नई दिल्ली. राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस से एक दिन पहले चांद पर मौजूद प्रज्ञान रोवर की ओर से भेजे गए डेटा से पता चला है कि चंद्रमा पर कभी मैग्मा महासागर था. नेशनल स्पेस डे, शुक्रवार यानी 23 अगस्त को है. इसी दिन भारत का स्पेसक्राफ्ट 'चंद्रयान-3' चंद्रमा के साउथ पोल पर सफलतापूर्वक उतरा था. कल यानी शुक्रवार को इसकी पहली वर्षगांठ है. वर्षगांठ से एक दिन पहले प्रज्ञान रोवर की ओर से भेजे गए डेटा से एक नई खोज ने मिशन की उपलब्धियों में एक नया आयाम जोड़ दिया है.
स्पेस डिपार्टमेंट के अंतर्गत अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) के संतोष वडावले के नेतृत्व में भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने खुलासा किया कि लैंडिंग स्थल के आसपास रेगोलिथ (चंद्र मिट्टी की सबसे बाहरी परत) में एक समान तात्विक संरचना थी, जो मुख्य रूप से फेरोअन एनोर्थोसाइट चट्टान से बनी थी. ये जानकारी 21 अगस्त को जर्नल नेचर में पब्लिश एनालिसिस में दी गई है. ये जानकारी अल्फा पार्टिकुलर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) की ओर से भेजे गए डेटा पर आधारित था, जो प्रज्ञान रोवर पर पेलोड में से एक है.
PRL की ओर से निर्मित APXS को उन स्थानों पर चंद्र मिट्टी की मौलिक संरचना को मापने के लिए डिज़ाइन किया गया था जहां रोवर रुका था. PRL टीम ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक पूर्व मैग्मा महासागर के साक्ष्य को भी उजागर किया, एक ऐसा क्षेत्र जो पहले मनुष्यों की ओर से खोजा नहीं गया था. वैज्ञानिकों ने कहा कि चंद्रयान-3 डेटा से उनके परिणामों ने चंद्र मैग्मा महासागर की परिकल्पना को मजबूत किया है, जो यह मानता है कि चंद्रमा का मेंटल तब बना जब भारी पदार्थ अंदर की ओर डूब गए जबकि हल्की चट्टानें सतह पर तैरने लगीं, जिससे बाहरी क्रस्ट का निर्माण हुआ.
एलएमओ परिकल्पना के अनुसार, चंद्रमा जब बना था, तब वह पूरी तरह से मैग्मा (पृथ्वी की सतह के नीचे पाया जाने वाला पिघला हुआ या अर्ध-पिघला हुआ प्राकृतिक पदार्थ) का महासागर था. जैसे-जैसे मैग्मा ठंडा हुआ, ओलिवाइन और पाइरोक्सिन जैसे भारी खनिज डूब गए और चंद्रमा की आंतरिक परतों का निर्माण हुआ, जबकि हल्का खनिज प्लेगियोक्लेज़ तैरने लगा और चंद्रमा की बाहरी परत का निर्माण हुआ. APXS की ओर से देखी गई मिट्टी में फेरोअन एनोर्थोसाइट (एफएएन) की मौजूदगी ने LMO परिकल्पना की पुष्टि की.
दिलचस्प बात ये है कि साउथ पोल के पास रेगोलिथ की रासायनिक बनावट भूमध्यरेखीय और मध्य अक्षांश क्षेत्रों के मिट्टी के नमूनों से काफी मिलती जुलती है, जो इस सिद्धांत को और पुष्ट करता है. प्रज्ञान ने क्षेत्र के भूविज्ञान के बारे में नई जानकारियां भी दी हैं. लैंडिंग साइट (शिव शक्ति प्वाइंट) के आसपास 50 मीटर तक का इलाका अपेक्षाकृत चिकना है, जिसमें कोई गड्ढा या पत्थर दिखाई नहीं देता है. चंद्रयान-3 लैंडिंग साइट के 50 मीटर के भीतर विभिन्न स्थानों पर 23 मापों के विश्लेषण से पता चला कि चंद्र रेगोलिथ तत्व संरचना में एक समान है.
APXS ने चांद की मिट्टी में मौजूद विभिन्न बड़े और छोटे तत्वों का पता लगाने और उनकी मात्रा निर्धारित करने के लिए एक्स-रे फ्लोरोसेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी और कण प्रेरित एक्स-रे उत्सर्जन की तकनीकों का इस्तेमाल किया. इसने रोवर पथ पर दो दर्जन वैज्ञानिक अवलोकन किए और प्रत्येक स्थान पर एक्स-रे स्पेक्ट्रम प्राप्त किया. प्रत्येक स्थान पर ओवरव्यू का समय मिशन की आवश्यकता योजना के आधार पर 20 मिनट से 3 घंटे तक अलग-अलग था; 10 दिनों की मिशन अवधि में कुल ओवरव्यू टाइमिंग करीब 31 घंटे थी.