नागपुर. नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता विकास वर्ग कार्यक्रम का 10 जून को समापन दिवस था. इसमें संघ प्रमुख ने कहा कि जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मर्यादा की सीमाओं का पालन करता है, वही सेवक कहलाने का हकदार है. मोहन भागवत सोमवार संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन में शामिल हुए. यहां भागवत ने चुनाव, राजनीति और राजनीतिक दलों के रवैये पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किये.
भागवत ने कहा- जो मर्यादा का पालन करते हुए कार्य करता है, गर्व करता है, किन्तु लिप्त नहीं होता, अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है. उन्होंने कहा कि जब चुनाव होता है तो मुकाबला जरूरी होता है. इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है. यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए.
भागवत ने मणिपुर की स्थिति पर कहा- मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है. बीते 10 साल से राज्य में शांति थी, लेकिन अचानक से वहां गन कल्चर बढ़ गया. जरूरी है कि इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए.
संघ चुनाव नतीजों के एनालिसिस में नहीं उलझता
लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बाहर का माहौल अलग है. नई सरकार भी बन गई है. ऐसा क्यों हुआ, संघ को इससे मतलब नहीं है. संघ हर चुनाव में जनमत को परिष्कृत करने का काम करता है, इस बार भी किया, लेकिन नतीजों के विश्लेषण में नहीं उलझता. लोगों ने जनादेश दिया है, सब कुछ उसी के अनुसार होगा. क्यों? कैसे? संघ इसमें नहीं पड़ता. दुनियाभर में समाज में बदलाव आया है, जिससे व्यवस्थागत बदलाव हुए हैं. यही लोकतंत्र का सार है.
चुनावी मुकाबला झूठ पर आधारित न हो
श्री भागवत ने कहा कि जब चुनाव होता है, तो मुकाबला जरूरी होता है, इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है - यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए. लोग क्यों चुने जाते हैं - संसद में जाने के लिए, विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति बनाने के लिए. हमारी परंपरा आम सहमति बनाने की है.
संसद में सहमति बनाएं, विपक्ष को विरोधी नहीं, प्रतिपक्ष कहें
संसद में दो पक्ष क्यों होते हैं? ताकि, किसी भी मुद्दे के दोनों पक्षों को संबोधित किया जा सके. किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही हर मुद्दे के दो पहलू होते हैं. संसद में दो पक्ष जरूरी हैं. देश चलाने के लिए सहमति जरूरी है. संसद में सहमति से निर्णय लेने के लिए बहुमत का प्रयास किया जाता है, लेकिन हर स्थिति में दोनों पक्ष को मर्यादा का ध्यान रखना होता है. संसद में किसी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आएं, इसलिए ऐसी व्यवस्था है. विपक्ष को विरोधी पक्ष की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए.
चुनाव ऐसे लड़ा, जैसे मुकाबला नहीं, युद्ध हो
जो लोग कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद इस दिशा में आगे बढ़े हैं, उनके बीच इस तरह की सहमति बनाना मुश्किल है. इसलिए हमें बहुमत पर निर्भर रहना पड़ता है. पूरी प्रतिस्पर्धा इसी के लिए है, लेकिन इसे ऐसे लड़ा गया, जैसे यह युद्ध हो. जिस तरह से चीजें हुई हैं, जिस तरह से दोनों पक्षों ने कमर कसकर हमला किया है, उससे विभाजन होगा, सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ेंगी. अनावश्यक रूप से आरएसएस जैसे संगठनों को इसमें शामिल किया गया है. तकनीक का उपयोग करके झूठ फैलाया गया, सरासर झूठ. क्या तकनीक और ज्ञान का मतलब एक ही है?
मर्यादा का पालन करे, अहंकार न करे, वही सही सेवक
बाहरी विचारधाराओं के साथ समस्या यह है कि वे खुद को सही होने का एकमात्र संरक्षक मानते हैं. भारत में जो धर्म और विचार आए, कुछ लोग अलग-अलग कारणों से उनके अनुयायी बन गए, लेकिन हमारी संस्कृति को इससे कोई समस्या नहीं है. हमें इस मानसिकता से छुटकारा पाना होगा कि सिर्फ हमारा विचार ही सही है, दूसरे का नहीं. जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मर्यादा की सीमाओं का पालन करता है, जो अपने काम पर गर्व करता है, फिर भी अनासक्त रहता है, जो अहंकार से रहित होता है - ऐसा व्यक्ति वास्तव में सेवक कहलाने का हकदार है.
मणिपुर शांति की राह देख रहा
उन्होंने कहा कि मणिपुर जल रहा, इस पर कौन ध्यान देगा एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है. इससे पहले 10 साल शांत रहा और अब अचानक जो कलह वहां पर उपजी या उपजाई गई, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है. इस पर कौन ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना यह कर्तव्य है. मणिपुर हिंसा में 200 से ज्यादा मौतें हुई हैं और 50 हजार लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं.