अभिमनोज. बिहार में जातिगत जनगणना का पहला दौर शनिवार से शुरू हो रहा हैं और इसके पहले चरण में आवासीय मकानों पर नंबर डाले जाएंगे, यह अच्छा प्रयास है, लेकिन इसका मकसद विकास होना चाहिए, वोट बैंक विकास नहीं? खबरें हैं कि सीएम नीतीश कुमार ने अपनी ’समाधान यात्रा’ के दौरान शिवहर में कहा कि इस जनगणना के दौरान केवल जातियों की गणना नहीं होगी, बल्कि प्रदेश के हर परिवार के बारे में पूरी जानकारी होगी, जिससे देश के विकास और समाज के उत्थान में बहुत फ़ायदा मिलेगा!
यह ठीक है कि सीएम नीतीश कुमार शराबबंदी जैसी कई अच्छी पहल में आगे रहे हैं, जिस शराब ने कई परिवारों को बर्बाद कर दिया था, लेकिन याद रखना चाहिए कि बुराइयां तेजी से पनपती हैं, अच्छाइयों के नतीजे देर से मिलते हैं, इसलिए जातिगत जनगणना को भी गंदी राजनीति की नजर नहीं लगे, यह सतर्कता बेहद जरूरी है. आजादी के बाद में जो प्रयास किए गए उनके नतीजे में बहुत बदलाव आया है, खासकर आर्थिक आधार पर बड़े बदलाव हुए हैं, ऐसे में किसी जाति विशेष के गरीब का हक उसी जाति के अमीर नहीं ले जाएं, उसके लिए आर्थिक सर्वे भी जरूरी है, ताकि विकास का लाभ उस जाति के गरीब को प्राथमिकता से मिले.
यह अच्छी बात है कि सीएम नीतीश कुमार का कहना है कि- इससे जातियों की गणना होने के साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति का भी पता लगेगा, इससे उन लोगों के विकास के लिए और क्या किया जाना चाहिए, इसका सही आकलन करने में मदद मिलेगी. देखना होगा कि जातिगत जनगणना से विकास की नई यात्रा शुरू होती है या वोट बैंक की नई राजनीति जन्म लेती है?
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