करीना कपूर एक ऐसी अदाकारा हैं जो हर किरदार में खुद को ढाल लेती हैं और उम्र के साथ-साथ उनकी एक्टिंग में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. वो समय के साथ चलना जानती हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण सिनेमाघरों में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘द बकिंघम मर्डर्स’ है. इस फिल्म में उनकी अदाकारी देखने के बाद आप उनकी एक्टिंग के मुरीद हो जाएंगे. उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो एक शानदार अभिनेत्री हैं. साथ वह इस फिल्म की प्रोड्यूसर भी हैं. हंसल मेहता के निर्देशन में बनी 'द बकिंघम मर्डर्स' फिल्म कैसी है, आइये जानते हैं।
कहानी- 'द बकिंघम मर्डर्स' की कहानी पूरी तरह से जसमीत बामरा (जस) के इर्द गिर्द घूमती है। जसमीत बामरा एक जासूस है। इस किरदार को करीना कपूर खान ने निभाया है। जसमीत एक मुश्किल दौर से गुजर रही है, वो अपने बेटे को खो चुकी है। जिसके बाद जसमीत ब्रिटेन के बकिंघमशायर के वायकोम्ब नामक कस्बे में ट्रांसफर लेती है। वो सोचती है कि जगह बदलने से उसका दुख थोड़ा कम हो जाएगा। अपने जीवन को सुलझाने के लिए वो अपना घर बार छोड़कर नए सिरे से नई जगह बस जाती है। नए शहर में नई शुरुआत एक नए केस से होती है। वायकोम्बे में उसका पहला मामला एक लापता सिख बच्चे का है, जो एक पार्क में एक लावारिस कार में मृत पाया गया। जांच शुरू होती है, जिसमें पता चलता है कि मुख्य संदिग्ध साकिब नाम का लड़का है जो वास्तव में मृत लड़के के पिता के पूर्व-बिजनेस पार्टनर का बेटा है। एक ऐसे गवाही तैयार कि जाती है कि जिससे साबित हो सके कि साकिब ही असली हत्यारा है। हालांकि जसमीत झूठ को पकड़ लेती है और फिर वास्तविकता पता लगाने के लिए जुट जाती है।
जसमीत के रोल में करीना कपूर खान ब्रिटिश और भारतीय एक्टर्स के साथ काफी सहज लगी हैं। करीना बड़े पर्दे पर एफर्टलेस नजर आ रही हैं और उन्हें इतने प्रभावी अंदाज में देखना दिलचस्प होने के साथ ही किसी ट्रीट से कम नहीं है। करीना का मनमोहक प्रदर्शन है। कहानी का केंद्र होते हुए भी वो बाकी कलाकारों को स्पेस दे रही हैं। इस बार करीना की परफॉर्मेस की जड़ें बहुत मजबूत हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे अवतार ने करीना को पहली बार पर्दे पर लाने में निर्देशक हंसल मेहता पूरी तरह सफल साबित हुए हैं।
मृतक बच्चे के पिता दलजीत कोहली के किरदार में शेफ रणवीर बरार नैचुरल हैं। रणवीर की ये डेब्यू फिल्म है, लेकिन उनका अंदाज एक मंझे हुए एक्टर कि तरह है। स्त्री द्वेषी पति, बेटे से अटूट प्यार और उसे खोने की त्रासदी दिखाते हुए वो अपनी एक्टिंग से दर्शकों को आश्वस्त करने में कामयाब हैं। ऐश टंडन का भी उल्लेख किया जाना चाहिए, जो एक दुखी पुलिस अधिकारी की भूमिका में पूरी तरह से ढल गई हैं। प्रीति कोहली के रोल में प्रभलीन संधू का भी काम सरहनीय है।
हंसल मेहता एक मशहूर कहानीकार हैं और एक बार फिर उन्होंने एक मनोरंजक फिल्म बनाई है, जिसमें दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए कई परतें हैं। यह एक क्रिकेट मैच और फिर एक हत्या को लेकर समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव को दिखाती है। यह एलजीबीटीक्यू समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों और किशोरों के बीच नशीली दवाओं के दुरुपयोग की कहानी भी कहती है। इसमें एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की झलक भी है।
ये फिल्म आपको अंत तक बांधे रखेगी। कहानी परत दर परत खुलती है। कलाकारों का अभिनय भी कमल है। निर्देशन सधा हुआ है, ऐसे में ये फिल्म थिएटर में देखने लायक है। अगर कमी की बात करें तो क्लाइमैक्स थोड़ा कमजोर पड़ता है जिसे और दमदार बनाया जा सकता था। वहीं एक दो जगह ऐसी भी हैं जहां सस्पेंस हल्का ढीला पड़ता है।