मेघालय में एक ऐसा गांव है जहां लोगों के पास नाम की जगह एक ट्यून मौजूद है. यह गांव कॉन्ग थांग है और इसे विसलिंग विलेज के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहुंचने के लिए पहले 8 से 10 किलोमीटर ट्रेकिंग करनी पड़ती थी. अच्छी बात यह है कि अब यहां एक मोटरेबल रोड बन चुका है और ट्रेक करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है. यहां प्रकृति के दर्शन किए जा सकते हैं और यहां रहने वाले खास समुदाय के लोगों से मिलकर उनसे बातें भी कर सकते हैं. यहां पर लोगों को बुलाने के लिए उनके नामों का नहीं बल्कि धुन का प्रयोग किया जाता है.
ट्यून नाम का ट्रेडिशन
इस अनोखे गांव को यहां के अनोखे ट्रेडिशन जिंगरवाई लाबी की वजह से जाना जाता है. पैदा होने के बाद एक मां अपने बच्चे को एक ट्यून देती है जैसे eoow या फिर ooeee आदि. यह ट्यून ही बच्चे की पहचान बन जाती है. बच्चे के लिए मां को इसके अलावा भी एक और ट्यून ढूंढनी पड़ती है ताकि यह ट्यून केवल बच्चे के ही नाम रह सके. यहां की एक और अन्य बात यह है कि लोग एक दूसरे से बात भी ट्यून के माध्यम से ही करते हैं. गांव वालों के मुताबिक किसी भी एक नाम को दूसरे व्यक्ति को नहीं दिया जाता है. हर व्यक्ति का नाम अलग है. ट्यून वाले नाम भी दो तरह के होते हैं. एक व्यक्ति को बुलाने के लिए और दूसरा बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए. गांव वालों के दो नाम हैं एक नियमित और एक गाने के रूप में.
इस गांव का केवल यही एक दिलचस्प हिस्सा नहीं है। इस गांव में 600 से ज्यादा लोग रहते हें। इसका मतलब है कि एक समय में यहां 600 से ज्यादा धुनें सुनी जा सकती हैं। दिलचस्प बात ये है कि इस गांव के लोग शर्मीले होते हैं, और बाहरी लोगों के साथ बहुत जल्दी घुल मिल नहीं पाते। इस गांव में सड़क के किनारे चलते समय आपको हूट और सीटी की कई आवाजें सुनाई देंगी। ये परंपरा कहां से आई कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस तरह के रीति-रिवाज इस गांव की स्थापना के बाद से अस्तित्व में हैं।
यहां जब भी कोई महिला गर्भवती होती है, तो वह अपने बच्चे के लिए लोरी के बारे में सोचती है। मां अपने बच्चों को उनकी गोद में खास धुन के साथ यह संगीत का ज्ञान देती हैं। बच्चे के जन्म के बाद उसके आसपास के वयस्क उस धुन को लगातार गुनगुनाते रहते हैं, ताकि उसकी पहचान इस ध्वनि से हो जाए। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो यह धुन जिसे जिंगरवाई लॉबेई के नाम से भी जाना जाता है, उनके जीवन का हिस्सा बन जाती है। हालांकि हर किसी का नाम हमारे जैसा ही होता है, लेकिन मां अपने बच्चों को गाकर या सीटी बजाकर ही बुलाती है। सबसे अनोखी बात तो यह है कि यहां हर घर के लिए भी धुन अलग होती है। धुन या लोरी से ग्रामीण बता सकते हैं कि व्यक्ति किस घर का है।
आप भी सोच रहे होंगे कि इनकी धुन और लोरी आखिर कैसी होती होगी, तो बता दें कि लोरी की धुन आमतौर पर प्रकृति और पक्षियों से इंस्पायर है। गांव के लोगों के बीच यह धारणा है कि जंगल में भूत और आत्मा का वास है। अगर वे किसी का नाम पुकारते और सुनते हैं, तो वह उस व्यक्ति पर अपना बुरा जादू कर देंगे और वह व्यक्ति बीमार पड़ जाएगा। इसलिए गीतों को उनकी रक्षा के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
यह जगह सबसे खूबसूरत जगहों में से एक मानी जाती है. यह जगह शिलांग से तीन घंटे दूर है. यहां पर जाने के लिए किसी टिकट की जरूरत नहीं होती है. यह जरूर ध्यान रखें कि इस जगह पर दिन के समय ही पहुंचें ताकि आप सारी चीजों को अच्छी तरह देख सकें.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
Leave a Reply