सोनाक्षी सिन्हा ने अमेजन प्राइम की वेब सीरीज ‘दहाड़’ के साथ ओटीटी पर अपनी एंट्री मार दी है. जोया अख्तर और रीमा काग्ती के प्रोडक्शन में बनी और रीमा काग्ती और रुचिका ओबरॉय द्वारा निर्देशित इस वेब सीरीज में एक सीरियल किलर की कहानी है, जो लड़कियों को मार रहा है. इस सीरियल किलर के अवतार में नजर आए हैं एक्टर विजय वर्मा. 8 एपिसोड की ये वेब सीरीज रिलीज हो चुकी है और आइए बताते हैं आपको कि आखिर ये सीरीज कैसी है.
कहानी: ये कहानी है राजस्थान के मंडावा की जहां एक भाई अपनी बहन के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने आता है. इसी बीच एक लव-जिहाद का मामला भी सामने आया है क्योंकि ठाकुरों की लड़की मुस्लिम लड़के के साथ भाग जाती है. पुलिस इस हाई-प्रोफाइल मामले में लगती है और इसी का फायदा उठाकर ये भाई भी पुलिस से कह देता है कि उसकी बहन भी मुस्लिम लड़के के साथ भागी है. पुलिस इस लड़की को ढूंढना शुरू करती है और इसी एक लड़की को ढूंढते-ढूंढते पुलिस को पता चलता है कि ऐसी एक-दो नहीं बल्कि कई लड़कियां अपने-अपने घरों से भागी हैं और बाद में इनके सुसाइड करने की खबर सामने आती है. मंडावा के पुलिस थाने की एसआई अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा). उनका साथी पारगी (सोहम शाह) उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करता.
‘दहाड़’ 8 एपिसोड में बनी है और हर एपिसोड लगभग 55 या 56 मिनट का है. शुरुआत से 2 एपिसोड में लगता है कि मामला हिंदू-मुस्लिम लव एंगल और ‘लव-जिहाद’ वाले एंगल को टटोल रहा है, लेकिन तीसरे एपिसोड से कहानी का पूरा रुख सीरियल किलर की तरफ मुड़ जाता है. शुरुआत से ही आपको पता है कि सीरियल किलर कौन है, वो कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है. बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रहे हैं.
इस सीरीज की सबसे बड़ी कमजोरी है, इसके किरदार. पहले सीन में ड्रेस पहने तनकर खड़ीं सोनाक्षी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती हैं. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिससे आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली सोनाक्षी के किरदार के साथ नहीं है. बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जेहमत लेखकर ने नहीं उठाई है. लेकिन आखिर आनंद स्वर्णकार कैसे पकड़ा जाएगा, ये खोजते-खोजते आपको 8 एपिसोड यानी 8 घंटे का इंतजार करना होगा जो थोड़ा बोझिल हो जाता है. ओटीटी पर अपनी इस पहली ‘दहाड़’ से सोनाक्षी अपने स्लो करियर को एक स्पीड दे सकती थीं. लेकिन ये ‘दहाड़’ उनका कोई भी नया अंदाज या पहलू पर्दे पर नहीं उतार पाई. ये ‘दहाड़’, उतनी नहीं गूंजी जितनी गूंजनी चाहिए थी.
Source : palpalindia
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