शिवरात्रि श्रावण मास की - लिङ्गाष्टकम्

शिवरात्रि श्रावण मास की - लिङ्गाष्टकम्

प्रेषित समय :20:57:48 PM / Wed, Jul 20th, 2022

श्रावण मास की शिवरात्रि ही मानी गयी है. सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है. श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि के साथ ही त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. श्रावण शिवरात्रि को हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. हर महीने में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि के दिन मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. श्रावण मास और फाल्गुन मास में पड़ने वाली कृष्ण चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है. फाल्गुन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. श्रावण महीने में पड़ने वाले सोमवार और श्रावण शिवरात्रि दोनों ही भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. ऐसा माना जाता है कि श्रावण से सोमवार के दिन व्रत करके भोलेनाथ की पूजा करने से और शिवरात्रि के दिन श्रद्धा पूर्वक भोलेनाथ की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है 
श्रावण शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की पूजा करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है. मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि के दिन व्रत करके भोलेनाथ की पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. शास्त्रों में बताया गया है अगर कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की पूजा करता है तो उसकी कुंडली से सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं. इसके साथ ही उसके जीवन से धन की कमी भी दूर हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने से वह बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं. अगर कोई भक्त सच्चे मन से श्रावण शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ को जल अर्पित करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. श्रावण शिवरात्रि की पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. अगर कोई व्यक्ति श्रावण शिवरात्रि का व्रत करता है तो उसे मनचाहा वर या वधू प्राप्त होते हैं. 
श्रावण शिवरात्रि के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें. अब एक लोटे में जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर मिलाकर भोलेनाथ का अभिषेक करें. अगर आपके घर के आसपास कोई मंदिर नहीं है तो आप घर में भी शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं 
पूजा सामग्री
दूध, जल, रोली, चन्दन, बेल पात्र, दूर्वा, घी का दीपक, दूप, मौसमी फल, फूल, मोली (कलावा), इत्र, चढ़ावा(धन)
पूजा विधि
श्रावण शिवरात्रि के दिन सूर्य उदय के पूर्व उठने का प्रयास करें
स्नान आदि उपरान्त सबसे पहले सूर्य भगवान् को अर्घ्य दें
एक लोटे में दूध, जल, चावल, चीनी मिलाकर जल लें
अब ऊपर दी गई पूजा सामग्री व् जल लेकर मंदिर जाएं
मंदिर में सर्व प्रथम भगवान् शिव के आगे हाथ जोड़ें और उनसे अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें
भगवान् शिव पर सर्व प्रथम चंदन लगाएं व् इत्र अर्पित करें
भगवान् गणेश जी पर दूर्वा अर्पित करें
भगवान् शिव, गणेश जी, कार्तिकेय जी, माँ पार्वती व् नंदी जी पर फूल चढ़ाएं 
माँ पार्वती जी को कुमकुम का तिलक करें व् गणपति जी अथवा कार्तिकेय जी को भी कुमकुम का तिलक करें
भगवान् शिव, माँ पार्वती, भगवान् गणेश व् कार्तिकेय जी पर मोली भी अर्पित करें 
भगवान् के सामने फल समर्पित करें और दान पात्र में दान भी अवश्ये चढ़ाएं 
अब भगवान् शिव पर जल की धारा अर्पित करें और जल अर्पित करते समय "ॐ नमः शिवाय" का निरंतर जाप करते रहें 
धुप व् घी का दीपक प्रज्वलित करें और भगवान् शंकर की आरती करें 
भगवान् के आगे हाथ जोड़ें और उनसे अपनी पूजा में हुई भूल की क्षमा याचना अवश्ये करें 
सावन शिवरात्रि या सावन सोमवार का व्रत करते हैं उन्हें इस महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए. श्रावण मास में भोलेनाथ का अभिषेक दूध से किया जाता है, इसलिए हमारे शास्त्रों में श्रावण मास में दूध का सेवन वर्जित बताया गया है. श्रावण मास में भगवान शिव के भक्तों को कभी भी बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार बैंगन को अशुद्ध माना जाता है. कभी भी भोलेनाथ की पूजा में भूलकर भी तुलसी के पत्ते और केतकी के फूल का इस्तेमाल ना करें  
श्रावण शिवरात्रि कथा-  मान्यताओं के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया जा रहा था, तब मंथन के दौरान समुद्र से विष से भरा हुआ एक घड़ा बाहर आया. इस विष से भरे हुए घड़े को देवता और असुर दोनों ही लेने के लिए तैयार नहीं थे. विष के असर से दुनिया का नाश हो सकता था. तब विष के असर को खत्म करने और पूरे विश्व को नष्ट होने से बचाने के लिए भोलेनाथ ने विष का सेवन किया. विष के असर से भोलेनाथ का तापमान बढ़ता जा रहा था. तभी सभी देवताओं ने विष के असर को कम करने के लिए भोलेनाथ पर जल अर्पित करना आरंभ किया. तब से श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है 
सावन या श्रावण के महीने को बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र महीना माना जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह पांचवा महीना है और इसे साल का सबसे शुभ महीना माना जाता है. श्रावण का महीना भगवान शिव को समर्पित है.सावन के महीने में बहुत सारे व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं. इस महीने में सावन शिवरात्रि के अलावा, सावन सोमवर, हरियाली तीज, नाग पंचमी और अंत में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है. इस महीने में सभी शिव भक्त भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा और उपवास करते हैं 
प्रत्येक चंद्र माह का 14 वा दिन या अमावस्या से एक दिन पहले शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है. क्योकि यह दिन सावन के महीने में आता है, इसलिए इसे सावन या श्रावण की शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है.हालांकि, शास्त्रों में महा शिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व सबसे अधिक बताया गया है. शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था   
लिङ्गाष्टकम् ॥
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गम् निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् .
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥ १॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम् कामदहम् करुणाकर लिङ्गम् .
रावणदर्पविनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ २॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम् बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् .
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ३॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गम् फनिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम् .
दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ४॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम् पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् .
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ५॥
देवगणार्चित सेवितलिङ्गम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् .
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ६॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम् सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् .
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ७॥
सुरगुरुसुरवरपूजित लिङ्गम् सुरवनपुष्प सदार्चित लिङ्गम् .
परात्परं परमात्मक लिङ्गम्  तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ८॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ .
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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