गांधीनगर. गांधीनगर उत्तरी सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन शुल्क जमा करने के लिए महेंद्रभाई पाटनी दो बोरियों में एक रुपये के सिक्के लेकर पहुंचे थे, जिसकी कुल कीमत 10 हजार रुपये थी. पाटनी चुनाव आयोग कार्यालय में नामांकन फीस जमा कराने के लिए वह बोरियों में सिक्के जमा करके लाए थे.
अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए महेंद्रभाई पाटनी ने ये रकम अपने समर्थकों से मांगकर इकट्ठा की हैं. निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे महेंद्र पाटनी पेशे से मजदूर रहे है. उन्होंने कहा कि मैं एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में अपना जीवन यापन करता हूं. 521 झोपड़ियां थीं, जिन्हें एक बड़े होटल के लिए तोड़ दिया गया था. इससे कई बेरोजगार हो गए थे और अब इन्हें घर, पानी पीने और बिजली की कमी है. उन्होंने कहा कि ये पैसे मैंने मेहनत करके जुटाए हैं. मैंने केवल उन्हीं लोगों से चंदा लिया है, जिन्होंने वादा किया है कि वो मुझे वोट देंगे.
निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे महेंद्रभाई पाटिल ने कहा कि चुनाव के नजदीक आते ही सरकार के कुछ प्रतिनिधि और राजनेता आते हैं और हमें आश्वासन देते हैं, लेकिन बाद में अपने वादे को भूल जाते हैं. यह सिलसिला 1990 के दशक से चल रहा है. उन्होंने कहा कि उन्हें उन लोगों का समर्थन मिल रहा है, जो चाहते हैं कि सरकार से कुछ ही मांगें पूरी की जाएं. महेंद्र पाटनी ने कहा कि अगर सरकार हमारी मांगों को पूरा करती है, तो मुझे चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है. हम चाहते हैं कि सरकार हमें रहने के लिए एक स्थायी स्थान प्रदान करे ताकि हमें एक और विस्थापन का सामना न करना पड़े. हम सरकार से नियमित उत्पीड़न के मुद्दे को हल करने की भी मांग करते हैं, जो दिहाड़ी मजदूरों को नागरिक अधिकारियों द्वारा अधीन किया जाता है. उन्होंने कहा कि स्लम निवासियों की बीपीएल सूची भी होनी चाहिए, ताकि ठेकेदारों द्वारा सरकारी कार्यालयों में काम करने वालों को स्थायी नौकरी के साथ-साथ उचित वेतन मिल सके और बिचौलियों को हटाया जा सके.
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