3 दिसम्बर 2022 शनिवार को श्रीमद् भगवद् गीता जयंती

3 दिसम्बर 2022 शनिवार को श्रीमद् भगवद् गीता जयंती

प्रेषित समय :20:56:12 PM / Fri, Dec 2nd, 2022

 *धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए प्रतिवर्ष इस तिथि को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है. गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है.
 *गीता दुनिया के उन चंद ग्रंथों में शुमार है, जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जा रहे हैं और जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा रही है. इसके 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान है जो कभी ना कभी हर इंसान के सामने आती है. आज हम आपको इस लेख में गीता के 9 चुनिंदा प्रबंधन सूत्रों से रूबरू करवा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
 *1 : श्लोक
*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.
*मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
 *अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन. कर्म करने में तेरा अधिकार है. उसके फलों के विषय में मत सोच. इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर.
 *मैनेजमेंट सूत्र- भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से अर्जुन से कहना चाहते हैं कि मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करना चाहिए. यदि कर्म करते समय फल की इच्छा मन में होगी तो आप पूर्ण निष्ठा से साथ वह कर्म नहीं कर पाओगे. निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ परिणाम देता है. इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकर अपना काम करते रहो. फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है.
 *2 : श्लोक
*योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।* 
*सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।*
 *अर्थ- हे धनंजय (अर्जुन)। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योग युक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही योग कहते हैं.
 *मैनेजमेंट सूत्र- धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं. हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है. भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए. बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए. इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा. मन में शांति होगी तो परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा. आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है. उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में उससे ज्यादा हानि उठाते हैं.
 *3 : श्लोक
*नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।*
*न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।*
 *अर्थ- योग रहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती. ऐसे भावना रहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा.
 *मैनेजमेंट सूत्र - हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसे सुख प्राप्त हो, इसके लिए वह भटकता रहता है, लेकिन सुख का मूल तो उसके अपने मन में स्थित होता है. जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में लिप्त है, उसके मन में भावना (आत्मज्ञान) नहीं होती. और जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं होती, उसे किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिलती और जिसके मन में शांति न हो, उसे सुख कहां से प्राप्त होगा. अत: सुख प्राप्त करने के लिए मन पर नियंत्रण होना बहुत आवश्यक है.
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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