Article 370 Movie Review: यामी गौतम का बेस्ट किरदार, डायरेक्शन कमजोर

Article 370 Movie Review: यामी गौतम का बेस्ट किरदार, डायरेक्शन कमजोर

प्रेषित समय :08:49:00 AM / Sun, Feb 25th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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यामी गौतम स्टारर ‘आर्टिकल 370’ आज बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो गई. कश्मीर और आतंकवाद पर बनी अबतक की बेस्ट फिल्म है. फिल्म को आदित्य धर ने प्रोड्यूस किया है. आदित्य की साल 2019 में आई फिल्म ‘उरी: द सर्जिकल’ स्ट्राइक ने न केवल बॉलीवुड को एक यंग सुपरस्टार- विक्की कौशल दिया बल्कि भारतीय वॉर पर बनी फिल्मों के लिए एक मिसाल भी कायम की. 

फिल्म की शुरुआत में अजय देवगन का नरैशन फिल्म की टोन सेट कर देता है. यह आईडी फील्ड ऑफिसर ज़ूनी हक्सर के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक मुजाहिदीन बुरहान वानी को एक मुठभेड़ में मारने में सफलता हासिल करती है. इसका कश्मीर पर एक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है. लोग उसकी मौत का विरोध करते हैं और सेना पर पथराव करते हैं. आतंकवाद और बढ़ गया है. जूनी को आईडी से निलंबित कर दिया गया है और दिल्ली भेज दिया गया है. जहां अब वह मंत्रियों के घरों में शादियों के दौरान सिक्योरिटी देती है.

यह तब तक चलता रहता है जब तक कि पीएमओ की ज्वॉइंट सेक्रेटरी राजेश्वरी स्वामीनाथन कश्मीर में स्थिरता को लाने, आर्टिकल 370 को हटाने और एनआईए को लीड करने के लिए उनसे संपर्क नहीं करतीं. इससे ज़ूनी को कश्मीर वापस जाने और घाटी में ‘अमन’ को वापस लाने का मौका मिलता है. फिल्म में पुलवामा हमले और अलगाववादी नेताओं और अधिकारियों की कूटनीति देखने को मिलती है.

यामी गौतम ऐसी फिल्मों के लिए ही बनी हैं। उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक के बाद एक बार फिर से उन्होंने शानदार काम किया है। PM0 में सेक्रेटरी बनीं प्रियामणि ने संजीदगी से अपना रोल निभाया है। उन्हें जैसा रोल दिया गया है, वो उसमें सटीक बैठती हैं। गृह मंत्री अमित शाह का रोल निभा रहे एक्टर किरण करमाकर इस फिल्म के सरप्राइज एलिमेंट हैं। उन्होंने अमित शाह के बॉडी लैंग्वेज को क्या खूब पकड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका में अरुण गोविल थोड़े हल्के लगे हैं। आर्मी ऑफिसर के रोल में वैभव तत्ववादी ने प्रभावित किया है।

‘आर्टिकल 370’ को कश्मीर की कुछ रियल लोकेशंस पर फिल्माया गया है. फिल्म की स्क्रिप्ट कमाल की है.मेकर्स फिल्म के पहले पार्ट में कहानी के ऑरिजन को दिखाते हैं और इंटरवल के बाद इसमें तेजी है. फिल्म दूसरा पार्ट थोड़ा वाइड नजर आता है. आदित्य सुहास जामभले फिल्म के डायरेक्टर हैं। डायरेक्शन में काफी सारी खामियां हैं। यह फिल्म डॉक्यूमेंट्री ज्यादा लगती है। वैसे तो फिल्म की लेंथ 2 घंटे 40 मिनट है, फिर भी ऐसा लगता है कि तथ्यों को जल्दी-जल्दी समेटने की कोशिश की गई है। हालांकि, कई-कई जगह डायरेक्टर इंटरेस्ट बनाने में कामयाब हुए हैं।