अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं.
(1) श्री गणेश- मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!
(2) हेरम्ब- गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे.
(3) वाक्पति- भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर. पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे.
(4) उच्चिष्ठ गणेश- लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री. सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे.
(5) कलहप्रिय- नमक की डली या. नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस में ही झगड़ने लगते हे.
(6) गोबरगणेश- गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो).
(7) श्वेतार्क श्री गणेश- सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे.
( शत्रुंजय- कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे.
(9) हरिद्रा गणेश- हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे.
(10) सन्तान गणेश- मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं.
(11) धान्यगणेश- सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं.
(12) महागणेश- लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं.
पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व
प्रेषित समय :21:17:53 PM / Mon, Sep 9th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर