नई दिल्ली. महिला कर्मचारी को 180 दिन की मैटरनिटी लीव के साथ-साथ दो साल की चाइल्डकेयर लीव देना अनिवार्य कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी महिला को चाइल्डकेयर लीव देने से मना किया गया तो यह उस महिला को जॉब से निकालने या छोड़ देने की धमकी मानी जाएगी. बता दें कि एक सरकारी कॉलेज की अस्सिटेंट प्रोफेसर शालिनी धर्माणी ने एक याचिका दायर की थी जिसमें उसने कहा था कि उनके बच्चे को एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसके लिए उसकी कई सर्जरी होनी हैं और उसकी लगातार देखभाल करनी है. इसके बाद ही ये फैसला आया है.
धर्माणी ने अपनी वकील प्रगति नीखरा के जरिए अदालत को बताया कि उनकी छुट्टियां खत्म हो गई हैं और हिमाचल प्रदेश सरकार ने उन्हें बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी देने से इनकार कर दिया है क्योंकि इसके लिए कोई प्रावधान नहीं हैं. जबकि सेंट्रल सिविल सर्विस रूल्स की धारा 43-सी को 2010 में संशोधित किया गया था जिससे महिला कर्मचारियों को उनके विकलांग बच्चों के 22 वर्ष का होने तक 730 दिन की चाइल्डकेयर लीव्स दी गई थीं. वहीं, नॉर्मल बच्चों के 18 साल के होने तक इन छुट्टियों का लाभ लिया जा सकता है.
हिमाचल में इस तरह के नियम न होने पर आपत्ति जताई गई है. बच्चों की देखभाल के लिए ली गई छुट्टी महिलाओं का हक है और यह एक अहम संवैधानिक आदेश है. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है कि माताओं के पास अपने बच्चों की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं बचता है. कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को एक समिति गठित करने के लि कहा है जिसमें महिला कर्मचारियों को बच्चे की देखभाल के लिए दी जाने वाली छुट्टियों पर दोबारा विचार किया जा सके.
जिस महिला ने याचिका दायर की थी उसे लेकर अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार से कहा महिला को अपने बेटे की देखभाल के लिए छुट्टी देने पर विचार किया जाए क्योंकि उसका बेटा एक जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित है.
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