नई दिल्ली. राजनीतिक पार्टियों द्वारा ‘फ्रीबीज’ यानी मुफ्त की सौगातें बांटने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है. शीर्ष अदालत ने इस मामले को 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया है. चुनाव के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा और बाद में उनके अमल से अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अदालत का यह फैसला आया है. कोर्ट ने कहा कि ‘फ्रीबीज’ टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है. हालांकि सभी योजना पर खर्च फ्रीबीज नहीं होते. यह मसला चर्चा का है और अदालत के दायरे से बाहर है. अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाकर चर्चा करनी चाहिए. इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा.’
मुफ्त सौगात को पहचानने की जरूरत-कोर्ट-
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि कोर्ट ये फैसला करेगा कि मुफ्त की सौगात होती क्या है? कोर्ट ने कहा कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुंच, शिक्षा तक पहुंच को मुफ्त सौगात माना जा सकता है. क्या किसानों को मुफ्त में खाद, बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का वादा किया जाता है तो इसे मुफ्त सौगात कहेंगे या नहीं. सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका क्या है, इसे देखना होगा.
राजनीतिक दलों के चुनावी वादों पर रोक नहीं-कोर्ट-
SC ने बीते बुधवार को कहा था कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता. साथ ही ‘फ्रीबीज’ (मुफ्त सौगात) शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा. कोर्ट ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख किया और कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नहीं चाह रहे, बल्कि अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते हैं.
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