नवीन कुमार. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनसीपी के मुखिया शरद पवार दोनों ही देश की राजनीति के महारथी हैं. इन दोनों की एक खासियत है कि इनकी अगली चाल क्या होगी इसका पूर्वानुमान किसी को नहीं होता है. वैसे, मोदी सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि पवार उनके राजनीतिक गुरू हैं. उन्होंने पवार से राजनीति के कई गुर सीखे हैं. ये दोनों अलग-अलग राजनीतिक दल के हैं. मोदी भाजपा में हैं और पवार एनसीपी में हैं. बीते नौ सालों में देश की राजनीति बदली हुई है. मोदी सत्ता में हैं और आक्रामक राजनीति कर रहे हैं. पवार विपक्ष में हैं और अब तो उनकी पार्टी एनसीपी दो फाड़ हो चुकी है. इन दोनों के बीच वैचारिक मतभेद भी हैं. बावजूद इसके ये दोनों किसी भी कार्यक्रम के लिए मंच साझा करने से परहेज नहीं करते हैं. यही इन दोनों की अपनी सोच की राजनीति और रणनीति है. इसलिए ये दोनों दिग्गज जब किसी मंच पर साथ होते हैं तो उनके चेहरे पर हंसी होती है और इनकी आपस में गलबहियां भी होती है. ये कभी नहीं दिखाते कि वे विरोधी हैं. तभी तो ये चर्चा में रहते हैं. अब देखिए, जब पूरे देश में विपक्ष भाजपा को 2024 के चुनाव में हराने के लिए इंडिया के प्लेटफार्म पर एकजुट हो रहा है और उसमें पवार की अहम भूमिका मानी जा रही है तो ऐसे वक्त में विपक्ष की ओर से ही पुणे में लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में मोदी के साथ पवार के मंच साझा करने को लेकर नाराजगी भी जाहिर की जा रही है. पवार ने इसकी परवाह नहीं की और अपनी सोच पर अडिग रहकर मंच भी साझा किया. इस मंच पर मोदी और पवार ने कुछ हल्की फुल्की बातें की जिससे हंसी के फुहार भी पड़े. इतना नहीं पवार ने हाथ मिलाने के साथ मोदी की पीठ पर थपकी भी लगाई. इसका ये दोनों किस तरह से राजनीतिक लाभ लेते हैं यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा.
फिलहाल 2024 के चुनाव न तो मोदी के आसान है और न ही विपक्ष के लिए. इस बार विपक्ष ने भी तय कर लिया है कि देश में लोकतंत्र को बचाना है तो मोदी को हराना है. लेकिन देश में जिस तरह का माहौल है और हिंदुत्व के नाम पर जैसी राजनीति हो रही है उसमें देश की जनता भी भ्रमित है. विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती है खुद तो एक प्लेटफार्म पर एकजुट रखना और देश की जनता का भरोसा जीतना. लेकिन भाजपा की ओर से यह अभियान चलाया जा रहा है कि विपक्ष में अलगाव पैदा हो और क्षेत्रीय पार्टियों का खत्मा हो. इसके लिए भाजपा ने सबसे बड़ा प्रयोग महाराष्ट्र में किया है जिसमें उसे सफलता भी मिली है. भाजपा ने सबसे पहले बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना को तोड़ा. उसके बाद पवार की एनसीपी को भी दो फाड़ कर दिया है. शिवसेना में टूट के बाद उद्धव ठाकरे अपने शिवसैनिकों को बिखरने से बचाने में लगे हुए हैं. एनसीपी के टूटने से पवार खुद को कमजोर नहीं दिखा रहे हैं बल्कि वह बरगद की पेड़ की तरह खड़े हैं. इसलिए जब पुणे में मोदी के कार्यक्रम में शिरकत करने के पवार के फैसले का विपक्ष की ओर से विरोध होने लगा तो उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और मंच पर मोदी से हाथ मिलाकर पवार ने अपने बॉडी लैंग्वेज से यह संदेश देने की कोशिश की कि उनका अपने समर्थकों के बीच कद और बढ़ गया है. शायद पवार अपनी इसी रणनीति के तहत इस मंच पर आने से खुद को रोक नहीं पाए. यह वही मंच है जहां पर उनके भतीजे अजित पवार भी मौजूद थे जिन्होंने बगावत करके एनसीपी में दो फाड़ किया है और महाराष्ट्र की भाजपानीत सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए हैं. इसी मंच पर मोदी ने पवार से मिलने के बाद अजित की बांह को सहलाते हुए एक तरह से शाबाशी दी. इस तरह के दृश्य किसी भी टूटी हुई पार्टी के मुखिया के लिए सहनीय नहीं होता है. लेकिन पवार के चेहरे पर किसी भी तरह की सिकन नहीं थी बल्कि भविष्य में जीत हासिल करने के हौसले वाली मुस्कान रही. भारतीय राजनीति में यह हौसला सिर्फ और सिर्फ पवार ही दिखा सकते हैं. तभी तो उन्होंने अपने भाषण में भतीजे अजित को उपमुख्यमंत्री के रूप में जिक्र भी किया. मोदी से शाबाशी पाने के बावजूद अजित के चेहरे पर चमक नहीं थी जबकि पवार के चेहरे पर कृष्ण वाली मुस्कान थी.
पुणे एक सांस्कृतिक शहर है. इसलिए इस शहर की अपनी संस्कृति भी है. यहां की राजनीति भी अलग धारा में बहती है और पूरे राज्य की राजनीति पर उसका असर पड़ता है. यही वजह है कि पवार ने मोदी के इस समारोह में शामिल होने से खुद को रोक नहीं सके. तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट (हिंद स्वराज संघ) की ओर से पवार लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार से पहले सम्मानित हो चुके हैं. यह पुरस्कार खान अब्दुल खान गफ्फार, बालासाहेब देवरस, शंकर दयाल शर्मा, अटल बिहारी बाजपेयी, इंदिरा गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह जैसी कई हस्तियों को मिल चुका है. यह प्रतिष्ठित पुरस्कार स्वीकार करने के लिए मोदी भी खुद को रोक नहीं सके. मोदी ने यह राष्ट्रीय पुरस्कार 140 करोड़ देशवासियों को समर्पित किया और मिली धनराशि को नमामि गंगे योजना में देने की घोषणा की. इसके साथ ही मोदी ने पुणेकरों को करोड़ों रूपए की परियोजनाओं की सौगात भी दी. इसे चुनावी सौगात के रूप में भी देखा जा रहा है. मोदी ने कर्नाटक राज्य का जिक्र खास तौर से किया जहां भाजपा को करारी हार मिली है और कांग्रेस ने सत्ता हासिल कर ली है. कर्नाटक से सटा राज्य महाराष्ट्र है. इस महाराष्ट्र पर कर्नाटक की हवा न लगे इसके लिए मोदी ने कांग्रेस सहित विपक्ष पर भी हमला किया. लेकिन मोदी ने पवार को लेकर कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे पवार को बुरा लगे. चर्चा है कि महाराष्ट्र में पुणे के पास जिस लवासा सिटी परियोजना में पवार, उनकी बेटी सुप्रिया और अजित तीनों कथित रूप से फंसे हुए थे उस परियोजना की गड़बड़ियां दूर हो गई हैं. अब इस लवासा सिटी में 2024 के चुनाव से पहले मोदी की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित करने की तैयारी चल रही है. यह प्रतिमा सरदार पटेल की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से भी ऊंची होने वाली है. पवार भी काफी मंजे हुए राजनीतिक खिलाड़ी हैं. एनसीपी टूटने के बाद पवार पहली बार इस मंच पर मोदी से मिले हैं और दोनों ने एक-दूसरे का हाल चाल भी जाना. पवार हमेशा यह जताते हैं कि वह एक जुझारू नेता हैं और वह बिखर कर भी अपना ऊंचा मकाम बनाने की कूबत रखते हैं. इस समय वह अपनी बिखरी पार्टी को संवारने में लगे हैं ताकि 2024 के चुनाव में वह अपने विरोधियों को जवाब दे सकें. इस मंच से पवार ने कुछ ऐसी बातें भी कही है जो मोदी और भाजपा के लिए जवाब है. विपक्ष का मानना है कि मोदी के राज में लोकतंत्र खत्म हो रहा है. चौथे स्तंभ का जड़ भी हिल रहा है. पवार ने पुणे शहर का देश में क्या महत्व है उसका जिक्र करते हुए कहा कि यह शहर छत्रपति शिवाजी महाराज का है और उनका इतिहास तो दुनिया जानती है. शिवराया का जन्म इसी जिले के शिवनेरी किले में हुआ था और उनका बचपन यहीं के लाल महल में बीता. पवार ने बताया कि हिंदू स्वराज्य की स्थापना यहीं से शुरू हुई. पवार ने याद दिलाते हुए यह भी कहा कि अब सर्जिकल स्ट्राइक की चर्चा हो रही है. लेकिन पहली सर्जिकल स्ट्राइक शिवाजी महाराज के समय हुई थी. पवार ने अपनी बातों से अपने भतीजे को भी संकेत दिया कि वह उन्हें बूढ़ा और रिटायर समझने की गलती न करें. अजित उपमुख्यमंत्री बनने के बाद पुणे के पालक मंत्री भी बनना चाहते हैं. वह 1991 से पिंपरी-चिंचवड़ में सक्रिय हैं. लेकिन वह पिछले विधानसभा उपचुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार नाना काटे को जिता नहीं पाए. भाजपा के उम्मीदवार अश्विनी जगताप को 36 हजार से ज्यादा वोटो से जीत मिली थी. पवार ने अब इस पुणे शहर पर भी फोकस किया है. विपक्ष को भी पवार की रणनीति समझ में नहीं आती है. यही वजह है कि पवार इस चर्चा से भी बच नहीं पा रहे हैं कि वह भाजपा में कभी भी जा सकते हैं. लेकिन पवार का यह संदेश है कि वह हारना नहीं जानते हैं. इसलिए वह जीत के लिए अपनी रणनीति पर काम करते हुए अभी भी विपक्ष के लिए एक उम्मीद बने हुए हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-पीएम मोदी ने मेट्रो को दिखाई हरी झंडी, 2000 से ज्यादा लोगों को दी पीएम आवास की सौगात
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