नवीन कुमार
भाजपा ने जिस तरह से देश के तीन हिंदी प्रदेशों में विजय पताका फहराया है और वहां पर अपनी सरकार बना ली है, उससे उसका आत्मबल काफी बढ़ गया है. लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा की स्थिति थोड़ी-सी अलग है. यहां भाजपा का आत्मबल थोड़ा कमजोर दिख रहा है. यह दृश्य नागपुर में महाराष्ट्र प्रदेश के पदाधिकारियों की बैठक में उजागर हुआ है. इस बैठक में एक बड़ा ही गंभीर मुद्दा उठा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू सिर्फ हिंदी भाषी राज्यों के लोगों पर है. इस पर भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बड़ी सफाई से राज्य के पदाधिकारियों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के लोगों पर मोदी का जादू है तभी तो हम लोकसभा के दो चुनावों में 42 सीट जीत पाए हैं. फडणवीस ने भले ही आशंकाएं दूर करने की कोशिश की है. लेकिन जमीनी स्तर पर एक सच भी उभर कर आ रहा है कि महाराष्ट्र में भाजपा के लिए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव जीतना बहुत आसान नहीं है. कुछ तो अंदरूनी कमजोरी है जिससे महाराष्ट्र भाजपा को डर सता रहा है. जबकि भाजपा ने राज्य की दो मजबूत पार्टियों शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने में सफलता हासिल कर ली है और इन टूटी हुई पार्टियों के एक-एक गुट को अपने गठबंधन में शामिल भी कर लिया है. इन दोनों गुटों के साथ मिलकर भाजपा राज्य में शासन भी कर रही है. सत्ता सुख भोगते हुए भाजपा के लिए चुनाव जीतना कठिन नहीं है. बावजूद इसके भाजपा एक ऐसे अंदरूनी डर से गुजर रही है जिसके लिए उसे बजरंगबली की सहायता की जरूरत है. भाजपा अब अपने कार्यकर्ताओं को ही बजरंगबली बनने के लिए प्रेरित कर रही है. फडणवीस ने इस बैठक में साफ कहा है कि अगले लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में जीत हासिल करने के लिए कार्यकर्ताओं को बजरंगबली बनना होगा. राम-रावण युद्ध का जिक्र करते हुए फडणवीस ने कहा कि याद कीजिए किस तरह से बजरंगबली ने लंका का तहस नहस किया था. उसी तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं को मोदी के लिए बजरंगबली बनना पड़ेगा. फडणवीस ने जिस तरह से अपनी भावना व्यक्त की उसमें उनकी भाजपा कार्यकर्ताओं को बजरंगबली बनाने की तैयारी दिख रही है. इस बैठक से पहले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ आरएसएस की भी बैठक हुई थी. उसमें यह मंथन हुआ कि किस तरह से मोदी के लिए महाराष्ट्र में लोकसभा की 45 सीटें जीती जा सकती है.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जिस तरह से भाजपा को लोगों ने वोट दिया उससे यह भी स्पष्ट है कि मोदी का आकर्षण हिंदी पट्टी के लोगों पर छाया हुआ है. मोदी खुद भी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं. ऐसे में गैरहिंदी राज्यों में मोदी के जादू को लेकर आशंका व्यक्त करना लाजिमी है और राष्ट्रीय स्तर से अलग गैरहिंदी राज्यों में राजनीति के चक्र को समझना भी जरूरी है. हालांकि, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जिस तरह से मुख्यमंत्री के पुराने चेहरे को बदलकर नए चेहरे को लाया गया उससे राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में यह संदेश भेजा गया है कि भाजपा के सामान्य कार्यकर्ताओं पर पार्टी आलाकमान की नजर है और जो कर्मयोगी कार्यकर्ता हैं उनके लिए मुख्यमंत्री तक की कुर्सी हाजिर है. राजस्थान में वसुंधरा राजे को, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी की पहुंच से बाहर रखा गया उससे भाजपा आलाकमान के आत्मबल का भी परीक्षण हुआ. भाजपा आलाकमान को अपने कार्यकर्ताओं पर पूरा भरोसा है जिससे वह किसी भी तरह के विद्रोह को कुचलने के लिए तैयार है. यह माना जा रहा है कि भाजपा ने सामान्य कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिखाकर पार्टी को संगठनात्मक स्तर पर मजबूत किया है. यही प्रयोग महाराष्ट्र में भी करने की तैयारी है. इसका स्पष्ट संकेत फडणवीस ने पदाधिकारियों की बैठक में दिया है. फडणवीस ने भी कहा है कि सामान्य कार्यकर्ता को उसकी जगह मिलेगी. सामान्य कार्यकर्ता को पार्टी के लिए अपना काम ईमानदारी से करना है और उसी के काम की बदौलत पार्टी सत्ता हासिल करेगी. पार्टी में सामान्य कार्यकर्ता की हैसियत बड़ी है. सामान्य कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए यह काफी है. वैसे, किसी भी पार्टी में सामान्य कार्यकर्ता को अहमियत देना जरूरी है. सामान्य कार्यकर्ता अगर यह महसूस कर ले कि उसे उसके काम का फल नहीं मिलने वाला है तो पार्टी कमजोर पड़ेगी. महाराष्ट्र में भाजपा के सामान्य कार्यकर्ताओं की अहमियत थोड़ी कम हुई है. क्योंकि, भाजपा में बाहरियों का जमावड़ा है. बागी कांग्रेसियों और दागियों को भाजपा में तरजीह मिल रही है और भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता मुंह ताक रहे हैं. महाराष्ट्र में भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता खफा हैं और वे लोग सिर्फ मोदी का चेहरा देखकर चुप हैं. लेकिन सामान्य कार्यकर्ताओं की यह चुप्पी किसी चुनाव में भाजपा को जोर का झटका धीरे से दे सकती है.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ से अलग है महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति. भाजपा ने महाराष्ट्र में जिस तरह से अपना राजनीतिक समीकरण तैयार कर रखा है उससे महाराष्ट्र में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ वाला राजनीतिक गणित का खेल नहीं खेला जा सकता है. महाराष्ट्र की तरह उन तीन राज्यों में गठबंधन का खेल नहीं है. इसलिए महाराष्ट्र भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता मोदी के जादू को सीधे तौर पर स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं. महाराष्ट्र में भाजपा की अपनी राजनीतिक मजबूरियां हैं जबकि पार्टी ने अपनी लोकप्रियता भी बढ़ाई है. लेकिन भाजपा अपने दम पर मोदी के लिए लोकसभा की 45 सीटें जीतने और विधानसभा में सरकार गठन करने का आत्मविश्वास पैदा नहीं कर पाई है. यही वजह है कि भाजपा को शिवसेना और एनसीपी जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार चल रही है. भाजपा ने एनसीपी को राजनीतिक मजबूरी में साथ किया है. सत्ता की दूकान चलाना आसान नहीं है. जब सत्ता में पार्टनर बनाया जाता है तो हरेक पार्टनर अपनी महत्वकांक्षा पूरी करना चाहेगा और एनसीपी के अजित अपनी महत्वकांक्षा को लेकर मुखर भी हैं. शिंदे और अजित दोनों ने अपनी पार्टी में बगावत की है और अपने गुट के साथ भाजपा से हाथ मिलाया है. अब ऐसा तो नहीं सोचा जा सकता कि शिंदे और अजित भाजपा के हाथ की कठपुतली बने रहेंगे. बगावत की है तो अगले चुनाव में उन्हें भी अपनी हैसियत दिखानी पड़ेगी. इसके लिए शिंदे और अजित भी अपनी जमीन मजबूत करने में लगे हैं. जनसरोकार से जुड़े कुछ मुद्दे हैं जिसे बतौर मुख्यमंत्री शिंदे ने काफी अच्छे तरीके से सुलझाएं हैं और इस वजह से वे लोकप्रियता में भाजपा से आगे निकल गए हैं. बाला साहेब के हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए शिंदे ने अपने शिवसैनिकों को अयोध्या रवाना किया है. गरीबों का इलाज कराने के लिए शिंदे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. मराठा आंदोलन को नियंत्रित करने और किसानों की समस्या को सुलझाने में भी शिंदे बेहतर काम कर रहे हैं. शिंदे अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना को चुनौती देने के लिए तैयार हैं. शिंदे जैसी स्थिति अजित अभी तैयार नहीं कर पाए हैं. वह अपनी ताकत शिंदे की जगह मुख्यमंत्री बनने में लगा रहे हैं. भाजपा के साथ अजित से भी मराठा और ओबीसी वोटर नाराज दिख रहे हैं. भाजपा के लिए मोदी ही सहारा हैं. महाराष्ट्र में भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार की योजनाओं से जन-जन को वाकिफ कराया जाए. मोदी अब संकल्प यात्रा का रथ नहीं बल्कि गारंटी रथ हैं. ऐसे में राज्य की जनता भाजपा से पूछ सकती है कि महाराष्ट्र भाजपा की क्या गारंटी है. भाजपा ने जब शिवसेना और एनसीपी को तोड़ा है तो उद्धव और शरद पवार चुप तो बैठने वाले नहीं हैं. उद्धव और शरद को पता है कि किस तरह से बागियों को परास्त करना है. इसके साथ ही भाजपा को शिकस्त देने के लिए शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की महा विकास आघाड़ी भी अपनी रणनीति पर काम कर रही है. राज्य की आम जनता से जुड़ी समस्याएं हैं जिसको लेकर आघाड़ी ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोला है. महाराष्ट्र भाजपा की भी अपनी चुनावी रणनीति है जिस पर वह काम कर रही है और उसी रणनीति के तहत सामान्य कार्यकर्ताओं को बजरंगबली बनने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. भाजपा की यह रणनीति हिंदूवाद का हिस्सा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-