श्रीजगन्नाथ ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा जिसे देव स्नान पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता

श्रीजगन्नाथ ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा जिसे देव स्नान पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता

प्रेषित समय :20:58:22 PM / Mon, Jun 13th, 2022

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 14 जून दिन मंगलवार को है आज ही के दिन भगवान श्रीजगन्नाथ अपने गर्भगृह से स्नान करने के लिए बाहर आते हैं. कल से 15  दिन तक ठाकुर जी के दर्शन बंद रहेंगे एवं रथयात्रा के दिन श्री जगन्नाथ जी सभी को दर्शन देने फिर से श्रीमंदिर के बाहर पधारेंगे.
भाव यह है कि ज्वर आने पर ठाकुर जी के दर्शन कल से अब 15 दिन नही हो पाएंगे क्यों कि भक्तों के लाडले जगन्नाथ जी कल अपनी मौसी के यहाँ चले जाएंगे. इनकी नित्य सेवा (इनको लाड से श्रृंगार करना भोग राग सेवा ) सब होगी तो नित्य की भांति ही पर पट के भीतर ही भीतर . श्री जगन्नाथ जी अधिक स्नान के कारण हुए ज़वर आने से भक्तों को दर्शन नहीं देंगे.  
01 जुलाई 2022, दिन शुक्रवार  रथयात्रा के दिन ( 1 जुलाई ) को फिर से ठाकुर अपने विरही भक्तों को दर्शन देने पधारेगें.
भगवान श्रीकृष्ण जब द्वारिका में थे तो अक्सर ब्रजवासियों को याद करते थे. ये बात उनकी रानियों ने जान ली थी. उनको बहुत इच्छा थी यह जानने की कि भगवान ब्रजवासियों को क्यों इतना याद करते हैं, क्या रानियों की सेवा में किसी प्रकार की कमी है?
एक दिन सभी ने मिल कर रोहिणी मैया को घेर लिया व कहा कि हमें ब्रज और ब्रज लीलाओं के बारे में सुनाइये. माता ने कहा कि कृष्ण ने मना किया है. रानियों ने कहा कि अभी तो वे यहाँ नहीं हैं, फिर भी द्वार पर सुभद्रा जी को बिठा देती हैं, अगर वे आते दिखेंगे तो वे हमें इशारे से बता देगीं और हम सब कुछ और विषय पर बातें करने लग जायेंगीं . बहुत अनुनय-विनय करने पर माता रोहिणी मान गईं.
कक्ष के द्वार पर सुभद्रा जी को बिठा दिया और सब अन्दर रोहिणी माता से ब्रज-लीलायें सुनने लगीं. सुभद्रा जी भी कान लगा कर सुनने लगीं, और लीला सुनने में ही मस्त हो गईं.उनको पता ही नहीं चला कि कब भगवान श्रीकृष्ण और दाऊ बलराम उनके दोनों ओर आकर बैठ गये हैं और वे भी लीला-श्रवण का रसास्वादन कर रहे हैं.
{भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी जब श्रीकृष्ण-प्रेम में मग्न, श्रीकृष्ण लीलाओं का रसास्वादन करते थे तो आपने कई बार प्रेम के अष्ट-सात्विक विकार प्रकट करने की लीला भी की, यह बताने के लिये कि कृष्ण-प्रेम की ऊंचाई पर ऐसे विकार भी शरीर में आ सकते हैं. जैसे बाहें शरीर के भीतर चली जाती हैं, आंखें फैल जाती हैं, आंखों में आँसुओं की धारायें बहती हैं, सारा शरीर पुलकायमान हो जाता है इत्यादि.
ऐसी ही लीला भगवान श्रीकृष्ण, श्रीबलराम व श्रीसुभद्रा जी ने भी की. आपके दिव्य शरीर में लीलाओं के श्रवण से अद्भुत विकार आने लगे. आपकी आँखें फैल गयीं, बाहें / चरण अन्दर चले गये इत्यादि.
भगवान की इच्छा से श्री नारद जी उस समय द्वारिका के इस महल के आगे से निकले. उन्होंने भगवान का ऐसा दिव्य रूप देखा.कुछ आगे जाकर सोचा कि यह मैंने क्या देखा. अद्भुत दृश्य !! फिर वापिस आये.
उधर रोहिणी माता को पता चल गया कि कोई बाहर है . उन्होंने लीला सुनाना बन्द कर दिया. भगवान वापिस अपने रूप में आ गये. नारद जी ने प्रणाम करके भगवान श्री कृष्ण से कहा- हे प्रभु ! मेरी इच्छा है कि मैंने आज जो रूप देखा है, वह रूप आपके भक्त जनों को पृथ्वी लोक पर चिरकाल तक देखने को मिले. आप इस रूप में पृथ्वी पर वास करें.
श्री कृष्ण नारद जी की बात से प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि ऐसा ही होगा. भगवान श्रीकृष्ण, श्रीबलराम, श्रीसुभद्रा जी का वही भावमय रूप ही श्रीजगन्नाथ पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ, श्रीबलदेव व श्री सुभद्रा जी के रूप में प्रकट है.
पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ भगवान स्वयं पुरुषोत्तम हैं. आपने दारु-ब्रह्म रूप से नीलाचल (जगन्नाथपुरी धाम) में कृपा-पूर्वक आविर्भूत होकर जगत-वासियों पर कृपा की.
स्नान यात्रा अर्थात आज ही के दिन भगवान श्रीजगन्नाथ जी का प्राकट्य हुआ था. अर्थात् भगवान जगन्नाथ जी स्नान यात्रा के दिन ही इस धरातल पर प्रकट हुए थे.
जगनाथ स्तोत्रं ,जगन्नाथ प्रणामः
श्री जगन्नाथ स्तोत्र || श्री कृष्ण का, उनके बड़े भ्राता श्री बलराम के साथ उनकी छोटी बहेन देवी सुभद्रा का ध्यान करे, और इसके बाद ही स्तोत्र का पाठ करें |
पहले दो श्लोक से श्री कृष्ण, श्री बलराम, और देवी सुभद्रा को प्रणाम कर रहे हैं, तथा बाकी श्लोको से उनकी प्राथना है|
मान्यता है कि नित्य सिर्फ एक बार पढ़ने से मानसिक शांती मिलती है, और कअष्टो का निवारण हो जाता है |
जगन्नाथप्रणामः 
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने  बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ||१ जगदानन्दकन्दाय प्रणतार्तहराय च  नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः ||२|
श्री जगन्नाथ प्रार्थना || रत्नाकरस्तव गृहं गृहिणी च पद्मा किं देयमस्ति भवते पुरुषोत्तमाय | अभीर, वामनयनाहृतमानसाय दत्तं मनो यदुपते त्वरितं गृहाण ||१ भक्तानामभयप्रदो यदि भवेत् किन्तद्विचित्रं प्रभो कीटोऽपि स्वजनस्य रक्षणविधावेकान्तमुद्वेजितः | ये युष्मच्चरणारविन्दविमुखा स्वप्नेऽपि नालोचका- स्तेषामुद्धरण-क्षमो यदि भवेत् कारुण्यसिन्धुस्तदा ||२ अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः | यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ||३ या त्वरा द्रौपदीत्राणे या त्वरा गजमोक्षणे | मय्यार्ते करुणामूर्ते सा त्वरा क्व गता हरे ||४ मत्समो पातकी नास्ति त्वत्समो नास्ति पापहा | इति विज्ञाय देवेश यथायोग्यं तथा कुरु ||५ 
श्री कृष्ण, श्री बलराम, और देवी सुभद्रा की जय हो 
 बालभद्र जी के रथ का संक्षिप्त परिचय
1. रथ का नाम -तालध्वज रथ
2 कुल काष्ठ खंडो की संख्या -763
3.कुल चक्के -14
4. रथ की ऊंचाई- 44 फीट
5.रथ की लंबाई चौड़ाई - 33 फ़ीट
6.रथ के सारथि का नाम - मातली
7.रथ के रक्षक का नाम-वासुदेव
8. रथ में लगे रस्से का नाम- वासुकि नाग
9.पताके का रंग- उन्नानी
10. रथ के घोड़ो के नाम -तीव्र ,घोर,दीर्घाश्रम,स्वर्ण
भगवान् जगन्नाथ जी के रथ का संक्षिप्त परिचय
1. रथ का नाम -नंदीघोष रथ
2 कुल काष्ठ खंडो की संख्या -832
3.कुल चक्के -16
4. रथ की ऊंचाई- 45 फीट
5.रथ की लंबाई चौड़ाई - 34 फ़ीट 6 इंच
6.रथ के सारथि का नाम - दारुक
7.रथ के रक्षक का नाम- गरुड़
8. रथ में लगे रस्से का नाम- शंखचूड़ नागुनी
9.पताके का रंग- त्रैलोक्य मोहिनी
10. रथ के घोड़ो के नाम -वराह,गोवर्धन,कृष्णा,गोपीकृष्णा,नृसिंह,राम,नारायण,त्रिविक्रम,हनुमान,रूद्र ..
सुभद्रा जी के रथ का संक्षिप्त परिचय
1. रथ का नाम - देवदलन रथ
2 कुल काष्ठ खंडो की संख्या -593
3.कुल चक्के -12
4. रथ की ऊंचाई- 43 फीट
5.रथ की लंबाई चौड़ाई - 31 फ़ीट 6 इंच
6.रथ के सारथि का नाम - अर्जुन
7.रथ के रक्षक नाम- जयदुर्गा
8. रथ में लगे रस्से का नाम- स्वर्णचूड़ नागुनी
9.पताके का रंग- नदंबिका
10. रथ के घोड़ो के नाम -रुचिका,मोचिका, जीत,अपराजिता 
जगन्नाथ पुरी मंदिर की 13 आश्चर्यजनक बातें
1. पुरी केे जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है.
2. पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा.
3. मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है.
4. सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है.
5. मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है. 
6. मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है. प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं.
7. मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है. इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है
8. मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते. आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं. इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है.
9. मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है.
10. मंदिर का क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट में है.
11. प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है.
12. पक्षी या विमानों को मंदिर के ऊपर उड़ते हुए नहीं पाएंगे.
13. विशाल रसोईघर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद का निर्माण करने हेतु 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायक-सहयोगी एकसाथ काम करते हैं. सारा खाना मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है. हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे, यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है. 
भगवान जगन्नाथ शुभ मंत्र
नीलांचल निवासाय नित्याय परमात्मने.
बलभद्र सुभद्राभ्याम् जगन्नाथाय ते नमः..
श्री जगन्नाथ के राशि अनुसार मंत्र
मेष : ॐ पधाय जगन्नाथाय नम:
वृषभ : ॐ शिखिने जगन्नाथाय नम:
मिथुन : ॐ देवादिदेव जगन्नाथाय नम:
कर्क : ॐ अनंताय जगन्नाथाय नम:
सिंह : ॐ विश्वरूपेण जगन्नाथाय नम:
कन्या : ॐ विष्णवे जगन्नाथाय नम:
तुला : ॐ नारायण जगन्नाथाय नम:
वृश्चिक : ॐ चतुमूर्ति जगन्नाथाय नम:
धनु : ॐ रत्ननाभ: जगन्नाथाय नम:
मकर : ॐ योगी जगन्नाथाय नम:
कुंभ : ॐ विश्वमूर्तये जगन्नाथाय नम:
मीन : ॐ श्रीपति जगन्नाथाय नम:

Koti Devi Devta with Abhishek Yadav.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

हरे कृष्ण हरे राम महामन्त्र लेखन पुस्तिका का पूजन, जाप से पाप क्लेश समापन: स्वामी नरसिंह दास

गंगा सप्तमी: घर की उत्तर दिशा में करें पूजन, मां गंगा करेंगी हर पाप का नाश

गणगौर पूजन: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और तीज का महत्व

मास अनुसार देवपूजन

Leave a Reply