नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि कोर्ट रूम, राजनीतिक बहस करने की जगह नहीं है. कोर्ट इसे राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनने दे सकता है. पश्चिम बंगाल सरकार, CBI जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर की थी जिस पर बहस हो रही थी. केंद्र सरकार ने एक मामले में CBI जांच का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को केवल कानूनी सिद्धांतों से मतलब है, न कि राजनीतिक पैंतरेबाजी से. जस्टिस भूषण आर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार के वकीलों से राजनीतिक तर्क न देने की गुजारिश की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम इस मामले में केवल कानूनी मुद्दे तय कर रहे हैं. हम किसी भी पक्ष को राजनीतिक मुद्दे और तर्क करने की इजाजत नहीं देंगे. हम नहीं चाहते कि कोर्ट राजनीतिक लड़ाई का मंच बने. हम इसकी अनुमति कभी नहीं देंगे.'
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक बेंच ने अभी इस केस में अपना फैसला सुरक्षित रखा है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस केस में केंद्र की ओर से दलीलें दीं जबकि सीनियर वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ममता बनर्जी सरकार की ओर से पेश हुए.
साल 2021 में पश्चिम बंगाल सरकार ने यह केस दायर किया था. इस पर सुनवाई का दूसरे दिन जमकर बहसबाजी हुई. सॉलिसिटर जनरल ने कपिल सिब्बल के ED पर दिए गए बयान पर सवाल उठाया और कहा कि राज्य के मौजूदा मंत्री से ED ने 50 करोड़ रुपये बरामद किए थे. उन्होंने कहा कि शायद इसीलिए कपिल सिब्बल ऐसे सवाल कर रहे हैं. उन्होंने साल 2022 में पार्थ चटर्जी से जुड़े परिसरों में 50 करोड़ रुपयों की रिकवरी का जिक्र किया. पार्थ पर शिक्षक भर्ती घोटाले में शामिल होने के आरोप हैं. वे ममता के भरोसेमंद नेता रहे हैं.
वहीं कपिल सिब्बल ने इसके जवाब में कहा कि वे ऐसे बयानों पर कुछ बोलना नहीं चाहते हैं. बेंच ने न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता जिक्र करते हुए कहा कि यहां कानून से जुड़े साफ सुथरे सवाल किए जाएं. हम केवल कानून पर ही दोनों पक्षों को सुनेंगे. हम इस अदालत में किसी भी राजनीतिक बहस की अनुमति नहीं देंगे.
पश्चिम बंगाल सरकार ने वकील आस्था शर्मा के जरिए दायर एक केस में कहा है कि केंद्र सरकार की कार्रवाई और राज्य के मामलों में सीबीआई की एंट्री, सत्ता का अतिक्रमण है. यह राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन है. अगस्त 2021 में दायर इस केस में कहा गया है कि तृणमूल कांग्रेस सरकार ने नवंबर 2018 में CBI को दी गई जनरल कंसेंट वापस ले ली थी. इसके बाद भी केंद्रीय एजेंसी 12 मामलों में सक्रिय है, यह एक संवैधानिक अतिक्रमण है.
इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि CBI भारत संघ नहीं है, न ही ये केंद्र सरकार की ओर से नियंत्रित होती है. यह एक स्वतंत्र कानूनी संस्था है. इसकी पहचान अलग है. तुषार मेहता ने 2 मई को हुई सुनवाई में कहा था कि पश्चिम बंगाल सरकार तथ्यों को तबाती है और कोर्ट को गुमराह करती है. उन्होंने मांग की कि यह केस खारिज हो जाए.