पलपल संवाददाता, भोपाल. एमपी की राजधानी में आयोजित दत्तोपंत ठेंगड़ी स्मृति राष्ट्रीय व्याख्यान माला में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने मुख्य वक्ता के रुप में हिस्सा लिया. इस मौके पर उन्होने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बंटोगे तो कटोगे बयान का समर्थन किया है. उन्होंने कहा एकता का भाव सभी में होना ही चाहिए. इसमें कोई खास बात नहीं हैं. यह गलत भी नहीं है.
मदरसा दारुल उलूम देवबंद द्वारा मुसलमानों के लिए अंगदान को अवैध बताने वाले फतवे से जुड़े सवाल पर आरिफ मोहम्मद ने कहा मुझे न इन पर विश्वास है, न ही कुछ कहना है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े विवाद पर उन्होंने कहा कि राज्यपाल होने के नाते अदालतों के फैसले पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करता. उन्होने भारत की विविधता में सांस्कृतिक एकात्मता विषय पर बोलते हुए कहा कि भारतीय मनीषियों ने हजारों साल पहले ही विविधता में एकता के सूत्र दिए थे. गौतम बुद्ध ने अंतिम उपदेश में अप्प दीपो भव की बात बताई थी. जो दरअसल अथर्ववेद की ऋ चा का सूत्र है. इसे ही हम अद्वैतवाद या एकात्मता कह सकते हैं.
आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद ने जो दर्शन दिए उसकी झलक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के भाषणों में दिखती है. उसी को दत्तोपंत ठेंगड़ी ने विस्तार दिया. लेकिन किसी ने नहीं कहा कि ये सिद्धांत हमारे दिमाग की उपज हैं. उन्होंने कहा कि ये नैसर्गिक है, प्राकृतिक है, दैविक है. हमने केवल ढूंढा है. आरिफ मोहम्मद ने कहा हमारे यहां आस्था की अभिव्यक्ति में विविधता है. जब आस्था समान है तो हम सबको एक होना चाहिए. इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि जब भारत में अंग्रेजों का शासन था. दुनियाभर में चेचक की बीमारी फैली. तब किसी को चेचक का फोड़ा हुआ तो बबूल के कांटे से मवाद निकाल लेते थे. यही मवाद चेचक से पीडि़त दूसरे शख्स को लगाते थे. इससे बीमारी की एंटीबॉडी तैयार हो जाती थी. वहीं राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने कहा कि प्राइवेट व सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर्स जेनरिक दवाएं लिखें.
सरकारों को नियंत्रक नहीं मददगार की भूमिका में आना होगा-
इस मौके पर नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष व अर्थशास्त्री डॉ राजीव कुमार ने कहा कि यदि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र या आत्मनिर्भर बनाना है तो सरकारों को रेगुलेटर (नियंत्रक) के बजाए सपोर्टर (मददगार) की भूमिका में आना होगा. निजी निवेशक देश को आगे बढ़ाएं इसके साथ ही कमजोर तबकों को मजबूत करना होगा. जीडीपी और पर केपिटा इनकम के पैरामीटर के बजाए तरक्की का सही पैमाना समाज के अंतिम छोर पर मौजूद नीचे के 10 फीसदी लोगों की तरक्की और उनकी इनकम ग्रोथ को बनाना होगा. उन्होने कहा कि साम्यवादी अर्थव्यवस्थाएंं लगभग खत्म हो चुकी हैं. पूंजीवाद भी लंबे वक्त तक चलने वाला नहीं है. भारत को इन दोनों के बजाए तीसरा रास्ता अपनाना होगा. इसके लिए नए सिरे से सोचने की जरूरत है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-