नीदरलैंड में मीट पर लगा बैन, जलवायु संकट से देश को बचाने के लिए सरकार का फैसला

नीदरलैंड में मीट पर लगा बैन, जलवायु संकट से देश को बचाने के लिए सरकार का फैसला

प्रेषित समय :17:15:34 PM / Sun, Sep 18th, 2022

एम्सटर्डम. नीदरलैंड के एक शहर हालेम में मीट बैन कर दिया गया है. नीदरलैंड दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है. यहां पर पब्लिक प्लेसेज में मीट के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगा दिया है. मीट बैन करने का मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैस के उपभोग में कमी लेकर आना है. हालेम में मीट को क्लाइमेट में आने वाले बदलाव की सबसे बड़ी वजह मानते हुए प्रतिबंध लगा दिया गया है. यहां पर मीट के उत्पादों में होती बढ़ोतरी को देख यह फैसला लिया गया है. तो चलिए आपको बताते हैं कि यह फैसला क्यों लिया गया

मीट ने फैलाया संकट

हालेम में बसों, शेल्टर्स और किसी भी पब्लिक प्लेस में मीट के विज्ञापन नजर नहीं आएंगे. ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि मीट सेक्टर की ओर से बड़े पैमाने पर शिकायतें आने लगी थी. उनका कहना कि देश को लोगों के लिए क्या खाना अच्छा है इस चीज को बताने के लिए यह जरूरी है. एक स्टडी में भी इस बात का खुलासा हुआ कि दुनिया में जैसे खाने का उत्पादन हो रहा है, इसके कारण एक तिहाई ग्रीन हाउसेज गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ गया है. जंगल जो कॉर्बन डाइऑक्साइड अब्जॉब्र करते हैं, वहां पर अब जानवर नहीं जा सकते. साथ ही उनको जो खाना खिलाया जाता है उसमें नाइट्रोजन की मात्रा भी बहुत ही ज्यादा होती है, जिसके कारण हवा और पानी में प्रदूषण फैल रहा है. जलवायु परिवर्तन और ओजोन की परतें भी हल्की होती जा रही हैं.

20 फीसदी लोग हर रोज खाते हैं मांस

नीदरलैंड में मीट बहुत ही ज्यादा मात्रा में उपयोग किया जाता है. डच सेंट्रल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 95 फीसदी डच लोग मीट खाते हैं. इनमें से 20 फीसदी लोग हर रोज मांस का सेवन करते हैं. इसलिए यहां पर मीट को बैन किया गया ताकि इस प्रतिशत को कम किया जाए.

मीट ऐसे डालता है पर्यावरण पर असर

कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञों के अनुसार, मांसाहार जलवायु परिवर्तन को जोड़ते हैं. उनका मानना है कि मांस खाने से दुनिया के कार्बन फुटप्रिंट पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, मीट इंडस्ट्री और पशुपालन ग्रीन हाउस की गैसों के उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्त्रोत है. कई रिसर्चों में यह बात साबित हुई है कि ग्लोबल फूड प्रोडक्शन से प्लेनेट हीटिंग की समस्या बढ़ रही है. कार्बन डाइऑक्साइड को अब्जॉर्ब करने वाले जंगलों को जानवरों के चरने के लिए काटा जाता है, जिसके कारण पेड़-पौधों की कमी होती जा रही है. चारा उगाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कारक नाइट्रोजन से भरपूर होते हैं, जिससे वायु और जल प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और ओजोन की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं. ज्यादा पशुधन से मीथेन गैस भी बढ़ रही है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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