गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) स्थानीय नेताओं को तरजीह दे रही है। चुनाव प्रबंधन को नई दिशा देते हुए पार्टी बूथ से भी नीचे हर घर तक पहुंच रही है। इसके लिए चुनाव प्रबंधन में जुटी टीम को भी नई भूमिका में तैनात कर रही है। इससे पार्टी हर मतदाता तक तो पहुंच बढ़ा ही रही है, चुनाव प्रबंधन भी पहले से ज्यादा प्रभावी हो रहा है। इसमें दूसरे राज्यों से आए नेताओं पर स्थानीय नेताओं को ज्यादा महत्व मिल रहा है।
भाजपा के चुनाव प्रबंधन में दूसरे राज्यों के नेताओं की भूमिका अहम रही है। गुजरात में भी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के चुनाव प्रबंधन से जुड़े कई नेता और कार्यकर्ता विभिन्न भूमिकाओं में चुनावी प्रबंधन से जुड़े हुए हैं। हालांकि पार्टी ने इस बार किसी एक नेता और एक टीम को पूरे विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी नहीं दी है। हर विधानसभा क्षेत्र में कई नेता और टीम काम कर रही है। उनमें भी स्थानीय नेता को निर्णायक भूमिका में रखा गया है। बाहरी नेताओं की भूमिका सहयोगात्मक और निगरानी तक सीमित है।
हर क्षेत्र का लिया जा रहा है फीडबैक: पार्टी में कई बार दूसरे राज्यों से आए नेताओं के हाथ में चुनावी कमान होने से स्थानीय नेताओं की नाराजगी को नहीं झेलना पड़ेगा। साथ ही, काम भी ज्यादा प्रभावकारी तरीके से हो पाएगा। दो महीने पहले से ही नेता अपने काम से जुड़े हुए हैं। अब चुनावों तक यह टीम गुजरात में ही रहेंगी। कुछ नेता लौट भी आए हैं और कुछ नए नेता जुड़े भी हैं। इसके साथ ही पार्टी हर रोज हर क्षेत्र का फीडबैक भी ले रही है। उम्मीदवारों की घोषणा में इसका असर भी देखने को मिलेगा।
इस बीच पार्टी ने अपने बूथ प्रबंधन को भी इस बार और ज्यादा मजबूत करने की कोशिश की है। पन्ना प्रमुख के साथ हर पन्ने में शामिल परिवारों से समिति भी बनाई जा रही है। यह एक नया प्रयोग है, लेकिन इसमें दिक्कत यह आ रही है कि कई परिवार इससे जुड़ने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में चुनाव बाद ही इसका आंकलन किया जाएगा कि यह कितना सफल रहता है।
गुजरात में सबसे ज्यादा समय से सत्ता में है भाजपा: गुजरात की स्थिति अन्य राज्यों से अलग है। यहां पर भाजपा लगातार सबसे ज्यादा समय से सरकार में है। इस दौरान एक पूरी नई पीढ़ी आ गई है, जिसने केवल भाजपा को ही सत्ता में देखा है। उसमें बदलाव देखने की मंशा हो सकती है। दरअसल 2018 में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में चुनाव हार गई थी। ऐसे में सत्ता विरोधी माहौल की काट जरूरी है। यही वजह है कि उसने साल भर पहले राज्य की पूरी सरकार बदल दी थी। अब कई विधायकों के भी टिकट काटे जा सकते हैं, लेकिन ज्यादा काट से अंदरूनी नुकसान की भी आशंका रहती है। गौरतलब है कि 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने पिछली बार 99 सीटें जीतकर लगातार छठी बार स्पष्ट बहुमत हासिल किया था। भाजपा के पास राज्य की सभी 26 लोकसभा सीटें भी हैं।
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