प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव पार्वती हर मनोकामना पूर्ण करते

प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव पार्वती हर मनोकामना पूर्ण करते

प्रेषित समय :15:46:33 PM / Wed, Feb 7th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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वैसे तो हिंदू धर्म में कई व्रतों का विधान है उन्हीं व्रतों में से एक प्रदोष व्रत होता है. जिस प्रकार एकादशी मै भगवान विष्णु की पूजा की जाती है उसी प्रकार भगवान शंकर को खुश करने के लिए प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत में भगवान शंकर की पूजा की जाती है त्रयोदशी वाले दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है जिस प्रकार महीने में दो एकादशी पड़ती है उसी प्रकार महीने में दो त्रयोदशी आती हैं एक शुक्ल पक्ष की एक कृष्ण पक्ष की और उन दोनों ही दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और उस व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है प्रदोष क्या है प्रदोष का सही अर्थ है वह समय जब सूर्योदय से 45 मिनट पहले और सूर्य अस्त से 45 मिनट बाद का समय प्रदोष काल होता है उसी बीच के समय को प्रदोष कहा जाता है और उसी समय भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है यह व्रत बहुत ही ज्यादा फलदाई होता है इस व्रत को करने से भगवान शिव सदैव अपने भक्तों पर अपना आशीर्वाद अपनी कृपा बनाए रखते हैं.
यह व्रत क्यों रखा जाता है 

प्रदोष व्रत को कब से शुरू करें 

स्कंद पुराण के अनुसार शनि प्रदोष का बहुत ही महत्व होता है इस व्रत को शुरू करने के लिए शनि प्रदोष को बहुत उत्तम बताया गया है यदि दोस्तों आप शनि प्रदोष से यह व्रत शुरू करना चाहते हैं तो यह बहुत ही उत्तम होगा लेकिन अलग-अलग मनोकामना के लिए यह व्रत शुरू करना चाहते हैं तो उसके अलग-अलग बार होते हैं जैसे कोई ऋण मुक्ति के लिए इस व्रत को करता है जैसे आप पर बहुत कर्जा है आप अपने कर्ज को चुकाना चाहते हैं उससे मुक्ति पाना चाहते हैं तो उसके लिए मंगल प्रदोष से यह व्रत शुरू करें इसके अलावा यदि कोई भी पुरुष  इस व्रत को करना चाहते हैं स्त्री के लिए परिवार के लिए सुख समृद्धि के लिए तो वह लोग शुक्र प्रदोष से इस व्रत को शुरू कर सकते हैं ऐसा करने से सुख समृद्धि और अच्छी स्त्री की प्राप्ति होती है इसके साथ ही यदि आप आरोग्य रहना चाहते हैं रोगों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो आप रवि प्रदोष व्रत शुरु कर सकते हैं इसी तरह आपकी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं तो बुध प्रदोष से यह व्रत कर सकते हैं.

प्रदोष व्रत कैसे करे 

भगवान शिव को समर्पित यह व्रत महीने के दोनों ही रखने चाहिए इस तरह से साल में 26 प्रदोष व्रत पढ़ते हैं 26 व्रत रखने यानी कि 1 साल के व्रत के बाद जो 27 वा व्रत पड़ता है उसमें आप व्रत का उद्यापन कर सकते हैं यदि आप पूरे व्रत नहीं रख सकते हैं तो 11 व्रत रखने का संकल्प लें 11 व्रत रखने के बाद 12वीं व्रत को आप उद्यापन कर सकते हैं उद्यापन भी विधिपूर्वक करना चाहिए जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि सबसे पहले यह व्रत चंद्रमा ने किया था चंद्रमा को क्षयरोग हो गया था जिसके निवारण के लिए यह व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी प्रदोष काल का समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद का होता है इस व्रत में भगवान शिव से संबंधित जो भी पूजा अर्चना होती है वह प्रदोष काल होता है. उसी समय में हमें भगवान शिव की पूजा अर्चना सच्चे मन पूर्ण भाव से करनी चाहिए प्रदोष काल में भगवान बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और आनंद तांडव करते हैं ऐसे समय में यदि भक्त उन्हें पुकारते हैं तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं सभी व्रतों का महत्व अलग-अलग होता है किंतु पूजा सब की एक समान होती है.

प्रदोष व्रत में हमें क्या खाना चाहिए 

वैसे तो यह व्रत निर्जला रखा जाता है इसमें कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका हमें अवश्य ध्यान रखना प्रदोष काल में शिव जी की पूजा के बाद ही हमें भोजन ग्रहण करना चाहिए इस व्रत को वैसे तो निर्जला ही रखते हैं किंतु यदि आप में समर्थ नहीं है तो आप फलाहारकर सकती हैं फल वगैरह खाकर आप इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं इस तरह व्रत में आप व्रत वाला सामान ही खा सकती हैं और एक बार ही खा सकते हैं जैसे कूटू के आटे की पूरी सिंघाड़े की आटे की कतली फल वगैरा जैसी चीजें आप इस व्रत में खा सकते हैं.

प्रदोष व्रत में क्या नहीं खा सकते 

इस व्रत में अन्न चावल लाल मिर्च और सादा नमक नहीं खाना चाहिए कहने का तात्पर्य है कि यह व्रत और व्रतों की तरह ही होता है तो इस व्रत में भी वह सब नहीं खाना चाहिए जो आप नॉर्मल दिनों में खाते हैं अन्न की बनी हुई किसी भी चीज को नहीं खाना चाहिए बाहर की खाने की चीजों का सेवन न करे और सबसे खास बात यह है कि आप जो भी दिन के समय लेते हैं वह बस एक ही बार उसका सेवन करें. बार-बार आप किसी भी चीज को ग्रहण नहीं करें.

प्रदोष व्रत के नियम 

इस व्रत को करने की अलग-अलग इच्छाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग व्रत है और उनके नियम एक ही होते हैं चाहे आप किसी भी इच्छा की पूर्ति के लिए किसी भी बार से कोई भी व्रत शुरू करें किंतु इसके नियम एक ही होते हैं जैसे जिस भी तिथि से आपने व्रत शुरू किया उसके बाद आपको नियमित व्रत करने चाहिए कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष सभी व्रत आप 1 वर्ष तक करेंगे और यह संकल्प आप व्रत शुरू करने से पहले ही दिन लेंगे फल के अनुरूप ही व्रत को प्रारंभ करना चाहिए सबसे पहले हम आपको बताना चाहेंगे कि जिनके संतान नहीं है या उनको अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हो पा रही है उन्हें यह व्रत कैसे करना है शुक्ल पक्ष के शनिवार पर जब भी प्रदोष का व्रत आए तब उन्हें व्रत शुरू करना चाहिए शुक्ल पक्ष के शनिवार में प्रदोष आएगा या त्रयोदशी आएगी तब आप उस व्रत को शुरू कर सकते हैं और जब से शुरू करें तब से पूरे 1 वर्ष तक यह व्रत कीजिए भगवान भोलेनाथ ने चाहा तो आपको अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी इसी प्रकार अलग-अलग इच्छाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग बार के व्रत होते हैं जिनके नियम इसी प्रकार हैं .

प्रदोष व्रत में पूजा का सही समय 

ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके नृत्य की प्रशंसा करते हैं और शास्त्रों की माने तो इस व्रत को करने से सारे दोषों से मुक्ति मिलती है साथ ही भगवान शिव अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाते हैं इस दिन माता पार्वती की भी पूजा की जाती है इसीलिए भगवान शिव की पूजा का सही समय प्रदोष काल होता है सूर्योदय से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त से 45 मिनट बाद का समय प्रदोष काल होता है इसी समय में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए इस समय भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है ऐसा माना जाता है कि इस समय भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं इसलिए इस प्रदोष काल में पूजा अर्चना करनी चाहिए और यही समय उचित होता है

प्रदोष व्रत की पूजा विधि और सामग्री 

सनातन धर्म में इस व्रत को बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है यह व्रत निराहार किया जाता है लेकिन किन्हीं कारणवश आप निराहार नहीं कर सकते तो दिन में एक बार फलाहार कर सकते हैं इस दिन लोग अपने अपने कष्टों के निवारण के लिए भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा करते हैं.

पूजा की सामग्री में चाहिए फल फूल नारियल बतासे धतूरे का फूल चंदन देसी घी गंगाजल मिठाई कपूर बेलपत्र पान केले का पत्ता चौकी पीला कपड़ा चौकी और श्रृंगार का सारा सामान जैसे सिंदूर बिंदी काजल महावर लिपस्टिक चूड़ी बिछिया रुमाल शीशा कंघा नेलपेंट तेल शैंपू पाउडर क्रीम यह है पूरा सोलह सिंगार यह सब सामान होना चाहिए और इसके बाद हमें पंचामृत के लिए चाहिए दही शक्कर दूध शहद. सबसे पहले पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर पवित्र कर ले थोड़ा गंगाजल अपने ऊपर भी डाल ले चौकी रख ले और पूजा की सभी सामग्री एक साथ चौकी के पास रख ले सभी पूजा सामग्री एवं पूजा वाले स्थान पर रखी चौकी को गंगाजल डालकर पवित्र करें. उसके बाद चौकी पर एक पीला कपड़ा बिछा लीजिए और माता पार्वती भगवान शिव और गणेश की प्रतिमा को उस चौकी पर स्थापित कर लीजिए शिवलिंग चौकी पर रख लीजिए उसके बाद चौकी के दाहिने अष्टदल कमल बना लीजिए उस पर कलश की स्थापना करें आम के पत्ते जल से भरा हुआ कलश पर रखें और मौली से सजा नारियल कलश पर रखें इसके बाद घी का दीपक जलाकर चौकी पर रखें किसी भी देवी देवताओं की पूजा से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है

तो हम गणेश जी की स्थापना कर लेते हैं चौकी पर एकअक्षत रख लीजिए पान के पत्ते रख लीजिए अब गणेश जी को उस पर स्थापित कर लीजिए सबसे पहले हाथ में एक पुष्प लेकर चंदन और चावल लगाकर गणेश भगवान का स्मरण कीजिए और गणेश जी से प्रार्थना कीजिए हे गणपति बप्पा हम आपको नमन करते हैं हमारी आज की पूजा बिना किसी बाधा के संपन्न करें अब उस फूल को गणेश जी के समक्ष छोड़ दें उसके बाद गणेश जी का चंदन से तिलक करें और चावल चढ़ाएं फिर भगवान के सामने नावेद रखें और पान सुपारी समर्पित करें और इच्छा अनुसार दक्षिणा रख लीजिए और भगवान के सामने रखें एक लोटे में अलग से जल लेकर उसमें फूल डालकर सभी देवी-देवताओं पर छोड़के गणेश जी की पूजा के बाद माता पार्वती की पूजा करेंगे उनको चावल चढ़ाकर टीका लगाएं फिर माता पार्वती पर सिंगार का सारा सामान चढ़ाएं माता पार्वती जी की पूजा करते समय ओम गोराई नमः ओम गोराई नमः का जाप करें ओम नमः शिवाय का जाप करें और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं फिर दही चढ़ाएं फिर गंगाजल से नहला दे भगवान शंकर को पंचामृत बहुत पसंद है इसीलिए उनको पंचामृत से स्नान अवश्य कराएं शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं अब चावल धतूरे का फूल बेलपत्र चढ़ाकर भगवान शंकर की पूजा आरंभ करें और धूप दीप जलाएं और भगवान के समक्ष फलों का भोग लगाएं भगवान शिव के सामने नावेद रखें और पूजा को पूर्ण करें कहते हैं कि हम कितने भी नियम से पूजा कर ले किंतु कोई ना कोई कमी हमसे हो ही जाती है रहती है उन्हीं कमी की पूर्ति के लिए हाथ जोड़कर भगवान के सामने अपनी गलती की क्षमा याचना करें और उसके पश्चात कथा को पढ़ें ध्यान रखें हम जिस भी वार की पूजा कर रहे हैं उसी बार की कथा पढ़ें यानी हम रवि प्रदोष का व्रत करते हैं तो रवि प्रदोष कथा कथा ही पढ़ें फिर शिव चालीसा पढ़ें उसके बाद गणेश जी की आरती करें शिवजी की आरती करके पूजा संपन्न करें और सब को प्रसाद वितरित करें.
प्रदोष व्रत के नियम क्या है?

प्रदोष व्रत के दिन दिनभर उपवास रखना चाहिए, जिसका मतलब है सुबह से लेकर शाम तक निराहार रहना. इसे निर्जला उपवास भी कहा जाता है और यह विशेष फलदायी माना जाता है. प्रदोष व्रत के दिन पूर्ण-ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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