गुप्त नवरात्रि में माता दुर्गा के चमत्कारी कवच का नित्य पाठ अवश्य करना चाहिए

गुप्त नवरात्रि में माता दुर्गा के चमत्कारी कवच का नित्य पाठ अवश्य करना चाहिए

प्रेषित समय :21:13:20 PM / Thu, Feb 1st, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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देवी दुर्गा नित्य कवच का पाठ से शरीर के समस्त अंगों की रक्षा होती है, यह पाठ महामारी से बचाव की शक्ति देता है,यह पाठ सम्पूर्ण आरोग्य का शुभ वरदान देता है, देवी दुर्गा कवच का पाठ गुप्त नवरात्रि में देता है, चमत्कारी लाभ, जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के कष्ट क्लेश को समाप्त करके, तरक्की- उन्नति प्रदान करता है, सभी तरह के दुश्मनों का नाश करता है, ग्रहों से संबंधित सभी प्रकार की पीड़ा को खत्म करता है, सभी प्रकार की सुख समृद्धि और सौभाग्य को उदय करता है !
ॐ नमश्चण्डिकायै.
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्.
 यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥
॥मार्कण्डेय उवाच॥
मार्कण्डेय जी ने कहा हे पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइए.
॥ब्रह्मोवाच॥
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्.
दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने॥2॥
ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करनेवाला है. महामुने! उसे श्रवण करो.
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी.
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥3॥
प्रथम नाम शैलपुत्री है, दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी है. तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा के नामसे प्रसिद्ध है. चौथी मूर्ति को कूष्माण्डा कहते हैं.
पचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥
पाँचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है. देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं. सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध है.
नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः.
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥
नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है.  ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं. ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे.
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥
जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता.
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे.
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥
युद्ध समय संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखाई देती.  उनके शोक, दु:ख और भय की प्राप्ति नहीं होती.
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते.
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥
जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है. देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम नि:सन्देह रक्षा करती हो.
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना.
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥
चामुण्डादेवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं. वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं.  ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है.  वैष्णवी देवी गरुड़ पर ही आसन जमाती हैं.
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना.
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥
माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं. कौमारी का मयूर है. भगवान् विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मीदेवी कमल के आसन पर विराजमान हैं,और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं.
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