दुनियाभर में हर साल 1 से 7 अगस्त तक वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक 120 से अधिक देशों में मनाया जाता है. इसके जरिए लोगों कोब्रेस्टफीडिंग के बारे में जागरूक किया जाता है. माँ का दूध बच्चे को सभी जरूरी पोषक तत्वों को प्रदान करता है. इससे बच्चे में मालनूट्रिशन की आशंका कम हो जाती है. ब्रेस्ट फीडिंग से बच्चे को अस्थमा, मोटापा और टाइप 1 डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा कम रहता है. बच्चे को मां का दूध मिलने से कान के इन्फेक्शन और पेट की बीमारियों से भी बचाव होता है.
बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से कैंसर और टाइप -2 जैसी बीमारियों का रिस्क भी कम होता है. मैक्स हॉस्पिटल गुरुग्राम में आब्सटेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी विभाग में सीनियर डायरेक्टर और यूनिट हेड डॉ. सुमन लाल बताती हैं की बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से पोस्टपार्टम रिकवरी में भी मदद करता है. इससे महिला ब्रेस्ट कैंसर के खतरे से भी बच सकती है. बच्चे के लिए भी मां का दूध काफी जरूरी होता है. अगर सही समय तक यह न मिले तो बच्चे को कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं.
सफल ब्रेस्टफीडिंग के लिए स्किन से स्किन का संपर्क जरूरी है. अगर बच्चा हाथ चूस रहा है या काफी मूवमेंट कर रहा है तो यह संकेत है की उसको भूख लग रही है. बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग कराने के लिए आरामदायक स्थिति सुनिश्चित करना जरूरी है ताकि बच्चे को सही से दूध पिलाया जा सके और मां और बच्चे दोनों को असुविधा कम हो. ब्रेस्ट फीडिंग के बाद बच्चे को डकार आना जरूरी है. यह संकेत है की उसका पेट भर गया है.
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और WHO के मुताबिक, जन्म के बाद से 6 महीने तक केवल स्तनपान कराना चाहिए. उसके बाद पूरक आहार के साथ दो साल या उससे अधिक समय तक स्तनपान कराएं. इस दौरान ध्यान रखें की बच्चे को केवल मां का दूध बी पिलाएं किसी तरह का बाजार से आने वाला दूध या गाय, भैंस का दूध बिलकुल न दें. इससे बच्चे की सेहत बिगड़ सकती है.