26 सितंबर 2022 को देवी आराधना की पूजा और कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त: प्रातः 06 :11 मिनट से प्रातः 07: 51 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त: 26 सितंबर, प्रातः 11: 49 मिनट से 12: 37 मिनट तक है.
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य:-
आरोग्य सम्पदः.शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥
विघ्ननाशक मंत्र:-
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी.
एवमेव त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्॥
आरोग्य एवं सौभाग्य:-
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्.
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
विपत्ति नाश के लिए:-
शरणागतर्दिनार्त परित्राण पारायणे.
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
सर्वकल्याण हेतु:-
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके.शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
बाधा मुक्ति एवं धन:-
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः.
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यंति न संशय॥
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नवरात्र मे पूजा कैसे करें पवित्रीकरण
बायें हाथ में जल लेकर उसे दाये हाथ से ढक कर मंत्र पढे एवं मंत्र पढ़ने के बाद इस जल को दाहिने हाथ से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़क ले
॥ ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें
ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु - मुख को
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु - नासिका के छिद्रों को
ॐ चक्षुर्में तेजोऽस्तु - दोनो नेत्रों को
ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु - दोनो कानो को
ॐ बह्वोर्मे बलमस्तु - दोनो बाजुओं को
ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु - दोनों जंघाओ को
ॐ अरिष्टानि मे अङ्गानि सन्तु - सम्पूर्ण शरीर को
आसन पूजन
अब माता के आसन के नीचे चन्दन से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत , पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें
ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।. त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
दिग् बन्धन
बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः. लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥
धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः. द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा . संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
श्री गुरु ध्यान
अस्थि चर्म युक्त देह को हिं गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है.
द्विदल कमलमध्ये बद्ध संवित्समुद्रं. धृतशिवमयगात्रं साधकानुग्रहार्थम् ॥
श्रुतिशिरसि विभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्तिं. शमित तिमिरशोकं श्री गुरुं भावयामि ॥
ह्रिद्यंबुजे कर्णिक मध्यसंस्थं. सिंहासने संस्थित दिव्यमूर्तिम् ॥
ध्यायेद् गुरुं चन्द्रशिला प्रकाशं. चित्पुस्तिकाभिष्टवरं दधानम् ॥
श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः ध्यानं समर्पयामि.
॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि, श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः ॥
श्री जगदम्बा दुर्गा पूजन - ध्यान
खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः ,
शङखं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांङ्गभूषावृताम्.
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ।।
अक्षस्त्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्यं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्.
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।।
घण्टाशूलहलानि शङखमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्.
गौरीदेहसमुभ्दवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ।।
वस्त्र
सर्वभूषादिके सौम्ये लोक लज्जानिवारणे. मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि.
चन्दन
॥ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं. विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः चन्दनं समर्पयामि. ( मलय चन्दन लगाये )
हरिद्राचूर्ण
हरिद्रारञ्जिते देवी सुख्सौभाग्यदायिनि. तस्मात् त्वां पूजयाम्यत्र सुखं शान्ति प्रयच्छ मे ॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः हरिद्रां समर्पयामि. ( हल्दी का चुर्ण चढ़ाये )
कुङ्कुम
कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम्. कुङ्कुमेनार्चिता देवी कुङ्कुमं
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः कुङ्कुमं समर्पयामि. ( कुङ्कुम चढ़ाये )
सिन्दूर
सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम्. अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरी ॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि. ( सिन्दूर चढ़ाये )
अक्षत
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः. मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरी॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि. ( बिना टूटा चावल चढ़ाये )
दीप
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया. दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः दीपं दर्शयामि.
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः क्षमायाचनां समर्पयामि
ना तो मैं आवाहन करना जानता हूँ , ना विसर्जन करना जानता हूँ और ना पूजा करना हीं जानता हूँ. हे परमेश्वरी क्षमा करें. हे परमेश्वरी मैंने जो मंत्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है , वह सब आपकी दया से पूर्ण हो.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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