नई दिल्ली. जो भी कानून महिला कर्मचारियों की शादी और उनके घरेलू कामकाज को अयोग्यता का आधार बनाता है, वह असंवैधानिक है. यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने केंद्र सरकार से सैन्य नर्सिंग सेवा की पूर्व स्थायी कमीशन अधिकारी को 60 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. महिला को उनकी शादी के बाद 1988 में नौकरी से निकाल दिया गया था.
बाद में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने महिला को बहाल करने का फैसला दिया. इस आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस तरह का पितृसत्तात्मक रूल इंसान की गरिमा और गैर-भेदभाव के अधिकार को कम करता है. इसके साथ ही महिला अधिकारी की तीन दशक लंबी कानूनी लड़ाई का समापन हो गया. जानकारी के अनुसार जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने निर्देश दिया कि लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन को सभी दावों के फुल एंड फाइनल भुगतान किए जाएं.
1977 के आर्मी निर्देश संख्या 61 के अनुसार महिला अधिकारी को नौकरी से टर्मिनेट कर दिया गया था. इस रूल में सैन्य नर्सिंग सेवा में स्थायी कमीशन देने के सेवाओं से संबंधित नियम और शर्तें लिखी हैं. हालांकि 1995 में जब यह केस लंबित था, इस रूल को वापस ले लिया गया था. कोर्ट ने आखिर में अपने फैसले में कहा कि सैन्य नर्सिंग सेवा से जॉन को बाहर किया जाना गलत और अवैध था. कोर्ट ने कहा कि पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन सैन्य नर्सिंग सेवा में एक स्थायी कमीशन अधिकारी थीं. हम इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते कि इस आधार पर उन्हें टर्मिनेट किया जा सकता है कि उन्होंने शादी कर ली थी. यह नियम केवल महिला नर्सिंग अधिकारियों पर लागू होता था.
कोर्ट ने दो टूक कहा कि इस तरह का नियम स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला के शादी करने के कारण नौकरी खत्म करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का मामला है. लिंग-आधारित पूर्वाग्रह पर बने नियम संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य हैं. जॉन को 1982 में नियमों के तहत एमएनएस में नौकरी मिली थी. वह सेना अस्पताल, दिल्ली में एक ट्रेनी के रूप में शामिल हुई थीं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-सरकार की बात नहीं माने किसान, 21 फरवरी को 'दिल्ली कूच' का ऐलान
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