ग्रहों की शांति के लिए सरल एवं अचूक उपाय

ग्रहों की शांति के लिए सरल एवं अचूक उपाय

प्रेषित समय :21:50:49 PM / Sat, Jun 25th, 2022

ग्रह शांति के वैदिक उपाय एंव मंत्र - 7 वारों के देवताओ - कुण्डली के अनुसार आपके इष्ट देवी - देवता कौन हैं
लाल किताब के अनुसार व ऋषि पाराशर प्रणीत ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उपाय बताए गए हैं.
सूर्य
सूर्य ग्रहों का राजा है. इसलिए देवाधिदेव भगवान् विष्णु की अराधना से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. सूर्य को जल देना, गायत्री मंत्र का जप करना, रविवार का व्रत करना तथा रविवार को केवल मीठा भोजन करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. सूर्य का रत्न 'माणिक्य' धारण करना चाहिए परंतु यदि क्षमता न हो तो तांबे की अंगूठी में सूर्य देव का चिह्न बनवाकर दाहिने हाथ की अनामिका में धारण करें (रविवार के दिन) तथा साथ ही सूर्य के मंत्र का 108 बार जप करें.
जप मन्त्र
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
चंद्र
ग्रहों में चंद्रमा को स्त्री स्वरूप माना है. भगवान शिव ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया है. चंद्रमा के देवता भगवान शिव हैं. सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं व शिव चालीसा का पाठ करें. 16 सोमवार का व्रत करें तो चंद्रमा ग्रह द्वारा प्रदत्त कष्ट दूर होते हैं. रत्नों में मोती चांदी की अंगूठी में धारण कर सकते हैं. चंद्रमा के दान में दूध, चीनी, चावल, सफेद पुष्प, दही (सफेद वस्तुओं) का दान दिया जाता है तथा मंत्र जप भी कर सकते हैं.
जप मन्त्र
ऊँ सों सोमाय नमः
मंगल
जन्मकुंडली में मंगल यदि अशुभ हो तो मंगलवार का व्रत करें, हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ करें. मूंगा रत्न धारण करें या तांबे की अंगूठी बनवाकर उसमें हनुमान जी का चित्र अंकितकर मंगलवार को धारण कर सकते हैं. स्त्रियों को हनुमान जी की पूजा करना वर्जित बताया गया है. मंगल के दान में गुड़, तांबा, लाल चंदन, लाल फूल, फल एवं लाल वस्त्र का दान दें.
जप मन्त्र
ऊँ अं अंगारकाय नमः
बुध
ग्रहों में बुध युवराज है. बुध यदि अशुभ स्थिति में हो तो हरा वस्त्र न पहनें तथा भूलकर भी तोता न पालें. अन्यथा स्वास्थ्य खराब रह सकता है. बुध संबंधी दान में हरी मूंग, हरे फल, हरी सब्जी, हरा कपड़ा दान-दक्षिणा सहित दें व बीज मंत्र का जप करें.
जप मन्त्र
ऊँ बुं बुधाय नमः
गुरु
गुरु का अर्थ ही महान है- सर्वाधिक अनुशासन, ईमानदार एवं कर्त्तव्यनिष्ठ. गुरु तो देव गुरु हैं. जिस जातक का गुरु निर्बल, वक्री, अस्त या पापी ग्रहों के साथ हो तो वह ब्रह्माजी की पूजा करें. केले के वृक्ष की पूजा एवं पीपल की पूजा करें. पीली वस्तुओं (बूंदी के लडडू, पीले वस्त्र, हल्दी, चने की दाल, पीले फल) आदि का दान दें. रत्नों में पुखराज सोने की अंगूठी में धारण कर सकते हैं व बृहस्पति के मंत्र का जप करते रहें.
जप मन्त्र
ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
शुक्र
शुक्र असुरों का गुरु, भोग-विलास, गृहस्थ एवं सुख का स्वामी है. शुक्र स्त्री जातक है तथा जन समाज का प्रतिनिधित्व करता है. जिन जातकों का शुक्र पीड़ित करता हो, उन्हें गाय को चारा, ज्वार खिलाना चाहिए एवं समाज सेवा करनी चाहिए. रत्नों में हीरा धारण करना चाहिए या बीज मंत्र का जप करें.
जप मन्त्र
ऊँ शुं शुक्राय नमः
शनि
सूर्य पुत्र शनि, ग्रहों में न्यायाधीश है तथा न्याय सदैव कठोर ही होता है जिससे लोग शनि से भयभीत रहते हैं. शनि चाहे तो राजा को रंक तथा रंक को राजा बना देता है. शनि पीड़ा निवृत्ति हेतु महामृत्युंजय का जप, शिव आराधना करनी चाहिए. शनि के क्रोध से बचने के लिए काले उड़द, काले तिल, तेल एवं काले वस्त्र का दान दें. शनि के रत्न (नीलम) को धारण कर सकते हैं.
जप मन्त्र
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
राहु.
राहु की राक्षसी प्रवृत्ति है. इसे ड्रेगन्स हैड भी कहते हैं. राहु के दान में कंबल, लोहा, काले फूल, नारियल, कोयला एवं खोटे सिक्के आते हैं. नारियल को बहते जल में बहा देने से राहु शांत हो जाता है. राहु की महादशा या अंतर्दशा में राहु के मंत्र का जप करते रहें. गोमेद रत्न धारण करें.
जप मन्त्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः.
केतु
केतु राक्षसी मनोवृत्ति वाले राहु का निम्न भाग है. राहु शनि के साथ समानता रखता है एवं केतु मंगल के साथ. इसके आराध्य देव गणपति जी हैं. केतु के उपाय के लिए काले कुत्ते को शनिवार के दिन खाना खिलाना चाहिए. किसी मंदिर या धार्मिक स्थान में कंबल दान दें. रत्नों में लहसुनिया धारण करें.
जप मन्त्र
ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
दान मुहूर्त
सूर्य का दान : ज्ञानी पंडित को रविवार दोपहर के समय.
चंद्र का दान : सोमवार के दिन, पूर्णमासी या एकादशी को नवयौवना स्त्री को देना चाहिए.
मंगल का दान : क्षत्रिय नवयुवक को दोपहर के समय.
बुध का दान : किसी कन्या को बुधवार शाम के समय.
गुरु का दान : ब्राह्मण, ज्योतिषी को प्रातः काल.
शुक्र का दान : सायंकाल के समय नवयुवती को.
शनि का दान : शनिवार को गरीब, अपाहिज को शाम के समय.
राहु का दान : कोढ़ी को शाम के समय.
केतु का दान : साधु को देना चाहिए.
7 वारों के देवताओ को प्रसन्न करने के वैदिक उपाय .
सूर्य आदि सात ग्रहों के नाम पर सप्ताह के सात दिन तय किए गए हैं. हर वार का अधिपति कोई एक ग्रह है, लेकिन ग्रह देवों को भी अन्य प्रधान देवों के साथ जोड़ा गया है. इस सबके पीछे विज्ञान, ग्रहों की चाल, ऋतुचर्या, दिनचर्या और स्वस्थ सुखी रहने के तौर-तरीके बड़ी कुशलता के साथ पिरोए गए हैं. बता रहे हैं डॉ. सुरेश चंद्र मिश्र
वारों का क्रम किस प्रकार तय है यह समझने के लिए हमें आसमान में ग्रहों की कक्षाओं के क्रम को समझना होगा. ये इस प्रकार हैं-
1. शनि 2. गुरु 3. मंगल 4. रवि 5. शुक्र 6. बुध 7. चंद्रमा.
इनमें हर चौथा ग्रह अगले वार का मालिक होता है जैसे, रविवार के बाद उससे चौथे चन्द्रमा का, फिर चन्द्र से चौथे मंगल का क्रमश: वार आता-जाता है.
वारों के अधिदेवता
ग्रहों को मूल रूप से विष्णु या महादेव के अंश से उत्पन्न समझा जाता है. सूर्य की पूजा, नमस्कार, अर्घ्य देना तो खास तौर पर विष्णु और शिव ही क्यों, सब तरह की पूजा में अनिवार्य कहा गया है. वारपति ग्रह और अवतारों का संबंध इस तरह से है-
1. सूर्य- रामावतार,
2. चन्द्र- श्रीकृष्णावतार,
3. मंगल- नृसिंह अवतार,
4. बुध- बुद्ध अवतार,
5. गुरु-वामन अवतार,
6. शुक्र- परशुराम अवतार,
7. शनि- कर्म अवतार.
इससे हम आसानी से समझ सकते हैं कि सब ग्रह आदि देव विष्णु या शिव जो भी नाम दें, उसी से निकले हैं.
रविवार का वारपति सूर्य स्वयं जीवन का आधार होने से विष्णु रूप कहा गया है. अत: ’आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ के नियम से रोग के प्रकोप को कम करने, स्वस्थ रहने, दवा का अनुकूल प्रभाव पैदा करने और आयु की रक्षा तथा आत्मबल, तन व मन की ताकत को देने वाला सूर्य है. जन्म का कारण होने से सविता, प्रसविता, प्रसव कराने वाला परिवार वृद्धि का देवता है. जो लोग प्रजनन अंगों के विकार के कारण, अज्ञात कमी की वजह से औलाद का सुख नहीं देख पाते हैं, उनके लिए सूर्य की उपासना बहुत मुफीद होती है. सूर्य के लिए गायत्री मंत्र, केवल ओम् नाम या ‘ओम् घृणि: सूर्य आदित्य:’ का जप करना, जल चढ़ाना, माता पिता या उनके जैसे जनों को ठेस न पंहुचाना अच्छा है.
सूर्य को प्रसन्न रखने के कुछ उपाय
सुबह मुंह को गीला रखकर सूर्य के सामने गायत्री मन्त्र या ओम् नाम का 10 या 28 बार जप करना चाहिए.
घर में धूप और खुली हवा का प्रबंध, धूप सेंकना, बुजुर्गो के मन को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए.
घर में गंगाजल या किसी कुदरती सोते का जल सहेजना चाहिए.
संक्रान्ति, अमावस्या, पूर्णिमा, अष्टमी के दिन और दोनों वक्त मिलने के समय कलह, बहस, देर तक सोना और संभोग से बचें. इनसे सारे ग्रहों की अनुकूलता बनती है.
चंद्रमा को अनुकूल रखने के उपाय
सोमवार का पति चंद्रमा मन, विचार, भावुकता, चंचलता, आवेग और आवेश का प्रतीक है. चंद्र की अनुकूलता से मन पर नियंत्रण, निर्णय करने की सही दिशा और दिल के बजाए दिमाग से अधिक काम लेने की आदत बनती है. सोम जल का ग्रह होने से शिव को खास प्रिय है. इस दिन शिवजी की पूजा, आराधना करना उपयुक्त है. ध्यान रखें शिव की पूजा सदा माता पार्वती के साथ ही साम्बसदाशिव के रूप में ही सांसारिक सुखों के लिए अधिक फलदायी है.
चंद्र को प्रसन्न रखने के कुछ तरीके ये हैं-
दूध, खीर, सेवई, मिठाई, पनीर, दान करना चाहिए और तारों की छांव या चांदनी में कुछ देर बैठना चाहिए.
बड़, पीपल, गूलर की गोलियां, फल या जड़ घर में रखें. अपनी कुल प्रतिष्ठा, सम्पदा को संभालें. पानी का सेवन करना और माता-पिता से अलगाव या दूरी न रखना चन्द्रमा को प्रसन्न रखने का कारगर तरीका है.
दूध में मुल्तानी मिट्टी, चोकर या बेसन मिला कर उबटन करें. किसी के सामने अपनी व्यथा किसी को ना सुनाए.
मंगल अनुकूलता के उपाय
मंगलवार का वारपति मंगल, युद्घ और हथियारों का ग्रह हैं. इसके देवता वीर हनुमान, एकदंत गणेश और मलय स्वामी हैं. हनुमान जी की पूजा, प्रसाद चढ़ाना, मंगल का व्रत रखना और इस दिन शाकाहार करना अच्छा है. हनुमान चालीसा का पाठ आसान और कारगर उपाय है. अतिरिक्त शुभता के लिए-
अपने सगे भाई बहनों के लिए अपशब्द न कहें और स्त्रियों से बहस न करें.
मीठी सुहाल, पूए, चीले, पूरनपोली खाएं, खिलाएं और बांटें.
भाभियों से सामान्य व्यवहार रखें और कभी विकलांगों की सहायता करें.
नीम, बबूल का सेवन किसी तरह से करें और पेड़-पौधों की देखभाल करते रहें.
बुध की अनुकूलता के उपाय
बुधवार का वारपति बुध, बुद्धि, हास-परिहास, अभिनय और कला और वनस्पतियों का ग्रह है. इसके प्रधान देव विष्णु हैं. अत: विष्णु जी के किसी रूप की आराधना करना शुभ है.
ओम् नमो भगवते वासुदेवाय या
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे. हे नाथ नारायण वासुदेव.. का जप करना श्रेयस्कर है.
मांस मदिरा, मानसिक हिंसा, पक्षियों को पालना, ससुराल से गहरे संबंध रखना आदि बातों से बचें.
वनस्पति, जड़ी-बूटी पाले प्रसाधन इस्तेमाल करना, सोना धारण करना, पौधे रखना, बहन बेटी और उनके परिवार जनों का आदर करना, केसर लगी मिठाई या केसरी हलुवा या मूंग दाल के पदार्थ खाना खिलाना शुभ है.
दादी को कोई भेंट देने, सांड को गुड़ रोटी खिलाने, केले और बताशे बांटने से बुध प्रसन्न रहता है.
स्नान जल में चावल डालना, पीपल में जल देना, हरी सब्जी शिवजी को भेंट करना, कभी पत्ते के दोने में कुछ खाना, कभी दान करना मंगलकारक है.
गुरु देव बृहस्पति की अनुकूलता के उपाय
गुरुवार का देवता संसार का सृजनहार ब्रह्मा है. अत: विवाह, संतान सुख, परिवार सुख, ज्ञान, वाणी और हुनर के साथ बड़प्पन अधिकार का स्वामी बृहस्पति है. इसके लिए सिर्फ ओम् नाम का जप करना काफी फायदेमंद है.
इष्ट देव कैसे चुने?
अपना इष्ट देव चुनने में निम्न बातों का ध्यान देना चाहिए.
आत्मकारक ग्रह के अनुसार ही इष्ट देव का निर्धारण व उनकी अराधना करनी चाहिए.
भक्ति और आध्यात्म से जुड़े अधिकांश लोगों के मन में हमेशा यह प्रश्न उठते रहता है |मेरा ईष्टदेव कौन है और हमें किस देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए.
किसी भक्त के प्रिय शिव जी हैं तो किसी के विष्णु तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है तो कोई हनुमानजी का. और कोई कोई तो सभी देवी देवताओ का एक बाद स्मरण करता है. परन्तु एक उक्ति है कि “एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय”. जैसा की आपको पता है कि अपने अभीष्ट देवता की साधना तथा पूजा अर्चना करने से हमें शीघ्र ही मन चाहे फल की प्राप्ति होती है.
इष्टदेव कैसे दिलाते हैं सफलता-
अब प्रश्न होता है कि देवी देवता हमें कैसे लाभ अथवा सफलता दिलाते हैं|
जब हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करते है तो हम अपने अभीष्ट देवी देवता को मंत्र के माध्यम से अपने पास बुलाते है|
आह्वाहन करने पर देवी देवता उस स्थान विशेष तथा हमारे शरीर में आकर विराजमान होते है .
वास्तव में सभी दैवीय शक्तियां अलग-अलग निश्चित चक्र में हमारे शरीर में पहले से ही विराजमान होती है |आप हम पूजा अर्चना के माध्यम से ब्रह्माण्ड सेउपस्थित दैवीय शक्ति को अपने शरीर में धारण कर शरीर में पहले से विद्यमान शक्तियों को सक्रिय कर देते है और इस प्रकार से शरीर में पहले से स्थित ऊर्जा जाग्रत होकर अधिक क्रियाशील हो जाती है. इसके बाद हमें सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है.
ज्योतिष के माध्यम से हम पूर्व जन्म की दैवीय शक्ति अथवा ईष्टदेव को जानकर तथा मंत्र साधना से मनोवांछित फल को प्राप्त करते है.
इष्टदेव का निर्धारण पंचम भाव के आधार पर-
ईष्टदेव या देवी का निर्धारण हमारे जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है. ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा,भक्ति और इष्टदेव का बोध होता है. यही कारण है अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है.नवम् भाव सेउपासना के स्तर का ज्ञान होता है.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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