नई दिल्ली: महाराष्ट्र में शिवसेना विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ किसी नतीजें पर नहीं पहुंच पाई है. गुरुवार को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए संविधान पीठ ने सुनवाई के लिए इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी. पीठ ने कहा कि विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर फैसला लें. हम इस फैसला नहीं लेंगे और न ही हम पुरानी स्थिति को बहाल कर सकते हैं.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि 2016 का नबाम रेबिया मामला, जिसमें कहा गया था कि स्पीकर द्वारा अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, अगर उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है, इसमें एक बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है. इसे बड़ी बेंच के पास भेजा जाना चाहिए. अब इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ करेगी.
शिंदे गुट द्वारा नियुक्त व्हिप भरतशेट गोगावले को शिवसेना के व्हिप के तौर पर मान्यता देने के स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पीकर की कार्रवाई की वैधता की जांच करने से अदालतों को अनुच्छेद 212 से बाहर नहीं किया जा सकता है. सीजेआई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि व्हिप राजनीतिक पर्टी द्वारा जारी किया जाता है और संविधान की 10वीं अनुसूची में आता है. 21 जून, 2022 को शिवसेना विधायक दल के सदस्य मीटिंग करते हैं और एकनाथ शिंदे को पद से हटाते हैं. स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए थी, न की शिंदे गुट द्वारा नियुक्त व्हिप भरतशेट गोगावले को. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरतशेट गोगावले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था.
तत्कालीन गवर्नर द्वारा फ्लोर टेस्ट बुलाने को भी सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक माना. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘गवर्नर के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज नही था, जिसमें कहा गया हो कि बागी विधायक सरकार से अपना समर्थन वापस लेना चाहते हैं. केवल सरकार के कुछ फैसलों में मतभेद था. गवर्नर के पास केवल एक पत्र था, जिसमें दावा किया गया था कि उद्धव सरकार के पास पूरे नंबर नहीं हैं. फ्लोर टेस्ट को किसी राजनीतिक दल के अंदरूनी विवाद या मतभेद को हल करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंत: पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है.’
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 5 सदस्यीय संविधान पीठ का फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं. अगर यह मान भी लिया जाए कि विधायक सरकार से बाहर होना चाहते थे, तो उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया. महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट बुलाना भारत के संविधान के अनुसार नहीं था. उन्हें जांच के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए था. उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट उनके इस्तीफे को रद्द तो नहीं कर सकता है. उद्धव अगर इस्तीफा नहीं देते तो हम राहत दे सकते थे. अब हम पुरानी स्थिति बहाल नहीं कर सकते. महाराष्ट्र में शिंदे सरकार बनी रहेगी.’
उद्धव बनाम शिंदे गुट का क्या था पूरा विवाद?
जून 2022 में एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायकों ने शिवसेना से बगावत कर दी थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे को 29 जून, 2022 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और उनके नेतृत्व वाली एमवीए सरकार गिर गई थी. इसके अगले दिन शिवसेना के बागी गुट ने भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनाई और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने थे. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री बनना स्वीकार किया था. उद्धव ठाकरे गुट ने विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल के पास सभी 16 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने की याचिका दायर की थी, जिस पर उन्होंने उद्धव गुट के समर्थन में फैसला भी लिया था.
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