रतिदिन घंटा-आधा घंटा इस मन्त्र का जाप किया जाए. बीमार व्यक्ति को दवा देने से पहले, (व्यक्ति के पास बैठकर एवं दवा को हाथ में लेकर) इस मन्त्र के जाप से लाभ प्राप्त हो सकता है. दैवीय कृपा प्राप्त करने और धन प्राप्त करने के लिए भी यह मन्त्र शुभ बताया गया है.

अगर आप विद्यार्थी हैं तो इस मन्त्र के जाप से आपकी स्मरण शक्ति भी बढ़ सकती है. ब्रह्मचार्य की रक्षा के लिए भी गायत्री मन्त्र उपयोगी बताया गया है. अब क्योकि इस मन्त्र की शुरुआत ही ॐ से होती है तो मस्तिष्क के शान्ति के लिए यह मन्त्र अच्छा रहता है. आप बेशक किसी भी ईष्ट देव की पूजा करते हैं, पूजा के प्रारंभ में आप गायत्री मन्त्र का जाप कर सकते हैं. यह शुरूआती बीज मन्त्र भी माना जाता है.

ध्यान रखें कि गायत्री मंत्र का जाप हमेशा रुद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए

गायत्री वन्दना 

ॐकाररूपा त्रिपदा त्रयी च त्रिदेववन्द्या त्रिदिवाधिदेवी.

त्रिलोककर्त्री त्रितयस्य भर्त्री त्रैकालिकी सङ्कलनाविधात्री ॥ १॥

त्रैगुण्यभेदात् त्रिविधस्वरूपा त्रैविध्ययुक्तस्य फलस्य दात्री.

तथापवर्गस्य विधायिनी त्वं दयार्द्रदृक्कोणविलोकनेन ॥ २॥

त्वं वाङ्मयी विश्ववदान्यमूर्तिर्विश्वस्वरूपापि हि विश्वगर्भा.

तत्त्वात्मिका तत्त्वपरात्परा च दृक्तारिका तारकशङ्करस्य ॥ ३॥ 

विश्वात्मिके विश्वविलासभूते विश्वाश्रये विश्वविकाशधामे.

विभूत्यधिष्ठात्रि विभूतिदात्रि पदे त्वदीये प्रणतिर्मदीया ॥ ४॥

 भोगस्य भोक्त्री करणस्य कर्त्री धात्वाव्ययप्रत्ययलिङ्गशून्या.

ज्ञेया न वेदैर्न पुराणभेदैर्ध्येया धिया धारणयादिशक्तिः ॥ ५॥ 

नित्या सदा सर्वगताऽप्यलक्ष्या विष्णोर्विधेः शङ्करतोऽप्यभिन्ना.

शक्तिस्वरूपा जगतोऽस्य शक्तिर्ज्ञातुं न शक्या करणादिभिस्त्वम् ॥ ६॥

त्यक्तस्त्वयात्यन्तनिरस्तबुद्धिर्नरो भवेद् वैभवभाग्यहीनः.

हिमालयादप्यधिकोत्रतोऽपि जनैस्समस्तैरपि लङ्घनीयः ॥ ७॥ 

शिवे हरौ ब्रह्मणि भानुचन्द्रयोश्चराचरे गोचरकेऽप्यगोचरे.

सूक्ष्मातिसूक्ष्मे महतो महत्तमे कला त्वदीया विमला विराजते ॥ ८॥

सुधामरन्दं तव पादपद्मं स्वे मानसे धारणया निधाय.

बुद्धिर्मिलिन्दीभवतान्मदीया नातः परं देवि वरं समीहे ॥ ९॥

दीनेषु हीनेषु गतादरेषु स्वाभाविकी ते करुणा प्रसिद्धा.

अतः शरण्ये शरणं प्रपन्नं गृहाण मातः प्रणयाञ्जलिं मे ॥ १०॥

इति गायत्रीवन्दना समाप्ता ॥

गायत्री आरती 

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता.

आदि शक्ति तुम, अलख निरञ्जन, जग पालन कर्त्री.

दुःख शोक भय, क्लेश कलह, दारिद्र्य दैन्य हर्त्री ॥

ब्रह्म रूपिणी, प्रणतपालिनी, जगतधातृ अम्बे.

भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ॥

भय हारिणी, भव तारिणी अनघे, अज आनन्द राशी.

अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ॥

कामधेनु सतचित आनन्दा, जय गङ्गा गीता.

सविता की शाश्वती शक्ति तुम, सावित्री सीता ॥

ऋग्, यजु, साम, अथर्व प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे.

कुण्डलिनी सहस्रार, सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ॥

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी.

जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला कल्याणी ॥

जननी हम हैं दीन हीन, दुःख दारिद के घेरे.

यदपि कुटिल कपटी कपूत, तौ बालक हैं तेरे ॥

स्नेह सनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै.

बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै ॥

काम क्रोध, मद लोभ दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये.  

शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ॥

तुम समर्थ सब भौति तारिणी, तुष्टि पुष्टि त्राता.

सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता ॥ 

जयति जय गायत्री माता. जयति जय गायत्री माता ॥

Koti Devi Devta 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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