नई दिल्ली. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण श्रमिकों के भुगतान खातों में 39 लाख से ज्यादा की कमी आई है. भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिए काम कर रहे संगठन एसोसिएशन ऑफ अकेडेमिक एंड एक्टिविस्ट लिब टेक की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 39 लाख से ज्यादा ग्रामीण श्रमिक मनरेगा के तहत काम करने के अपने अधिकार से वंचित किए गए हैं. रिपोर्ट में एक और बड़ा खुलासा यह है कि 6.70 करोड़ श्रमिकों को भुगतान में देरी हुई है, जिन्हें इस साल अप्रैल से उनके श्रम के लिए कोई राशि नहीं मिली है. हटाए गए खातों को आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के अंतर्गत अयोग्य माना गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल से 10 अक्टूबर 2024 तक लगभग रजिस्टर्ड 84.8 लाख श्रमिकों का नाम इस लिस्ट से हटा दिए गए. साथ ही 45.4 लाख नए वर्कर्स को जोड़ा गया है. वहीं, करीब 39.3 लाख श्रमिकों का नाम हटाया गया है.
15 प्रतिशत तक नाम गलत तरीके से हटाए
रिपोर्ट के मुताबिक गलत तरीके से हटाए गए नामों का आंकड़ा चिंताजनक है. दावा किया गया है कि आंध्र प्रदेश में लगभग 15 प्रतिशत नाम गलत तरीके से हटाए गए. मुख्य वजह आधार-आधारित भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देने से जुड़ी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च में दावा किया गया है कि सबसे ज्यादा नाम हटाए जाने की संख्या तमिलनाडु में 14.7 प्रतिशत है. उसके बाद छत्तीसगढ़ 14.6 प्रतिशत दूसरे स्थान पर है. जानकारी के अनुसार लिब टेक ने पिछले साल की रिपोर्ट में भी बताया था कि वित्तीय वर्ष 2022-23 और 2023-24 के दौरान 8 करोड़ लोगों को मनरेगा रजिस्ट्री से हटा दिया गया था. जबकि मध्यप्रदेश और राजस्थान में श्रमिकों की संख्या में इजाफा हुआ है.
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