मोदीजी! हारे हुए नेताओं को मुख्यमंत्री, मंत्री बनाना जनादेश का अपमान नहीं है क्या?

मोदीजी! हारे हुए नेताओं को मुख्यमंत्री, मंत्री बनाना जनादेश का अपमान नहीं है क्या?

प्रेषित समय :21:26:24 PM / Tue, Jun 28th, 2022

पल-पल इंडिया  

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में प्रजातंत्र को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कही, लेकिन वे प्रजातंत्र का कितना सम्मान करते हैं, यह इसी से जाना जा सकता है कि दलित, ब्राह्मण, आदिवासियों सहित सभी का सियासी हक मारकर जनादेश को नकराते हुए चुनाव में हारे हुए नेताओं को मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री बनाया गया?

क्या जीते हुए उम्मीदवारों में से कोई योग्य नहीं था?

फिर क्यों जनादेश का अपमान किया गया?

Aadesh Rawal @AadeshRawal

प्रधानमंत्री जी विदेशी धरती पर जाकर आपातकाल की बात करते है, इतिहास के काले अध्याय कुरेदने से क्या हासिल होगा? विदेशी जमीन पर विपक्ष को कोसने की बजाय समृद्ध भारत की बात करनी चाहिए, प्रधानमंत्री के रूप में नए भारत का चेहरा आप ही है?

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के आपातकाल का जिक्र तो करते हैं, लेकिन अपने समय के अघोषित आपातकाल पर मौन धारण कर लेते हैं?

Shakeel Akhtar @shakeelNBT ....इंदिरा गांधी और कांग्रेस को गालियां देते हुए लोग हर साल इमरजेंसी की याद दिलाते हैं, मगर यह कोई नहीं बताता कि इससे पहले जयप्रकाश नारायण ने सेना से सरकार के आदेश न मानने का आर्डर दिया था, जैसे अन्ना हजारे भी अपील नहीं करते थे, आह्वान करते थे, हुंकार भरते थे?

वैसे ही उस समय भी विपक्ष के नेता गरजते थे, आदेश करते थे!

तो उस वक्त 1975 में क्या था जो देश भर में आंदोलन किया जा रहा था? सेना से सरकार की बात न मानने को कहा जा रहा था? यह अराजकता की चरम सीमा थी!

मगर, उसके बाद भी कांग्रेस ने इमरजेन्सी को गलत माना, उस दौरान हुई ज्यादतियों के लिए माफी मांगी!

देश की राजनीति का बड़ा अध्याय आजादी के बाद से ही कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार के विरोध का चलता रहा है, जो लोहिया के अंध नेहरू विरोध के चलते गैर कांग्रेसवाद का नारा देकर जनसंघ के साथ गठबंधन बनाने से लेकर जेपी आंदोलन, वीपी सिंह का बोफोर्स पर झूठ, अन्ना आंदोलन तक आया?

इमरजेंसी बुरी थी, बहुत बुरी!

मगर, क्या हुआ उसमें?

ट्रेनें सही समय पर चलने लगीं, व्यापारियों ने जमाखोरी, कालाबाजारी बंद कर दी, साहूकारों ने किसानों, मजदूरों, वेतन भोगियों को लूटना बंद कर दिया.

गलतियां हुईं, इससे किसको इंकार है!

इसीलिए डेढ़ साल में ही इंदिरा ने उसे हटा दिया, चुनाव करवा दिए?

हार गईं, गिरफ्तार हुईं, मुकदमे झेले, मीडिया जिसका बड़ा हिस्सा शुरु से ही प्रगति विरोधी, दकियानूसी रहा उसकी मेहरबानी से आज भी बदनामी झेल रही हैं?

मगर क्या यह कोई बताता है कि इमरजेंसी कानून के अनुरूप लगाई थी?

बिना इमरजेंसी लगाए भी विपक्ष को ED, CBI, IT, पुलिस से डरा सकती थी, बाकी संवैधानिक संस्थाओं को आज की तरह काबू में रख सकती थीं, मगर उन्होंने गैर संवैधानिक काम नहीं किया. भयानक बदनामी झेली मगर इमरजेंसी संवैधानिक रूप से ही लगाई?

गलत कैलकुलेशन का मामला था, मगर चुनाव आयोग, न्यायपालिका, सेना को खराब नहीं किया, सारा विष खुद ही पिया!
Pradeep ShreeTheWay @Pradeep80032145 Replying to @shakeelNBT

साहेब! इंदिरा गांधी पॉलिटिकल हिजड़ा नहीं थी? न मंच पर रोती रहती थी और न ही कभी कहा कि- मैं जिंदा लौट आई!

दरअसल, इस वक्त देश में तानाशाही का प्रजातांत्रिक मुखौटा मॉडल है, जो मन से माफ नहीं करूंगा जैसी ढाल लेकर चलता है और सत्ता पर संकट आते ही नूपुर शर्मा को पार्टी से बाहर कर देता है?

Rajendra dhodapkar @Rajendradhodap2

 

https://twitter.com/Rajendradhodap2/status/1538432582911610881/photo/1

https://twitter.com/Pradeep80032145/status/1541278431815823361

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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