नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार के नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है और अदालतें राज्यों को इस आधार पर किसी विशेष नीति या योजना को लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती हैं कि बेहतर, निष्पक्ष या समझदार विकल्प उपलब्ध है. भूख और कुपोषण से निपटने के लिए सामुदायिक रसोई स्थापित करने की योजना बनाने की अपील करने वाली एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायालय ने यह टिप्पणी की.
शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए मामले में कोई भी निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाएं केंद्र और राज्यों द्वारा लागू की जा रही हैं. न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि नीति की विवेकशीलता या सुदृढ़ता के बजाय नीति की वैधता न्यायिक समीक्षा का विषय होगी.
पीठ ने कहा, यह सर्वविदित है कि नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है. अदालतें किसी नीति की शुद्धता, उपयुक्तता या औचित्य की जांच नहीं करती हैं और न ही कर सकती हैं, न ही अदालतें उन नीतिगत मामलों में कार्यपालिका की सलाहकार हैं जिन्हें बनाने का कार्यपालिका को अधिकार है. अदालतें राज्यों को किसी विशेष नीति या योजना को इस आधार पर लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं कि एक बेहतर, पारदर्शी या तार्किक विकल्प उपलब्ध है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-14 हजार किसान आज दिल्ली कूच के लिए दिखाएंगे दम, 1200 ट्रैक्टर ट्रॉलियां, 300 कारों का काफिला
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