नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई पुरुष और महिला लंबे समय तक साथ रहते हैं तो कानून के अनुसार इसे विवाह जैसा ही माना जाएगा और उनके बेटे को पैतृक संपत्तियों में हिस्सेदारी से वंचित नहीं किया जा सकता.सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के सबूत के अभाव में एक साथ रहने वाले पुरुष और महिला का ‘‘नाजायज’’ बेटा पैतृक संपत्तियों में हिस्सा पाने का हकदार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा- अगर एक पुरुष और एक महिला पति-पत्नी के रूप में लंबे समय तक एक साथ रहते हैं, तो इसे विवाह जैसा ही माना जाएगा. इस तरह का अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत लगाया जा सकता है.’’ सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केरल हाईकोर्ट के 2009 के उस फैसले के खिलाफ अपील पर आया है, जिसमें एक पुरुष और महिला के बीच लंबे समय तक चले रिश्ते के बाद पैदा हुई संतान के वारिसों को पैतृक संपत्तियों में हिस्सा देने संबंधी निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया गया था.
ये मामला पिछले 40 साल से अदालतों में चक्कर काट रहा था. पहले लोअर कोर्ट ने फैसले में कहा था कि लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहने वाले कपल के बेटे को पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदार माना जाना चाहिए. लेकिन हाईकोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ और फैसला पलटते हुए ट्रायल कोर्ट से फिर से सुनवाई करने को कहा. इस रिमांड ऑर्डर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने हाईकोर्ट से ही मामले में फैसला देने को कहा. हाईकोर्ट अपने पहले के फैसले पर कायम रहा, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हमने प्रतिवादियों की ओर से पेश सबूतों को भी देखा है. हमारा विचार है कि प्रतिवादी दामोदरन और चिरुथाकुट्टी के बीच उनके लंबे रिश्ते से बने विवाह जैसे संबंध के खिलाफ साबित करने में नाकाम रहे हैं. इसके अलावा, तथाकथित नाजायज बेटे की ओर से जो दस्तावेज पेश किए गए हैं, वो संपत्ति का विवाद पैदा होने से बहुत पहले के हैं. ये दस्तावेज और गवाहों के बयान व सबूत दिखाते हैं कि दामोदरन और चिरुथाकुट्टी लंबे समय से पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे थे. पहला वादी 1963 में सैन्य सेवा में शामिल हुआ और 1979 में रिटायर हुआ. उसके बाद उसने संपत्ति के बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया.
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