आज हम जन्म पत्रिका अथवा गोचर के सूर्य के अशुभ प्रभाव को समाप्त कर उन को शुभ प्रभाव में बदलने के लिए कुछ विशेष उपाय लिख रहे हैं. इनमें से कोई भी एक अथवा एक से अधिक उपाय आप निश्चिंत हो कर सकते हैं. उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से आरंभ करें.
1 प्रत्येक रविवार को गाय को गुड़ व गेहूं खिलाने से आर्थिक लाभ के साथ मान-सम्मान बढ़ता है.
2 रविवार को किसी भी मंदिर में तांबे का दीप अर्पित करने से कर्म क्षेत्र में बाधा नहीं आती जिसमें यह ध्यान रखें कि तांबे का दीपक मंदिर में ही छोड़ आए.
3 सरकारी नौकरी में यदि स्थानांतरण का भय हो तो सूर्योदय के समय तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल मिर्च के 21 दाने डालकर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने एवं प्रार्थना करने से स्थानांतरण नहीं होता.
4 प्रतिदिन तांबे के लोटे में जल के साथ कच्चा दूध लाल पुष्प लाल चंदन मिलाकर अर्घ्य देने से सूर्य कृत कष्टों में कमी आती है एवं गुप्त शत्रु निष्क्रिय होते हैं.
5 पिता व पुत्र में यदि मानसिक विरोध हो तो पिता या पुत्र रविवार को सवा किलो गुड़ अपने सर से 11 बार उतार कर बहते जल में प्रवाहित करें इससे आपसी संबंध अच्छे होते हैं ऐसा लगातार 3 रविवार करें इसके अतिरिक्त यदि कोई सूर्य कृत रोग मुकदमेबाजी शत्रु समस्या अथवा कर्म क्षेत्र में विघ्न बाधा हो तो 2 किलो गुड़ प्रवाहित करना चाहिए.
6 यदि शत्रु कष्ट अधिक हो तो रविवार को लाल बैल को गुण एवं गेहूं खिलाना चाहिए.
7 सूर्य की प्रतिनिधि वस्तुओं का दान भूलकर भी नहीं लेना चाहिए.
8 घर में विष्णु पूजा अथवा हरिवंश पुराण की कथा करवानी चाहिए प्रतिदिन स्वयं भी इसका श्रवण मनन करना चाहिए.
9 सूर्य कृत कष्टों से मुक्ति के लिए सूर्य कवच स्तोत्र अथवा 108 नामों का उच्चारण करना चाहिए.
10 रविवार से आरंभ कर 40 दिन तक तांबे का सिक्का अथवा सिक्का रूपी तांबा जल में प्रवाहित करना चाहिए.
सूर्य नमस्कार के फायदे
सूर्य नमस्कार से शरीर, मन और आत्मा सबल होते हैं. पृथ्वी पर सूर्य के बिना जीवन संभव नही है. सूर्य नमस्कार, सूर्य के प्रति सम्मान व आभार प्रकट करने की एक प्राचीन विधि है, जो कि पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों का स्रोत है.सूर्य नमस्कार करने की विधि ही जानना पर्याप्त नहीं है, इस प्राचीन विधि के पीछे का विज्ञान समझना भी आवश्यक है. इस पवित्र व शक्तिशाली योगिक विधि की अच्छी समझ, इस विधि के प्रति उचितसोच व धारणा प्रदान करती है. ये सूर्य नमस्कार की सलाहें आपके अभ्यास को बेहतर बनाती है और सुखकर परिणाम देती है.
रविवार व्रत विधि*.
रविवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से प्रारंभ किया जा सकता है.
*.रविवार के व्रत के दिन सबसे पहले जातक को पूजा के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए जैसे की लाल चन्दन, लाल वस्त्र, गुड़, गुलाल, कंडेल का फूल इत्यादि.
जातक को सूर्यदेव की पूजा सूर्यास्त से पहले कर लेनी चाहिए और भोजन मात्र एक ही समय करना चाहिए.
रविवार का व्रत कम से कम एक वर्ष या फिर पांच वर्षों तक करना चाहिए.
रविवार के दिन सबसे पहले प्रातःकाल में स्नान इत्यादि से निवृत हो कर लाल वस्त्र पहन लेने चाहिए और अपने मस्तक पर लाल चन्दन से एक तिलक कर लेना चाहिए.
तत्पश्चात, एक ताम्बे का कलश में जल लेकर उसमे अक्षत, लाल रंग के पुष्प और रोली इत्यादि डाल कर सूर्य भगवान को श्रद्धापूर्वक नमन करके अर्ध्य प्रदान करना चाहिए. इसके साथ ही
रविवार के व्रत वाले दिन भोजन सिर्फ एक समय ही और सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए. भोजन बिलकुल सामान्य होना चाहिए, जातक को गरिष्ठ, तला हुआ, मिर्च मसालेदार या और कोई पकवान नहीं खाना चाहिये.
सबसे अंतिम रविवार को जातक को उद्यापन करना चाहिये और एक योग्य ब्राह्मण को बुलाकर हवन करवाना चाहिये.
रविवार व्रत रखने के समय सम्भोग नहीं करना चाहिए और ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए. व्रत के समय पान खाना वर्जित है और दिन में सोना नहीं चाहिए.
इस क्रिया के पश्चात एक अच्छे और योग्य दंपत्ति को भोजन करवाना चाहिये और उनको यथाचित दक्षिणा एवं लाल वस्त्र प्रदान करने चाहिये. इन सब क्रियाओं के बाद रविवार के व्रत को सम्पूर्ण माना जाता है.
रविवार व्रत कथा
बहुत पुराने समय में एक बुढ़िया एक नगर में निवास करती थी. उसका नित्य नियम था कि हर रविवार के दिन सुबह जल्दी उठ कर और स्नान इत्यादि से निवृत्त हो कर, वह घर के आंगन को गोबर से लीपती थी. उसके बाद उसका नियम था कि पहले सूर्य भगवान कि पूजा करती थी, तत्पश्चात भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन करती थी. उसका जीवन यापन बहुत मजे से कट रहा था क्योंकि सूर्य भगवान् कि कृपा से उसे कोई कष्ट नहीं था. बहुत ही कम समय में उसके ऊपर लक्ष्मी माता कि कृपा हुई और उसने काफी धन अर्जित कर लिया! उसकी प्रगति देख कर उसकी पड़ोसन जल भुन कर राख हो गयी.
उस समय बुढ़िया सूर्य भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी. राजा के सैनिक जबर्दस्ती गाय और बछडे को महल की ओर ले चले. बुढ़िया ने प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्लाई लेकिन राजा के सैनिक नहीं माने. गाय व बछडे के चले जाने से बुढ़िया को बहुत दु:ख हुआ. उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और भूखी-प्यासी सारी रात सूर्य भगवान से गाय व बछडे को लौटाने के लिए प्रार्थना करती रही.
गाय देखकर राजा बहुत खुश हुआ. सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत दया आई. उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा- राजन्! बुढ़िया की गाय व बछडा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड टूट पडेगा. तुम्हारे राज्य में भूकम्प आएगा. तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा.
सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रात: उठते ही गाय और बछडा बुढ़िया को लौटा दिया. राजा ने अपनी तरफ से भी बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी. राजा ने पडोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड भी दिया.
इसके बाद राजा ने राज्य में घोषणा करवाई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत करें. जनता ने भी ऐसा ही किया. रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए. चारों ओर खुशहाली छा गई. सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए. नि:संतान स्त्रियों की गोद भर गई. राज्य में सभी स्त्री-पुरुष सुखी जीवन-यापन करने लगे.
सूर्य देव की किरणों से सम्बंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी .
सूर्य किरण चिकित्सा प्रायः चार माध्यमों से की जाती है :
1. पानी द्वारा भीतरी प्रयोग
2. तेल द्वारा बाहरी प्रयोग
3. सांस द्वारा
4. सीधे ही किरण द्वारा
सूर्य की किरण में सात रंग होते हैं किंतु मूल रंग तीन ही होते है :
1. लाल
2. पीला
3. नीला
*सूर्य चिकित्सा इन रंगों की सहायता से की जाती है*
1. नारंगी (लाल, पीला, नारंगी में से एक)
2. हरा रंग
3. नीला (नीला, आसमानी, बैंगनी में से एक)
*सूर्य तप्त (सूर्यतापी) जल तैयार करने की विधि*
साफ कांच की बोतल में साफ ताज़ा जल भरकर लकड़ी के कार्क से बंद कर दें. बोतल का मुंह बंद करने के बाद उसे लकड़ी के पट्टे पर रख कर धूप में रखें. 6-7 घंटे बाद सूर्य की किरण के प्रभाव से सूर्य तप्त होकर पानी दवा बन जाता है और रोग निरोधक तत्वों से युक्त हो जाता है. चाहें तो अलग-अलग बोतल में पानी बनाएं पर ध्यान रहे कि एक रंग की बोतल की छाया दूसरे रंग की बोतल पर ना पड़े.
सामान्य रूप से देखने पर सूर्य का प्रकाश सफेद ही दिखाई देता है पर वास्तव में वह सात रंगों का मिश्रण होता है. कांच के त्रिपार्श्व से सूर्य की किरणों को गुजारने पर दूसरी ओर इन सात रंगों को स्पष्ट देखा जा सकता है. किसी विशेष रंग की कांच की बोतल में साधारण पानी, चीनी, मिश्री, घी, ग्लिसरीन आदि तीन-चौथाई भरकर सूर्य की किरणें दिखाने से या धूप में रखने से उस कांच द्वारा सूर्य के प्रकाश से उसी रंग की किरणों को ग्रहण किया जाता है. उसी रंग का तत्व और गुण पानी आदि वस्तु में उत्पन्न हो जाता है. वह सूर्यतप्त (सूर्य किरणों द्वारा चार्ज की गई वस्तु) रोग-निवारण गुणों और स्वास्थ्यवर्धक तत्वों से युक्त हो जाती है. इन सूर्यतापित वस्तुओं के उचित भीतरी और बाहरी प्रयोग से मनुष्य के शरीर में रंगों का संतुलन कायम रखा जा सकता है और अनेक प्रकार के रोगों को सहज ही दूर किया जा सकता है. यही सूर्य किरण चिकित्सा है.
प्रकृति की अमूल्य देन सूर्य-किरणें
धूप और पाचन की क्रियाओं में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है. यदि मनुष्य या अन्य किसी प्राणी पर प्रतिदिन सूर्य किरणें नहीं पड़तीं, तो उसकी पाचन और समीकरण शक्ति क्षीण हो जाती है. स्फुरण (Solar Radiation) तथा मानव जीवन इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है. जीवन का सम्बन्ध प्रकाश-शक्ति तथा उसके वर्ण-वैभव से है, न कि प्रोटीन, श्वेत सार, हाइड्रोजन, कार्बन अथवा उष्णाँक से.
आकाश और वायु- तत्व की भाँति प्रकाश-तत्व भी अत्यन्त सूक्ष्म है. प्रकृति के हरे भरे प्रशस्त अंचल में हम जो नाना रंगों की चित्रपटी देखते हैं-यह सब सूर्य की सतरंगी किरणों की ही माया है. प्रकाश में अन्तर्निहित रंगीनी केवल नेत्रों को ही सुन्दर प्रतीत नहीं होती प्रत्युत जीवन रंजक भी है. सूर्य की किरणों का प्राणी जगत पर स्थायी प्रभाव पड़ा करता है. सूर्य किरण चिकित्सा का यही मूलाधार है. रंगीन बोतलों में पानी रखने से प्रकाश का प्रभाव भी बदलता रहता है और उसमें भाँति-2 के गुण उत्पन्न हो जाते हैं.
सूर्य की किरणों के रंग
चर्म चक्षुओं से सूर्य की किरणें श्वेत प्रतीत होती हैं किन्तु वास्तव में ये सात रंगों की बनी हुई हैं. इन सातों रंगों का रासायनिक प्रभाव पृथक-2 होता है. विभिन्न फलों तथा तरकारियों को प्रकाश तथा रंग नाना प्रकार के गुण प्रदान करता है. इन रासायनिक गुणों के अनुसार हम पृथक भाजियों का प्रयोग करते हैं. प्रकृति की तीन रचना में सबका कुछ न कुछ गुप्त प्रयोजन है. वनस्पति जगत में प्रकाश तत्व के कारण ही नाना प्रकार के गुण, रंग, एवं रासायनिक तत्व सामने आते हैं.
*रंगीन फल तथा तरकारियों का प्रभाव*
रंगों के आधार पर हम फल तथा तरकारियों को निम्न वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
*1. पीला रंग
इस रंग वाले फलों का प्रभाव पाचन क्रिया पर बड़ा अच्छा पड़ता है, आमाशय और कोष्ठ के स्नायुओं को उत्तेजित करने में इसका विशेष महत्व है. ये फल रेचक व पाचक होते हैं. पेट की खराबियों में ये खासतौर पर काम में लाये जाते हैं. इनमें कागजी नींबू, चकोतरा, मकोय, अनानास, खरबूजा, पपीता, बथुआ, अमरूद. इनमें कार्बन, नाइट्रोजन या खनिज लवण प्रचुर मात्रा में होता है.
2. लाल रंग :
इस रंग वाले फलों में लोहा और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है. नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की भी पर्याप्त मात्रा होती है. इस वर्ग में चुकन्दर, लालबेर, टमाटर, पालक, लालशाक, मूली इत्यादि रखें गये हैं.
3. नारंगी रंग :
इन फल तथा तरकारियों में चूना और लोहा विशेष रूप से पाया जाता है. इस श्रेणी में नारंगी, आम, गाजर इत्यादि हैं.
4. नीला रंग :
इस रंग की श्रेणी में हम गहरा नीला और बैंगनी भी रखते हैं. इन तरकारियों में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम तथा फास्फोरस अधिक होता है. इस श्रेणी में जामुन फालसा, आलू बुखारा, बेल, सेब विशेष रूप से आते हैं.
5. हरा रंग :
हरे रंग की तरकारियाँ शीतल प्रकृति की होती हैं, गुर्दों को हितकारी, पेट को साफ करने वाली और नेत्र तथा चर्म रोगों में लाभदायक सिद्ध होती है.
मनुष्य के शारीरिक अथवा मानसिक विकास में सूर्य किरणों द्वारा उत्पन्न उपरोक्त सभी रंगों के फल, शाक, भाजियों का संतुलन आवश्यक है. यदि एक ही प्रकार के रंग का भोजन अधिक दिन तक लेते रहे तो वह रंग शरीर में अधिक हो जायेगा और रोग उत्पन्न हो सकता है. अतः यथासंभव सभी रंगों का भोजन काम में लेना चाहिए. व्यक्तिगत रंग-संतुलन स्थापित कर हम सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं.
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