भैरवनाथ जी के रहस्य एवं साधना

भैरवनाथ जी के रहस्य एवं साधना

प्रेषित समय :21:20:15 PM / Wed, Oct 5th, 2022

भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला. ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है. भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं. हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है. इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है.
भैरव उत्पत्ति
उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई. बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव. मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव.  पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है. भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है. नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है.
लोक देवता
  लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है. कई समाज के ये कुल देवता हैं और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है. यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान भैरव किसी के शरीर में नहीं आते.
पालिया महाराज
  सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बना रखे हैं दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है. ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं. उक्त स्थान पर मत्था टेकना मान्य नहीं है.
भैरव मंदिर
 भैरव का प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है. काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है. काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है. तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है. नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है. यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है. इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है.
काल भैरव
काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था. यह भगवान का साहसिक युवा रूप है. उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है. व्यक्ति में साहस का संचार होता है. सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है. काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है.
काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- .. ॐ भैरवाय नम:..
बटुक भैरव
  'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:. ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे..'
अर्थात्
 ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है. बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है. इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं. उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है. यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है. 
उक्त आराधना के लिए मंत्र है-  ..ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ..
भैरव तंत्र
  योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है.
भैरव आराधना से शनि शांत
 एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है. आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है. पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है. उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं. आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं. जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें. दांत और आंत साफ रखें. पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें. अपवि‍त्रता वर्जित है.
भैरव चरित्र
भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें. दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है. वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं. उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है.
उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना. जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है. उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है.
श्री भैरव के आठ रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं. जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए. सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है. तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है. वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव.
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है.
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं.
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है.
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है.
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों. शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (१०८ बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से ४१ दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी.
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है. भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं. वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है. ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे.
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है. पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी. इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है. तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है.
 तांत्रोक्त भैरव कवच !!
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः !
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु !!
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा !
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः !!
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे !
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः !!
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा !
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः !!
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः !
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः !!
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु !
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च !!
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः !
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः !!
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः !
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा !!
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा !
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा !!

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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