*एकादशी व्रत के लाभ
* एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है .*
* जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है .*
* जो पुण्य गौ-दान, सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है .*
* एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं . इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है .*
* धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है .*
* कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है .
एकादशी को चावल खाना वर्जित क्यों ?
*एकादशी के बारे में एक वैज्ञानिक रहस्य बताते हुए कहते हैं : संत महात्मा बताते हैं कि एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए . जो खाता है, समझो वह एक-एक चावल का दाना खाते समय एक-एक कीड़ा खाने का पाप करता है . संत की वाणी में हमारी मति-गति नहीं हो तब भी कुछ सच्चाई तो होगी . मेरे मन में हुआ कि ‘इस प्रकार कैसे हानि होती होगी ? क्या होता होगा ?’*
*मेरी मति कथा पुराण में बहुत लगती है, तो शास्त्रों के अध्ययन से इस संशय का समाधान मेरे को मिला कि प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तक वातावरण में से, हमारे शरीर में से जलीय अंश का शोषण होता है, भूख ज्यादा लगती है और अष्टमी से लेकर पूनम या अमावस्या तक जलीय अंश शरीर में बढ़ता है, भूख कम होने लगती है . चावल पैदा होने और चावल बनाने में खूब पानी लगता है . चावल खाने के बाद भी जलीय अंश ज्यादा उपयोग में आता है . जल के मध्यम भाग से रक्त एवं सूक्ष्म भाग से प्राण बनता है . सभी जल तथा जलीय पदार्थों पर चन्द्रमा का अधिक प्रभाव पड़ने से रक्त व प्राण की गति पर भी चन्द्रमा की गति का बहुत प्रभाव पड़ता है . अतः यदि एकादशी को जलीय अंश की अधिकतावाले पदार्थ जैसे चावल आदि खायेंगे तो चन्द्रमा के कुप्रभाव से हमारे स्वास्थ्य और सुव्यवस्था पर कुप्रभाव पड़ता है . जैसे कीड़े मरे या कुछ अशुद्ध खाया तो मन विक्षिप्त होता है, ऐसे ही एकादशी के दिन चावल खाने से भी मन का विक्षेप बढ़ता है . तो अब यह वैज्ञानिक समाधान मिला कि अष्टमी के बाद जलीय अंश आंदोलित होता है और इतना आंदोलित होता है कि आप समुद्र के नजदीक डेढ़-दो सौ किलोमीटर तक के क्षेत्र के पेड़-पौधों को अगर उन दिनों में काटते हो तो उनको रोग लग जाता है .
*अभी विज्ञानी बोलते हैं कि मनुष्य को हफ्ते में एक बार लंघन करना (उपवास रखना) चाहिए लेकिन भारतीय संस्कृति कहती है : लाचारी का नाम लंघन नहीं… भगवान की प्रीति हो और उपवास भी हो . ‘उप’ माने समीप और ‘वास’ माने रहना – एकादशी व्रत के द्वारा भगवद्-भक्ति, भगवद्-ध्यान, भगवद्-ज्ञान, भगवद्-स्मृति के नजदीक आने का भारतीय संस्कृति ने अवसर बना लिया .
Astro nirmal
षट्तिला एकादशी व्रत करने से कष्ट, दुर्भाग्य एवं दरिद्रता दूर होकर मोक्ष मिलता
एकादशी को दक्षिणावर्ती शंख के जल से भगवान नारायण अभिषेक करने से माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न होती