देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

प्रेषित समय :22:46:02 PM / Tue, Nov 21st, 2023
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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी पड़ती है उसको देवउठनी /  देव प्रबोधिनी एकादशी कहते है,  जो इस बार 23 नवंबर 2023, गुरुवार के दिन है.इसी दिन प्रभु श्री शालिग्राम जी का तुलसी जी के साथ विवाह करने के कारण इस दिन को तुलसी विवाह भी कहते हैं.
 एकादशी तिथि प्रारम्भ 
22 नवंबर 2023, बुधवार को रात्रि 11:03 मिनट से 
  एकादशी तिथि समाप्त 
23 नवंबर 2023, गुरुवार रात्रि  09:01 मिनट पे 
  पारण का समय 
24 नवंबर 2023, शुक्रवार प्रातः 6:00 से 08:15 तक
 विशेष : एकादशी का व्रत सूर्य उदय तिथी गुरुवार  के दिन ही रखें..... एवं व्रत के दिन खाने में चावल या चावल से बनी हुई चीज वस्तुओं का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें अगर आपने व्रत नहीं रखा है तो भी 
 श्री देव उठनी एकादशी
       चातुर्मास काल पूर्ण 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्री विष्णु देवशयनी के दिन योग निद्रा में बलि के यहां पाताल लोक में चले जाते हैं उस दिन को देवशयनी एकादशी कहा जाता है जो चातुर्मास काल होता है यह चातुर्मास काल पूरा करने के बाद जब प्रभु श्री हरि विष्णु बलि के यहां से वापस लौटते हैं और अपने वैकुंठ लोक को जाते वह जो दिन होता है वह कार्तिक शुक्ला एकादशी का दिन होता है जिसको देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है इस दिन प्रभु अपनी योगनिद्रा पूरी करके जगते हैं इसलिए इसको देवउठनी कहा जाता है और प्रभु के जागने के बाद प्रभु का एक स्वरूप श्री शालिग्राम जी का तुलसी जी के साथ विवाह कराया जाता है यह विवाह करने के बाद ही सांसारिक लोग अपने सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, वास्तु विगेरे कार्य आरंभ करते है क्योंकि चातुर्मास के दौरान प्रभु श्री हरि की उपस्थिति नहीं रहती है और प्रभु की अनुपस्थिति में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है ...... पर जब वह कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन जगते हैं उसके बाद प्रभु की उपस्थिति के बाद ही सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू होते हैं
 देवउठनी एकादशी व्रत के नियम 
इस दिन निर्जल या केवल जलीय पदार्थों का सेवन करते हुए उपवास रखा जाता है.
इस व्रत में भगवान विष्णु की उपासना की जाती है.
इस दिन तामसिक आहार (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन) न लें.
 कृपया मांसाहारी एवं शराबी व्यक्ति एकादशी व्रत से हंमेशा के लिए दूर रहे या तो एकादशी व्रत करें या फिर मांसाहारी और शराबी ही रहे दोनों साथ नहीं हो सकता } 
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें.
इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत करने का संकल्प लें.
घर की सफाई के बाद आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बना लें.
इसके बाद एक ओखली में गेरू से भगवान हरि यानी विष्णु का चित्र बना लें.
अब उस ओखली के पास मिठाई, फल, सिंघाड़े और ईख यानी गन्ना रखकर उसे डलिया से ढक दें.
इस दिन रात के समय अपने पूजा स्थल और घर के बाहर दीपक जलाने चाहिए और घर के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवी देवताओं का पूजन करना चाहिए.
फिर शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को यह कहते हुए उठाएं उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास.
भगवान विष्‍णु को जगाने का मंत्र
‘ उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये. 
 त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥’ 
‘ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव. 
 गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’ 
‘ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव.’ 
 देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह किया जाता है. इस दिन से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. इस एकादशी को प्रबोधिनी या देवउत्थान एकादशी भी कहते हैं. देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है. आओ जानते हैं कि तुलसी विवाह के क्या है नियम
 तुलसी पूजा के दौरान ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः "मंत्र का जाप करते रहना चाहिए.
कुछ खास मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कुछ चीजों के त्याग का व्रत लें. इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता. कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है.
 यदि आप इस एकादशी का व्रत रख रहे हैं तो ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा की तैयारी करें. 
-पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करें. 
 फिर भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं. फिर पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें.
भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण करें. फिर रात्रि में स्वयं के सोने से पहले भजनादि के साथ भगवान को शयन कराना चाहिए.
शालिग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है. इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है. तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है. शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है. 
 शालिग्राम भगवान विष्णु का ही विग्रह रूप है. जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मीजी का सदैव वास रहता है. शालिग्राम सात्विकता का प्रतीक हैं. उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है. यदि आप मांस या मदिरा का सेवन करते हैं तो यह आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है.
शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है. चंदन भी असली होना चाहिए. जैसे चंदन की एक लकड़ी को लाकर उसे शिला पर घिसे और फिर शालिग्रामजी को चंदन लगाएं. शालिग्राम को प्रतिदिन पंचामृत से स्नान कराया जाता है. कहते हैं कि कुछ समय रोग, यात्रा या रजोदर्शन आदि को छोड़कर शालिग्राम की प्रतिदिन पूजा करना जरूरी है. 
शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह को कन्यादान जितना पुण्य कार्य माना जाता है. कहा जाता है कि तुलसी विवाह संपन्न कराने वालों को वैवाहिक सुख मिलता है.
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने वाले व्यक्ति के जीवन से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं और उस पर भगवान हरि की विशेष कृपा बनी रहती ह

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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