एक बार समस्त देवताओं ने मिलकर एक यज्ञ करने का निश्चय किया . यज्ञ की तैयारी पूर्ण हो गयी . तभी वेद ने एक प्रश्न किया तो एक व्यावहारिक समस्या आ खड़ी हुई . ऋषि-मुनियों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ की हविष्य तो देवगण ग्रहण करते थे . लेकिन देवों द्वारा किए गए यज्ञ की पहली आहूति किसकी होगी ? यानी सर्वश्रेष्ठ देव का निर्धारण जरुरी था, जो फिर अन्य सभी देवों को यज्ञ भाग प्रदान करे .
1 ब्रह्मा-विष्णु-महेश परम् अात्मा हैं . इनमें से श्रेष्ठ कौन है ? इसका निर्णय आखिर हो तो कैसे ? भृगु ने इसका दायित्व सम्भाला . वह देवों की परीक्षा लेने चले . ऋषियों से विदा लेकर वह सर्व प्रथम अपने पिता ब्रह्मदेव के पास पहुँचे .
2 ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने के लिए भृगु ने उन्हें प्रणाम नहीं किया . इससे ब्रह्मा जी अत्यन्त कुपित हुए और उन्हें शिष्टता सिखाने का प्रयत्न किया .
भृगु को गर्व था कि वह तो परीक्षक हैं, परीक्षा लेने आए हैं . पिता-पुत्र का आज क्या रिश्ता ? भृगु ने ब्रह्म देव से अशिष्टता कर दी . ब्रह्मा जी का क्रोध बढ़ गया और अपना कमंडल लेकर पुत्र को मारने भागे . भृगु किसी तरह वहाँ से जान बचाकर भाग चले आए .
तप करते-करते उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया . विष्णु जी वराह अवतार का अपना कार्य पूर्ण कर वैकुण्ठ लौटे तो महालक्ष्मी नहीं मिलीं . वह उन्हें खोजने लगे .
श्रीहरि ने उन्हें तीनों लोकों में खोजा किन्तु तप करके माता लक्ष्मी ने भ्रमित करने की अनुपम शक्ति प्राप्त कर ली थी . उसी शक्ति से उन्होंने श्री हरि को भ्रमित रखा . आख़िर श्रीहरि को पता लग ही गया . लेकिन तब तक वह शरीर छोड़ चुकीं थीं . दिव्य दृष्टि से उन्होंने देखा कि लक्ष्मी जी ने चोलराज के घर में जन्म लिया है . श्रीहरि ने सोचा कि उनकी पत्नी ने उनका त्याग सामर्थ्य हीन समझने के भ्रम में किया है, इसलिए वह उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए अलौकिक शक्तियों का प्रयोग नहीं करेंगे .
ऐसा कहा जाता है कि निर्माण कार्य के लिए स्थान बनाने के लिए इन दोनों पेड़ों को जब काटा जाने लगा तो उनमें से खून की धारा फूट पड़ी . पेड़ काटना बन्द करके उसकी देवता की तरह पूजा होने लगी .
इस तरह भगवान श्रीनिवास (बाला जी) और पदमावती (महालक्ष्मी) का विवाह पूरे धूमधाम से हुआ . जिसमें सभी देवगण पधारे . भक्त मन्दिर में दान देकर भगवान पर चढ़ा ऋण उतार रहे हैं, जो कलियुग के अन्त तक जारी रहेगा
1 श्री पद्मावती समोवर मंदिर
तिरुचनूर (इसे अलमेलुमंगपुरम भी कहते हैं) तिरुपति से पांच किमी. दूर है.
यह मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर विष्णु की पत्नी श्री पद्मावती लक्ष्मी जी को समर्पित है. कहा जाता है कि तिरुमला की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक इस मंदिर के दर्शन नहीं किए जाते.
तिरुमला में सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक कल्याणोत्सव मनाया जाता है. यहां दर्शन सुबह 6.30 बजे से शुरु हो जाता हैं. शुक्रवार को दर्शन सुबह 8बजे के बाद शुरु होता हैं. तिरुपति से तिरुचनूर के बीच दिनभर बसें चलती हैं.
2 श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर
श्री गोविंदराजस्वामी भगवान बालाजी के बड़े भाई हैं. यह मंदिर तिरुपति का मुख्य आकर्षण है. इसका गोपुरम बहुत ही भव्य है जो दूर से ही दिखाई देता है. इस मंदिर का निर्माण संत रामानुजाचार्य ने 1130 ईसवी में की थी. गोविंदराजस्वामी मंदिर में होने वाले उत्सव और कार्यक्रम वैंकटेश्वर मंदिर के समान ही होते हैं. वार्षिक बह्मोत्सव वैसाख मास में मनाया जाता है. इस मंदिर के प्रांगण में संग्रहालय और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भी पार्थसारथी, गोड़ादेवी आंदल और पुंडरिकावल्ली का मंदिर शामिल है. मंदिर की मुख्य प्रतिमा शयनमूर्ति (भगवान की निंद्रालीन अवस्था) है. दर्शन का समय है- प्रात: 9.30 से दोपहर 12.30, दोपहर 1.00 बजे से शाम 6 बजे तक और शाम 7.00 से रात 8.45 बजे तक
3 श्री कोदंडरामस्वमी मंदिर
यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है. यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है. इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं शताब्दी में कराया था. इस मंदिर के ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है. उगडी और श्री रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.
4 श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर
कपिला थीर्थम भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर और थीर्थम है. मा यह मूर्ति कपिला मुनि द्वारा स्थापित की गई था और इसलिए यहां भगवान शिव को कपिलेश्वर के रूप में जाना जाता है. यह तिरुपति का एकमात्र शिव मंदिर है. यह तिरुपति शहर से तीन किमी.दूर उत्तर में, तिरुमला की पहाड़ियों के नीचे ओर तिरुमाला जाने के मार्ग के बीच में स्थित है कपिल तीर्थम जाने के लिए बस, ऑटो रिक्शा यातायात का मुख्य साधन हैं ओर सरलता से उपलब्ध भी है.
5 कपिला तीर्थम
यहां पर कपिला तीर्थम नामक पवित्र नदी भी है. जो सप्तगिरी पहाड़ियों में से बहती पहाड़ियों से नीचे कपिल तिर्थम मे आती हैं जो अति मनोरम्य लगता हैं. इसे अलिपिरि तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर श्री वेनुगोपाल ओर लक्ष्मी नारायण के साथ गौ माता कामधेनु कपिला गाय का य हनुमानजी का अनुपम मंदिर भी स्थित हैं.
यहां महाबह्मोत्सव, महा शिवरात्रि, स्खंड षष्टी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं. वर्षा ऋतु में झरने के आसपास का वातावरण बहुत ही मनोरम होता है.
6 श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी मंदिर
यह मंदिर तिरुपति से 12 किमी.पश्चिम में श्रीनिवास मंगापुरम में स्थित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री पद्मावती से शादी के बाद तिरुमला जाने से पहले भगवान वेंकटेश्वर यहां ठहरे थे. यहां स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की पत्थर की विशाल प्रतिमा को रेशमी वस्त्रों, आभूषणों और फूलों से सजाया गया है. वार्षिक ब्रह्मोत्सव और साक्षात्कार वैभवम यहां धूमधाम से मनाया जाता है.
7 श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी मंदिर
यह मंदिर तिरुपति से 40 किमी दूर, नारायणवनम में स्थित है. भगवान श्री वेंकटेश्वर और राजा आकाश की पुत्री देवी पद्मावती यही परिणय सूत्र में बंधे थे. यहां मुख्य रूप से श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी की पूजा होती है. यहां पांच उपमंदिर भी हैं. श्री देवी पद्मावती मंदिर, श्री आण्डाल मंदिर, भगवान रामचंद्र जी का मंदिर, श्री रंगानायकुल मंदिर और श्री सीता लक्ष्मण मंदिर. इसके अलवा मुख्य मंदिर से जुड़े पांच अन्य मंदिर भी हैं. श्री पराशरेश्वर स्वामी मंदिर, श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर, श्री शक्ति विनायक स्वामी मंदिर, श्री अगस्थिश्वर स्वामी मंदिर और अवनक्षम्मा मंदिर. वार्षिक ब्रह्मोत्सव मुख्य मंदिर श्री वीरभद्रस्वामी मंदिर और अवनक्शम्मा मंदिर में मनाया जाता है.
8 श्री वेद नारायणस्वामी मंदिर
नगलपुरम का यह मंदिर तिरुपति से 70 किमी दूर है. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर सोमकुडु नामक राक्षस का यहीं पर संहार किया था. मुख्य गर्भगृह में विष्णु की मत्स्य रूप में प्रतिमा स्थापित है जिनके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान हैं. भगवान द्वारा धारण किया हुआ सुदर्शन चक्र सबसे अधिक आकर्षक लगता है. इस मंदिर का निर्माण विजयनगर के राजा श्री कृष्णदेव राय ने करवाया था. यह मंदिर विजयनगर की वास्तुकला के दर्शन कराता है. मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव ब्रह्मोत्सव और सूर्य पूजा है. यह पूजा फाल्गुन मास की 12वीं, 13वीं और 14वीं तिथि को होती है. इस दौरान सूर्य की किरण प्रात: 6बजे से 6.15 मिनट तक मुख्य प्रतिमा पर पड़ती हैं. ऐसा लगता है मानो सूर्य देव स्वयं भगवान की पूजा कर रहे हों.
9 श्री वेणुगोपालस्वामी मंदिर
यह मंदिर तिरुपति से 58 किमी. दूर, कारवेतीनगरम में स्थित है. यहां मुख्य रूप से भगवान वेणुगोपाल की प्रतिमा स्थापित है. उनके साथ उनकी पत्नियां श्री रुक्मणी अम्मवरु और श्री सत्सभामा अम्मवरु की भी प्रतिमा स्थापित हैं. यहां एक उपमंदिर भी है.
10 श्री प्रसन्ना वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर
माना जाता है कि श्री पद्मावती अम्मवरु से विवाह के पश्चात् श्री वैंक्टेश्वरस्वामी अम्मवरु ने यहीं, अप्पलायगुंटा पर श्री सिद्धेश्वर और अन्य शिष्यों को आशीर्वाद दिया था. अंजनेयस्वामी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण करवेतीनगर के राजाओं ने करवाया था. कहा जाता है कि आनुवांशिक रोगों से ग्रस्त रोगी अगर यहां आकर वायुदेव की प्रतिमा के आगे प्रार्थना करें तो भगवान जरुर सुनते हैं. यहां देवी पद्मावती और श्री अंदल की मूर्तियां भी हैं. साल में एक बार ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है.
11 श्री चेन्नाकेशवस्वामी मंदिर
तल्लपका तिरुपति से 100 किमी. दूर है. यह श्री अन्नामचार्य (संकीर्तन आचार्य) का जन्मस्थान है. अन्नामचार्य श्री नारायणसूरी और लक्कामअंबा के पुत्र थे. अनूश्रुति के अनुसार करीब 1000 वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण और प्रबंधन मत्ती राजाओं द्वारा किया गया था.
12 श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर
श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर (इसे श्री पेरुमला स्वामी मंदिर भी कहते हैं) तिरुपति से 51 किमी. दूर नीलगिरी में स्थित है. माना जाता है कि यहीं पर प्रभु महाविष्णु ने मकर को मार कर गजेंद्र नामक हाथी को बचाया था. इस घटना को महाभगवतम में गजेंद्रमोक्षम के नाम से पुकारा गया है.
13 श्री अन्नपूर्णा-काशी विश्वेश्वरस्वामी
कुशस्थली नदी के किनारे बना यह मंदिर तिरुपति से 56 किमी. की दूरी पर,बग्गा अग्रहरम में स्थित है. यहां मुख्य रूप से श्री काशी विश्वेश्वर, श्री अन्नपूर्णा अम्मवरु, श्री कामाक्षी अम्मवरु और श्री देवी भूदेवी समेत श्री प्रयाग माधव स्वामी की पूजा होती है. महाशिवरात्रि और कार्तिक सोमवार को यहां विशेष्ा आयोजन किया जाता है.
14 स्वामी पुष्करिणी
इस पवित्र जलकुंड के पानी का प्रयोग केवल मंदिर के कामों के लिए ही किया जा सकता है. जैसे भगवान के स्नान के लिए, मंदिर को साफ करने के लिए, मंदिर में रहने वाले परिवारों (पंडित, कर्मचारी) द्वारा आदि. कुंड का जल पूरी तरह स्वच्छ और कीटाणुरहित है. यहां इसे पुन:चक्रित किए जाने व्यवस्था की भी व्यवस्था की गई है.
माना जाता है कि वैकुंठ में विष्णु पुष्करिणी कुंड में ही स्नान करते है, इसलिए श्री गरुड़जी ने श्री वैंकटेश्वर के लिए इसे धरती पर लेकर आए थे. यह जलकुंड मंदिर से सटा हुआ है. यह भी कहा जाता है कि पुष्करिणी के दर्शन करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और भक्त को सभी सुख प्राप्त होते हैं. मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व भक्त यहां दर्शन करते हैं. ऐसा करने से शरीर व आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं.
15 आकाशगंगा जलप्रपात
आकाशगंगा जलप्रपात तिरुमला मंदिर से तीन किमी. उत्तर में स्थित है. इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण यह है कि इसी जल से भगवान को स्नान कराया जाता है. पहाड़ी से निकलता पानी तेजी से नीचे धाटी में गिरता है. बारिश के दिनों में यहां का दृश्य बहुत की मनमोहक लगता है.
16 श्री वराहस्वामी मंदिर
तिरुमला के उत्तर में स्थित श्री वराहस्वामी का प्रसिद्ध मंदिर पुष्किरिणी के किनारे स्थित है. यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वराह स्वामी को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि तिरुमला मूल रूप से आदि वराह क्षेत्र था और वराह स्वामी की अनुमति के बाद ही भगवान वैंकटेश्वर ने यहां अपना निवास स्थान बनाया. ब्रह्म पुराण के अनुसार नैवेद्यम सबसे पहले श्री वराहस्वामी को चढ़ाना चाहिए और श्री वैंकटेश्वर मंदिर जाने से पहले यहां दर्शन करने चाहिए. अत्री समहित के अनुसार वराह अवतार की तीन रूपों में पूजा की जाती है: आदि वराह, प्रलय वराह और यजना वराह. तिरुमला के श्री वराहस्वामी मंदिर में इनके आदि वराह रूप में दर्शन होते हैं.
17 श्री बेदी अंजनेयस्वामी मंदिर
स्वामी पुष्किरिणी के उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर श्री वराहस्वामी मंदिर के ठीक सामने है. यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है. यहां स्थापित भगवान की प्रतिमा के हाथ प्रार्थना की अवस्था हैं. अभिषेक रविवार के दिन होता है और यहां हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है.
Koti Devi Devta
सावन में बाबा विश्वनाथ का दर्शन-पूजन हुआ महंगा, सभी व्यवस्थाओं में 25 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी
व्रत व पूजन के समय हनुमान जी के लाल पुष्प चढावे और लाल वस्त्र धारण करें
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