नई दिल्ली. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक माना है. सीजेआई ने कहा यह सर्वसम्मत फैसला है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि दो मत है लेकिन दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं. भारत सरकार साल 2017 में ये कानून लेकर आई थी. कोर्ट ने माना कि चुनावी बांड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के साल 2017 के फैसले को पलट दिया है.
सीजेआई ने कहा है कि क्या 19(1) के तहत सूचना के अधिकार में राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार शामिल है? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस अदालत ने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के बारे में जानकारी के अधिकार को मान्यता दी और यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सहभागी लोकतंत्र सिद्धांत को आगे बढ़ाने तक जाता है.
सीजेआई ने कहा कि क्या आरटीआई के तहत राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग भी आएगी? ये सवाल हमारे समक्ष था? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है.सीजेआई ने कहा कि हमारी राय है कि कम से कम इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और चुनावी ट्रस्ट के अन्य माध्यमों से योगदान अन्य प्रतिबंधात्मक साधन हैं। इस प्रकार काले धन पर अंकुश लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बॉन्ड को रद्द करने का फैसला केंद्र सरकार को बड़ा झटका माना जा रहा है.मोदी सरकार ने स्कीम को पारदर्शी बताया था जबकि विपक्ष इसको शुरुआत ही से भ्रष्टाचार का नया जरिया और घोटला कहती रही. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड से ब्लैक मनी व्हाइट की जा रही है. 31 मार्च 2024 तक की जानकारी साझा करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है.