2 कविताएं: मैं लड़कियों की बात कर रही हूँ / मुंह सी के अब जी ना पाऊँगी

2 कविताएं: मैं लड़कियों की बात कर रही हूँ / मुंह सी के अब जी ना पाऊँगी

प्रेषित समय :20:15:44 PM / Sat, Nov 11th, 2023
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मैं लड़कियों की बात कर रही हूँ

ज्योति गोस्वामी
रोल्याना, उत्तराखंड

मैं रंगों की नहीं, फूलों की बात कर रही हूँ.
मैं लड़कों की नहीं, लड़कियों की बात कर रही हूँ..

क्यों नहीं मिलता लड़कियों को लड़कों जैसा अधिकार?
क्यों नहीं मिलता लड़कियों को लड़कों जैसा प्यार?
क्यों नहीं मिलता उन्हें लड़कों जैसा सम्मान?
क्यों नहीं मिलता उन्हें बोलने का अधिकार?
हर जगह क्यों चलती है लड़कों की बात?
अगर लड़की हंस दे तो संस्कार नहीं है.
सच बोलने का भी उसे अधिकार नहीं है..

हर जुर्म लड़की अकेले क्यों सहे?
हर वक्त लड़की अकेले क्यों रोए?
मैं रंगों की नहीं, फूलों की बात कर रही हूँ.

हाँ, मैं लड़कों की नहीं, लड़कियों की बात कर रही हूँ..

मुंह सी के अब जी ना पाऊँगी

गीता देवी
रोहतास, बिहार

मुंह सी के अब जी ना पाऊँगी.
जरा सबसे ये कह दो..
मईया कहे बिटिया बाहर न जाना.
मगर मैं हर दीवार गिराऊँगी..
भैया कहे बहना चौखट ना लांघो.
मगर यह जंजीर पहन न पाऊंगी..
पिता कहे बेटी मन के ना करना.
मगर मैं आवाज़ तो उठाऊँगी..
शास्त्र कहे पिता-पति है स्वामी.
मगर अब ना, यह गुलामी सह पाऊँगी..
सारी परंपरा को जड़ से मिटाऊँगी.
जरा सबसे ये कह दो..
ये ना समझो हम सदा के हारे हैं.
बुझे हुए राख के नीचे अभी भी अंगारे हैं..
जरा सबसे ये कह दो..
(चरखा फीचर)

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-