भारत में सूर्य उपासना का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. सूर्योपासना के आधार पर कुछ क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी को "छठ पर्व" के रूप में मनाने की परंपरा है. मान्यता के अनुसार, छठ पर्व सूर्य देव की बहन छठ देवी को समर्पित है. यह पर्व सूर्य उपासना से संबंधित होने के कारण किसी पवित्र नदी, जलाशय या फिर सुविधा अनुसार घर में मनाया जाता है.
षष्ठी माता अर्थात् छठ देवी (छटी ) बच्चों की रक्षा करने वाली देवी होने के कारण, उनकी व्रत तथा पूजा मुख्यतः संतानों की लंबी आयु के लिए अभिप्रेत है.मार्कण्डेय पुराण में इस तथ्य का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है. इनके अंशभुक्त पंच महाभूतों के अलावा छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी षष्ठी हैं..
इसीलिए धर्मशास्त्र के आधार पर सन्तान- जन्म के बाद रिष्ट आदि खंडन तथा सुरक्षा के लिए षष्ठ दिवस पर षष्ठी माता की पूजा किया जाता है. फिर इसके आगे भी कंहा- कंहा लोगों ने अपने सन्तान की लंबी आयु के लिए कार्त्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को "छठ पूजा" करते हैं. षष्ठी माता की आराधना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु प्राप्त होने का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं षष्ठी देवी का नाम 'कात्यायनी' बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर विधिवद्ध रूप से पूजा की जाती है..
छठ पूजा कथा:
प्रचलित एक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दु:खी रहते थे. उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि- यज्ञ करवाया. इस यज्ञ के फल स्वरूप रानी गर्भवती हो गईं. नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया, तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ..
इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दु:ख हुआ. संतान शोक में वह आत्महत्या का मन बना लिया. लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की, उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं. देवी ने राजा को कहा कि-- "मैं षष्टी देवी हूं. मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे, तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी." देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया.राजा और उनकी पत्नी ने कार्त्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टि तिथि के दिन देवी माता षष्टी की पूरे विधि- विधान से पूजा की.
इस पूजा के फल स्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा..
छठ व्रत के संदर्भ में ओर एक कथा के अनुसार जब पांडवों ने अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया..
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-