Movie Review- श्रीकांत
कलाकार- राजकुमार राव , ज्योतिका , अलाया एफ , शरद केलकर और जमील खान आदि
लेखक- जगदीश सिद्धू और सुमित पुरोहित
निर्देशक- तुषार हीरानंदानी
निर्माता- भूषण कुमार और निधि परमार हीरानंदानी
रेटिंग- 2.5/5
दृष्टिबाधित इंडियन इंडस्ट्रीलिस्ट श्रीकांत बोला की लाइफ पर बेस्ड फिल्म श्रीकांत 10 मई को रिलीज हो गई है। फिल्म ‘श्रीकांत’ मनोरंजन के लिए बनी फिल्म नहीं है। ये फिल्म उन व्यवस्थाओं की तरफ उंगली उठाने वाली बायोपिक है जिनसे लड़कर श्रीकांत बोल्ला एक सफल कारोबारी बने। तत्कालीन राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम से मिलने पहुंचे छात्रों में से जब एक छात्र बड़ा होकर देश का पहला दृष्टिबाधित राष्ट्रपति बनने का इरादा जाहिर करता है और फिल्म खत्म होने के बाद जब स्क्रीन पर ये लिखकर आता है कि श्रीकांत बोल्ला आज भी अपनी इस ख्वाहिश के साथ जी रहे है तो फिल्म का मकसद साफ हो जाता है।
कहानी- 13 जुलाई, 1992 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में एक लड़के श्रीकांत (राजकुमार राव) का जन्म होता है। घर में लड़के की किलकारी गूंजती है तो मां-बाप खुशी से फूले नहीं समाते। हालांकि, उन्हें धक्का तब लगता है, जब पता चलता है कि उनका बच्चा जन्मांध है यानी वो देख नहीं सकता। बच्चा देख नहीं सकता, लेकिन मां-बाप उसकी शिक्षा में कोई कमी नहीं करते। दसवीं के बाद श्रीकांत साइंस सब्जेक्ट में एडमिशन लेना चाहता है, लेकिन ब्लाइंड होने की वजह से उसे एडमिशन नहीं मिलता। श्रीकांत अपनी टीचर (ज्योतिका) की मदद से एजुकेशन सिस्टम पर केस कर देता है, इसमें उसे जीत भी मिलती है। श्रीकांत दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान में से एक MIT, अमेरिका में अप्लाय करता है, जहां उसका एडमिशन हो जाता है। वहां से लौटने के बाद श्रीकांत की लाइफ में क्या-क्या चुनौतियां आती हैं, कैसे वो खुद का बिजनेस शुरू करता है, इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
अभिनय के लिहाज से ये फिल्म राजकुमार राव की यादगार फिल्म हो सकती थी, अगर राजकुमार ने दृष्टिहीनों को दैनिक जीवन में आने वाली दिक्कतों को इस फिल्म में जीकर दिखाया होता। दिन के जरूरी काम निपटाने में आने वाली समस्याएं किसी दृष्टिहीन किरदार से दर्शकों को जोड़ने का सबसे आसान और सशक्त माध्यम बनती हैं, लेकिन ये चीजें फिल्म की पटकथा में नहीं है। यहां पूरा फोकस श्रीकांत की पढ़ाई, उसकी कारोबारी सफलता और फिर एक सफल कारोबारी को खुद पर होने वाले अभिमान पर केंद्रित है। किसी भी फिल्म का हीरो जैसे ही एक स्याह घेरे मे जाने लगता है, दर्शकों का उससे ताल्लुक तुरंत टूट जाता है। राजकुमार राव ने पूरी फिल्म में एक ही तरह की भंगिमा बातें करते वक्त ओढ़े रखी है और एक समय के बाद यह बहुत ही एकांगी लगने लगती है।
अलाया एफ ने स्वाति के किरदार में प्रभावित किया है। वह आहिस्ता आहिस्ता मजबूत हो रहीं कलाकार हैं और उन्हें अपना दमखम निखारने के लिए मौके भी अच्छे मिल रहे हैं। ए पी जे अब्दुल कलाम के किरदार में ‘गु्ल्लक’ वाले जमील खान ने ठीक काम किया है। फिल्म का पूरा संगीत फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के गाने ‘पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा’ पर टिका है, और दूसरा एक भी गाना फिल्म खत्म होने के बाद दर्शकों के जहन में रह नहीं पाता। कुल मिलाकर फिल्म ‘श्रीकांत’ इंटरवल तक एक अच्छी और उसके बाद एक औसत फिल्म है जिसे एक बेहतरीन फिल्म बताने का फिल्म समीक्षकों पर खासा दबाव रहा है।