मंत्रविद्या असम्भव को सम्भव बनाती हैं!

मंत्रविद्या असम्भव को सम्भव बनाती हैं!

प्रेषित समय :21:07:30 PM / Wed, Nov 9th, 2022

मंत्रविद्या असम्भव को सम्भव बनाती हैं.  मंत्र चिकित्सा अध्यात्म विद्या का महत्त्वपूर्ण आयाम है. इसके द्वारा असाध्य रोगों को ठीक किया जा स कता है. कठिनतम परिस्थितियों पर विजय पायी जा सकती है. व्यक्तित्व की कैसी भी विकृतियाँ व अवरोध दूर किये जा सकते हैं. अनुभव कहता है कि मंत्र विद्या से असम्भव- सम्भव बनता है, असाध्य सहज साध्य होता है. जो इस विद्या के सिद्धान्त एवं प्रयोगों से परिचित हैं वे प्रकृति की शक्तियों को मनोनुकूल मोड़ने में समर्थ होते हैं. प्रारब्ध उनके वशवर्ती होता है. जीवन की कर्मधाराएँ उनकी इच्छित दिशा में मुड़ने और प्रवाहित होने के लिए विवश होती हैं. इन पंक्तियों को पाठक अतिशयोक्ति समझने की भूल न करें. बल्कि इसे विशिष्ट साधकों की कठिन साधना का सार निष्कर्ष मानें.
मंत्र है क्या ?
‘मननात् त्रायते इति मंत्रः’
जिसके मनन से त्राण (रक्षा, बचाव, आश्रय, शरण) मिले. यह अक्षरों का ऐसा दुर्लभ एवं विशिष्ट संयोग है, जो चेतना जगत् को आन्दोलित एवं उद्वेलित करने में सक्षम होता है. कई बार बुद्धिशील व्यक्ति मंत्र को पवित्र विचार के रूप में परिभाषित करते हैं. उनका ऐसा कहना- मानना गलत नहीं है.
उदाहरण के लिए गायत्री महामंत्र सृष्टि का सबसे पवित्र विचार है. इसमें परमात्मा से सभी के लिए सद्बुद्धि एवं सन्मार्ग की प्रार्थना की गयी है. लेकिन, इसके बावजूद इस परिभाषा की सीमाएँ सँकरी हैं. इसमें मंत्र के सभी आयाम नहीं समा सकते.
मंत्र का कोई अर्थ हो भी सकता है और नहीं भी,
यह एक पवित्र विचार हो भी सकता है और नहीं भी,
कई बार इसके अक्षरों का संयोजन इस रीति से होता है कि उससे कोई अर्थ प्रकट होता है और कई बार यह संयोजन इतना अटपटा होता है कि इसका कोई अर्थ नहीं खोजा जा सकता.
दरअसल, मंत्र की संरचना किसी विशेष अर्थ या विचार को ध्यान में रख कर की नहीं जाती. इसका तो एक ही मतलब है- ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की किसी विशेष धारा से सम्पर्क, आकर्षण, धारण और उसके सार्थक नियोजन की विधि का विकास है.
मंत्र कोई भी हो वैदिक अथवा पौराणिक या फिर तांत्रिक - इसी विधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं. इस क्रम में यह भी ध्यान रखने की बात है कि मंत्र की संरचना या निर्माण कोई बौद्धिक क्रियाकलाप नहीं है.
कोई भी व्यक्ति, भले ही कितना भी प्रतिभावान्य बुद्धिमान क्यों न हो, वह मंत्रों की संरचना नहीं कर सकता, यह तो तप साधना के शिखर पर पहुँचे सूक्ष्म दृष्टाओं व दिव्य
दर्शियों का काम है.
यह मंत्र सिद्धि केवल मंत्र को रटने या दुहराने भर से नहीं मिलती और यही वजह है कि सालों-साल किसी मंत्र की साधना करने वालों को बुरी तरह से निराश होना पड़ता है. पहले तो उनको कोई फल ही नहीं मिलता और यदि किसी तरह कुछ मिला भी तो वह काफी नगण्य व आधा-अधूरा सा होता है.
इस स्थिति के लिए दोष मंत्र का नहीं, स्वयं साधक का है. ध्यान रहे किसी मंत्र की साधना में साधक को मंत्र की प्रकृति के अनुसार अपने जीवन की प्रकृति बनानी पड़ती है.
मंत्र साधना के विधि
विधान के सम्यक् निर्वाह के साथ उसे अपने खानपान, वेश-विन्यास, आचरण-व्यवहार देवता या देवी की प्रकृति के अनुसार ढालना पड़ता है.
उदाहरण के लिए कहीं तो श्वेत वस्त्र, श्वेत खानपान आवश्यक होते हैं, तो कहीं यह रंग पीला हो जाता है. आचरण-व्यवहार में भी पवित्रता का सम्यक् समावेश जरूरी है. यदि सब कुछ सही रीति से निभाया जाय तो मंत्रका सिद्ध होना अनिवार्य है.
मंत्र सिद्ध होने का मतलब है कि मंत्र की शक्तियों का साधक की चेतना में क्रियाशील हो जाना, यह स्थिति कुछ इसी तरह से है जैसे कि कोई श्रमशील किसान किसी महानदी से पर्याप्त बड़ी नहर खोदकर उसका पानी अपने खेतों तक ले आये, जैसे नदी से नहर आने पर किसान के समूचे क्षेत्र में जल धाराएँ उफनती-उमड़ती रहती हैं. उसी तरह से मंत्र सिद्ध होने पर देव शक्ति का ऊर्जा प्रवाह हर पल-हर क्षण साधक की अन्तर्चेतना में उफनता-उमड़ता रहता है. इसका वह मनचाहे ढंग से अपने संकल्प के अनुसार नियोजन कर सकता है. मंत्र की शक्ति व प्रकृति के अनुसार वह असाध्य बीमारियों को ठीक कर सकता है.
एक सत्य-कथा
पश्चिम बंगाल के स्वामी निगमानन्द ऐसे ही मंत्र सिद्ध महात्मा थे. उन्होंने अनेकों मंत्रों-महामंत्रों को सिद्ध किया था. उनकी वाणी, संकल्प, दृष्टि व स्पर्श सभी कुछ चमत्कारी थे. मरणासन्न रोगी उनके संकल्प मात्र से ठीक हो जाते थे. एक बार ये महात्मा सुमेरपुकुर नाम के गाँव में गये. साँझ हो चुकी थी, आसमान से अँधियारा झरने लगा था. गाँव के जिस छोर पर वह पहुँचे वहाँ सन्नाटा था. आसपास से गुजरने वाले उदास और मायूस थे. पूछने पर पता चला कि गाँव के सबसे बड़े महाजन ईश्वरधर का सुपुत्र महेन्द्रलाल महीनों से बीमार है. आज तो उसकी स्थिति कुछ ऐसी है कि रात कटना भी मुश्किल है.
गाँव के वृद्ध वैद्य ने पूछा- यह किस औषधि से हो सका ?निगमानन्द बोले- वैद्यराज यह औषधि प्रभाव से नहीं मंत्र के प्रभाव से हुआ है. यह जगन्माता के मंत्र का असर है. जब औषधियाँ विफल हो जाती हैं सारे लौकिक उपाय असफल हो जाते हैं, तब एक मंत्र ही है जो मरणासन्न में जीवन डालता है. मंत्र चिकित्सा कभी भी विफल नहीं होती है. हाँ, इसके साथ तप के प्रयोग जुड़े होने चाहिये.
मंत्र जप के प्रभाव
जब तक किसी विषय वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती तो व्यक्ति वह कार्य आधे अधूरे मन से करता है और आधे-अधूरे मन से किये कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है, मंत्र के बारे में भी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, मंत्र केवल शब्द या ध्वनि नहीं है, मंत्र जप में समय, स्थान, दिशा, माला का भी विशिष्ट स्थान है. मंत्र-जप का शारीरिक और मानसिक प्रभाव तीव्र गति से होता है.
इन सब प्रश्नों का समाधान आपके लिये
गुरु दीक्षा
मन्त्र जप या साधना से पूर्व सबसे जरूरी है गुरु के द्वारा दीक्षा ?
दीक्षा प्राप्त करने से कोई चमत्कार नहीं हो जायेगा अपितु आपको एक अभिभावक मिल जायेगा जो आपको मार्ग दर्शन देगा, माला घुमाते रहे और हुआ कुछ नहीं, इस
परिस्थिति से बचाएगा. अपने अनुभवों से आपको गलतियां करने से रोकेगा जिससे आपके सफल होने में समय और मेहनत कम लगेगी.
मंत्र जप
किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही 'मंत्र-जप' कहलाता है, लेकिन प्रश्न यह उठता है, कि वास्तव में मंत्र जप क्या है ? जप से क्या परिणाम होते निकलता है ?
व्यक्त-अव्यक्त चेतना
1. व्यक्त चेतना (Conscious mind).
2. अव्यक्त चेतना (Unconscious mind).
हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं. अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएं, गुप्त भावनाएं इत्यादि विद्यमान हैं.
व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यंत शक्तिशाली है. हमारे संस्कार, वासनाएं - ये सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं. किसी मंत्र का जब ताप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है. मंत्र में एक लय (Rythm) होता है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है. मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नाड़ियों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगाती है.
मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं
1. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological effect)
2. ध्वनि प्रभाव (Sound effect)
मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ने से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है.
मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया शक्ति भी तीव्र बन जाति है, जिसके परिणाम स्वरुप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है.
मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते है.
मंत्र जप और स्वास्थ्य
लगातार मंत्र जप करने से उच्च रक्तचाप, गलत धारणायें, गंदे विचार आदि समाप्त हो जाते हैं.
मंत्र में विद्यमान हर एक बीजाक्षर शरीर की नसों को उद्दिम करता है, इससे शरीर में रक्त संचार सही ढंग से गतिशील रहता है.
"क्लीं ह्रीं" इत्यादि बीजाक्षरों का एक लयात्मक पद्धति से उच्चारण करने पर ह्रदय तथा फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है व् उनके विकार नष्ट होते हैं.
जप के लिये समय
जप के लिये ब्रह्म मुहूर्त को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उस समय पूरा वातावरण शान्ति पूर्ण रहता है, किसी भी प्रकार का कोलाहर या शोर नहीं होता, कुछ विशिष्ट साधनाओं के लिये रात्रि का समय अत्यंत प्रभावी होता है.
गुरु के निर्देशानुसार निर्दिष्ट समय में ही साधक को जप करना चाहिए, सही समय पर सही ढंग से किया हुआ जप अवश्य ही फलप्रद होता है.
अपूर्व आभा
मंत्र जप करने वाले साधक के चेहरे पर एक अपूर्व आभा आ जाति है. आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाय, तो जब शरीर शुद्ध और स्वास्थ होगा, शरीर स्थित सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करेंगे, तो इसके परिणाम स्वरुप मुखमंडल में नवीन कांति का प्रादुर्भाव होगा ही.
जप के लिये माला
जप करने के लिए माला एक साधन है ?
शिव या काली के लिए रुद्राक्ष माला,
हनुमान के लिए मूंगा माला,
लक्ष्मी के लिए कमलगट्टे/स्फटिक की माला,
गुरु के लिए हल्दी/तुलसी स्फटिक माला
इस प्रकार विभिन्न मंत्रो के लिए विभिन्न मालाओं का उपयोग करना पड़ता है.
मानव शरीर में हमेशा विद्युत् का संचार होता रहता है. यह विद्युत् हाथ की उँगलियों में तीव्र होता है. इन उँगलियों के बीच जब माला फेरी जाती है, तो लयात्मक मंत्र-ध्वनि (Rythmic sound of the Hymn) तथा उँगलियों में माला का भ्रमण दोनों के समन्वय से नूतन ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है.
जप माला के स्पर्श ( जप के समय में ) से कई लाभ हैं
रुद्राक्ष से कई प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं.
कमलगट्टे की माला से शीतलता एव आनंद की प्राप्ति होती है.
स्फटिक माला से मन को अपूर्व शान्ति मिलती है.
दिशा
दिशा को भी मंत्र जप में आत्याधिक महत्त्व दिया गया है. प्रत्येक दिशा में एक विशेष प्रकार की तरंगे (Vibrations) प्रवाहित होती रहती है. सही दिशा के चयन से शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है.
जप-तप
जप में तब पूर्णता आ जाती है, पराकाष्टा की स्थिति आ जाती है, उसे 'तप' कहते हैं.
जप में एक लय होता है, लय का सरथ है ध्वनि के खण्ड, दो ध्वनि खण्डों की बीच में निःशब्दता है. इस निःशब्दता पर मन केन्द्रित करने की जो कला है, उसे तप कहते हैं. जब साधक तप की स्थिति को प्राप्त करता है, तो उसके समक्ष सृष्टि के सारे रहस्य अपने आप अभिव्यक्त हो जाते हैं. तपस्या में परिणति प्राप्त करने पर धीरे-धीरे हृदयगत अव्यक्त नाद सुनाई देने लगता है, तब वह साधक उच्चकोटि का योगी बन जाता है. ऐसा साधक गृहस्थ भी हो सकता है और संन्यासी भी.
कर्म विध्वंस
मनुष्य को अपने जीवन में जो दुःख, कष्ट, दारिद्य, पीड़ा, समस्याएं आदि भोगनी पड़ती हैं, उसका कारण प्रारब्ध है. जप के माध्यम से प्रारब्ध को नष्ट किया जा सकता है और जीवन में सभी दुखों का नाश कर, इच्छाओं को पूर्ण किया जा सकता है, इष्ट देवी या देवता का दर्शन प्राप्त किया जा सकता है.
गुरु उपदेश
मंत्र को सदगुरू के माध्यम से ही ग्रहण करना उचित होता है. सदगुरू ही सही रास्ता दिखा सकते हैं, मंत्र का उच्चारण, जप संख्या, बारीकियां समझा सकते हैं, और साधना काल में विपरीत परिस्थति आने पर साधक की रक्षा कर सकते हैं.
साधक की प्राथमिक अवस्था में सफलता व् साधना की पूर्णता मात्र सदगुरू की शक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होती है.
यदि साधक द्वारा अनेक बार साधना करने पर भी सफलता प्राप्त न हो, तो सदगुरू विशेष शक्तिपात द्वारा उसे सफलता की मंजिल तक पहुंचा देते हैं.
इस प्रकार मंत्र जप के माध्यम से जीवन के दुखों को मिटाया जा सकता है तथा अदभुद आनन्द, असीम शान्ति व् पूर्णता को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि मंत्र जप का अर्थ मंत्र कुछ शब्दों को रटना नहीं है, अपितु मंत्र जप का अर्थ है - जीवन को पूर्ण बनाना. 

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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