उत्तराखंड ने पिछले दो महीनों में चरम मौसम की स्थितियों का सामना किया है. जून में जहां अधिकतम तापमान ने रिकॉर्ड तोड़े, वहीं जुलाई में मूसलधार मानसूनी बारिश ने बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा कर दी. 1 जून से 10 जुलाई तक उत्तराखंड में कुल बारिश 328.6 मिमी दर्ज की गई, जो सामान्य 295.4 मिमी से 11% अधिक है.
जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, इन चरम मौसम की स्थितियों का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है. जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ रही है, जिससे भारी बारिश और खतरनाक हीटवेव आ रही हैं.
जुलाई: अत्यधिक बारिश का प्रकोप
जुलाई की शुरुआत भारी बारिश के साथ हुई और 10 जुलाई तक उत्तराखंड में सामान्य औसत 118.6 मिमी के मुकाबले 239.1 मिमी बारिश हो चुकी है. यह सामान्य से 102% अधिक है. इस समय, राज्य के सभी 13 जिलों में जुलाई के महीने में बारिश का अधिशेष दर्ज किया गया है. बागेश्वर जिले में 357.2 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य 77.7 मिमी से 360% अधिक है. इसके बाद उधम सिंह नगर और चंपावत जिले हैं, जहां क्रमशः 280% और 272% बारिश का अधिशेष दर्ज किया गया है.
जून: अत्यधिक गर्मी की मार
साल 2024 का जून माह मौसम विज्ञानियों और वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्यजनक रहा, क्योंकि एक हिमालयी राज्य में कई दिनों तक 40℃ से ऊपर तापमान दर्ज किया गया. देहरादून में 9 जून से 20 जून तक लगातार 11 दिनों तक तापमान 40℃ से अधिक रहा. वहीं, मई में भी शहर में आठ दिनों तक तापमान 40℃ से ऊपर दर्ज किया गया.
मुख्तेश्वर में मई में कम से कम पांच मौकों पर तापमान लगभग 30℃ रहा, जो पहाड़ी इलाकों में हीटवेव का संकेत है. 15 जून को मुख्तेश्वर में अधिकतम तापमान 32.2℃ दर्ज किया गया, जो पिछले 10 वर्षों में सबसे अधिक था. पंतनगर में 19 जून को 41.8℃ का तापमान दर्ज किया गया, जो पिछले 10 वर्षों का रिकॉर्ड है.
वनाग्नि की बढ़ती घटनाएं
उत्तराखंड में मार्च के अंत से शुरू होकर लगभग 11 हफ्तों तक वनाग्नि का पीक सीजन रहता है. 2024 में 1 जनवरी से 3 जून के बीच 247 VIIRS (Visible Infrared Imaging Radiometer Suite) वनाग्नि अलर्ट दर्ज किए गए. जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और लंबे सूखे की अवधि ने वनाग्नि की घटनाओं को बढ़ावा दिया है.
साल 2001 से 2023 तक, उत्तराखंड ने वनाग्नि के कारण 1.18 हजार हेक्टेयर वृक्षों का आवरण खो दिया है. नैनीताल जिले में इस अवधि में सबसे अधिक वृक्ष आवरण का नुकसान हुआ है, जिसमें प्रति वर्ष औसतन 12 हेक्टेयर का नुकसान हुआ है.
निष्कर्ष
उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं की वृद्धि हो रही है. तापमान में वृद्धि और अनियमित वर्षा पैटर्न से राज्य को भारी नुकसान हो रहा है. अगर वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि जारी रहती है, तो इस तरह की घटनाएं अधिक बार और तीव्र होती जाएंगी. विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैस एमिशन को कम करके ही इस संकट को कुछ हद तक कम किया जा सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-बदलती जलवायु ने किसानों को किया नयी बागवानी पद्धतियों को अपनाने पर मजबूर
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