अभिमनोज
सुप्रीम कोर्ट ने ’बुलडोजर जस्टिस’ को लेकर अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी किए हैं.
खबरें हैं कि.... सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह से बुलडोजर के जरिये संपत्तियों को ध्वस्त करने के संबंध में बुधवार को देशभर के लिए दिशानिर्देश जारी किए.
अनुच्छेद 142 के तहत जारी किए निर्देश
सर्वोच्च अदालत का कहना है कि- प्रदेश के अधिकारियों की ओर से शक्तियों के मनमाने प्रयोग के संबंध में नागरिकों के मन में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ निर्देश जारी करना आवश्यक समझते हैं.
उल्लेखनीय है कि.... अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी ‘डिक्री’ या आदेश पारित करने का अधिकार देता है.
खबरों पर भरोसा करें तो.... इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि- कार्यपालक अधिकारी जज नहीं हो सकते, वे आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकते और उसका घर नहीं गिरा सकते.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि- यदि कार्यपालक अधिकारी किसी नागरिक का मकान मनमाने तरीके से केवल इस आधार पर गिराते हैं कि उस पर किसी अपराध का आरोप है तो यह कानून के सिद्धांतों के विपरीत है, यह पूरी तरह असंवैधानिक होगा कि लोगों के मकान केवल इसलिए ध्वस्त कर दिए जाएं कि वे आरोपित हैं, दोषी हैं.
इस मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना कोई भी भवन ढहाने की कार्रवाई नहीं की जाएगी, यह कार्रवाई या तो स्थानीय नगरपालिका के नियमों के अनुसार निर्धारित समय पर की जाएगी या फिर नोटिस जारी करने के 15 दिन के भीतर होगी.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि- पब्लिक प्लेस के संबंध में अदालत के निर्देश लागू नहीं होंगे, निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है, इतना ही नहीं, अदालत का आदेश उन मामलों में भी लागू नहीं होगा जहां किसी अन्य अदालत ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है.
सर्वोच्च अदालत ने यह दिशानिर्देश जारी करके ’बुलडोजर जस्टिस’ को लेकर जो संदेह और सवाल थे, उनके जवाब दे दिए हैं!