Movie Review- रुसलान
कलाकार- आयुष शर्मा , जगपति बाबू , सुश्री मिश्रा , विद्या मालवडे , नवाब शाह और सुनील शेट्टी आदि
लेखक- शिवा , यूनुस सजावल , मोहित श्रीवास्तव और केविन दवे
निर्देशक- करण एल भूटानी
निर्माता- के के राधामोहन
रेटिंग- 1.5/5
आयुष शर्मा ने साल 2018 में फिल्म ‘लवयात्री’ से हिंदी सिनेमा में अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। आयुष शर्मा की तीसरी फिल्म ‘रुसलान’ देखकर समझा जा सकता है कि सब कुछ पहुंच में होने के बाद भी हिंदी सिनेमा का हीरो बन पाना कितना मुश्किल है। डायरेक्टर करण एल बुटानी का पूरा ध्यान फिल्म में अपने हीरो की बहादुरी दिखाना है। फिर चाहे कुछ भी हो। आयुष शर्मा की एंट्री से लेकर क्लाइमेक्स तक पूरी फिल्म सिर्फ और सिर्फ रुसलान के बारे में है। पूरा स्क्रीनप्ले उसकी तारीफ, उसका महिमामंडन है, जो किसी भी बाधा को पार कर सकता है। फिल्म की कहानी यूनुस सजावल, मोहित श्रीवास्तव, कविन दवे ने लिखी है।
कहानी- रुसलान (आयुष शर्मा) के दो चेहरे हैं। एक जिसमें वह बंदूक और गोलियों की धूम के बीच रहा है। जबकि दूसरा चेहरा वो, जहां वो एक बेहतरीन म्यूजिशियन है। रुसलान का एक बीता हुआ कल है, जो उसके लिए काले अध्याय से कम नहीं है। उसे अपनी छवि साफ करनी है। वह देश की खुफिया जांच एजेंसी 'रॉ' में एक स्थाई नौकरी चाहता है। लेकिन सही काम करने की उसकी यह तीव्र इच्छा, अक्सर उसे ऐसी स्थितियों में ले जाती है जो खतरनाक है। रुसलान के अंदर एक बदले की आग भी जल रही है। रुसलान ने अपने पूरे परिवार को एक खूनी मुठभेड़ में खत्म होते देखा है। बड़ा होकर वह एक बहुत ही सुलझे हुए इंसान के रूप में सामने आता है। एक ईमानदार अधिकारी मेजर समीर (जगपति बाबू) और उसकी पत्नी द्वारा गोद लिए जाने का उसकी बदली हुई किस्मत में बड़ा योगदान है। लेकिन जीवन में उसका एकमात्र मिशन है- किसी भी कीमत पर अपने देश की सेवा करना।
कमजोर कड़ी- आयुष शर्मा अपनी इस तीसरी फिल्म में भी वहीं खड़े नजर आते हैं, जहां वह छह साल पहले फिल्म ‘लवयात्री’ में थे। वह भ्रमित हैं। वह समझ ही नहीं पा रहे कि उन्हें हिंदी सिनेमा का बॉय नेक्सट डोर बनना है या फिर शाहरुख और सलमान जैसा इन दिनों का एक्शन हीरो। फिल्म की जब पहली पहली बार चर्चा हुई थी तो उनके किरदार के साथ एक गिटार भी था। फिल्म में भी वह गिटार टुनटुनाते दिखते हैं। कहानी, पटकथा और संवादों में तमाम नई पुरानी फिल्मों की याद दिलाती फिल्म ‘रुसलान’ का संगीत भी बहुत सतही है। फिल्म देखते हुए यह एहसास होता है कि कहानी में दृढ़ विश्वास की कमी है। किरदारों को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता था। इसके अलावा फिल्म में भारी मात्रा में देशभक्ति भी डाला गया है। यह आपको भावनात्मक रूप से जोड़ता तो है, लेकिन कभी-कभी काल्पनिक भी लगता है। हां, जी श्रीनिवास रेड्डी की सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है।