“ॐ राई वर राई पचरसी. बारह सरसू तेरह राई. नब्बे दिन मंगलवार को ऐसी भाऊ, पराई स्त्री (साध्या का नाम) को भूल जाए घर-बार. घर छोड़, घर की डौरी छोड़. छोड़ माँ-बाप और छोड़ घर का साथ, हो जा मेरे साथ. दुहाई तुझे हलाहल हनुमान की. मेरा काम जल्दी कर, नी करे तो माँ अञ्जनी के सेज पर पाँव धरे. तेरी माता का चीर फाणीने लँगोट करे. फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा.”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले ‘नवरात्र’ या ‘ग्रहण’ में सिद्ध करे. ‘नवरात्र’ में मंगल और शनिवार को हनुमान जी को चोला चढ़ाए और प्रतिदिन हनुमान जी की मूर्ति के समक्ष १०८ बार जप करे. जप के समय अपने पास ‘राई’ और ‘सरसों’ रखे. मन्त्र पढ़कर इन्हें अभिमन्त्रित करे. बाद में आवश्यकतानुसार ‘प्रयोग’ करे. प्रयोग के समय चतुराई से तेरह राई ‘साध्या’ की डेहरी पर डाले और बारह सरसों उसके घर पर फेंके.
श्री हनुमाष्टादशाक्षर मन्त्र-प्रयोग
मन्त्रः- “ॐ नमो हनुमते आवेशय आवेशय स्वाहा .”
विधिः- सबसे पहले हनुमान जी की एक मूर्त्ति रक्त-चन्दन से बनवाए . किसी शुभ मुहूर्त्त में उस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे रक्त-वस्त्रों से सु-शोभित करे . फिर रात्रि में स्वयं रक्त-वस्त्र धारण कर, रक्त आसन पर पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे . हनुमान जी उक्त मूर्त्ति का पञ्चोपचार से पूजन करे . किसी नवीन पात्र में गुड़ के चूरे का नैवेद्य लगाए और नैवेद्य को मूर्ति के सम्मुख रखा रहने दे . घृत का ‘दीपक’ जलाकर, रुद्राक्ष की माला से उक्त ‘मन्त्र’ का नित्य ११०० जप करे और जप के बाद स्वयं भोजन कर, ‘जप’-स्थान पर रक्त-वस्त्र के बिछावन पर सो जाए .
अगली रात्रि में जब पुनः पूजन कर नैवेद्य लगाए, तब पहले दिन के नैवेद्य को दूसरे पात्र में रख लें . इस प्रकार ११ दिन करे .
१२वें दिन एकत्र हुआ ‘नैवेद्य’ किसी दुर्बल ब्राह्मण को दे दें अथवा पृथ्वी में गाड़ दे . ऐसा करने से हनुमान जी रात्रि में स्वप्न में दर्शन देकर सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सेते हैं . ‘प्रयोग’ को गुप्त-भाव से करना चाहिए .
.बन्दी-मोचन-मन्त्र-प्रयोग
विनियोगः- ॐ अस्य बन्दी-मोचन-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीकण्व ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, श्रीबन्दी-देवी देवता, ह्रीं वीजं, हूं कीलकं, मम-बन्दी-मोचनार्थे जपे विनियोगः .
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीकण्व ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीबन्दी-देवी देवतायै नमः हृदि, ह्रीं वीजाय नमः गुह्ये, हूं कीलकाय नमः नाभौ, मम-बन्दी-मोचनार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे . मन्त्रः-
“ॐ ह्रीं ह्रूं बन्दी-देव्यै नमः .” (अष्टोत्तर-शतं जप – १०८)
बन्दी देव्यै नमस्कृत्य, वरदाभय-शोभिनीम् . तदाज्ञां शरणं गच्छत्, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
त्वं कमल-पत्राक्षी, लौह-श्रृङ्खला-भञ्जिनीम् . प्रसादं कुरु मे देवि ! रजनी चैव, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
त्वं बन्दी त्वं महा-माया, त्वं दुर्गा त्वं सरस्वती . त्वं देवी रजनी, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
संसार-तारिणी बन्दी, सर्व-काम-प्रदायिनी . सर्व-लोकेश्वरी देवी, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
त्वं ह्रीं त्वमीश्वरी देवि, ब्रह्माणी ब्रह्म-वादिनी . त्वं वै कल्प-क्षयं कत्रीं, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
देवी धात्री धरित्री च, धर्म-शास्त्रार्थ-भाषिणी . दुःश्वासाम्ब-रागिनी देवि, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
नमोऽस्तु ते महा-लक्ष्मी, रत्न-कुण्डल-भूषिता . शिवस्यार्धाङ्गिनी चैव, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
नमस्कृत्य महा-दुर्गा, भयात्तु तारिणीं शिवां . महा-दुःख-हरां चैव, शीघ्रं मोचं ददातु मे ..
.. फल-श्रुति ..
इदं स्तोत्रं महा-पुण्यं, यः पठेन्नित्यमेव च .
सर्व-बन्ध-विनिर्मुक्तो, मोक्षं च लभते क्षणात् ..
हवन-विधिः- कमल-गट्टा, गाय का घी, शुद्ध शहद, मिश्री, हल्दी एवं लाल-चन्दन के चूर्ण को मिश्रित कर
उससे जप-संख्या का दशांश हवन करना चाहिए .
श्री भैरव मन्त्र
ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत.
कमर बिराज मस्तङ्गा लँगोट, घूँघर-माल. हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल.
मस्तक बिराज तिलक सिन्दूर. शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ.
ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत.
नित उठ करो आदेश-आदेश.”
विधिः पञ्चोपचार से पूजन. रविवार से शुरु करके २१ दिन तक मृत्तिका की मणियों की माला से नित्य अट्ठाइस (२८) जप करे. भोग में गुड़ व तेल का शीरा तथा उड़द का दही-बड़ा चढ़ाए
और पूजा-जप के बाद उसे काले श्वान को खिलाए.
यह प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है.
….दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र
“डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड. प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड.
खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका. तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग.
चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त.
जय आदि-शक्ति. जय कालका खपर-धनी.
जय मचकुट छन्दनी देव.जय-जय महिरा, जय मरदिनी.
जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी.
जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी. अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी.
बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ..”
विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए
अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे.
कम या ज्यादा न करे. जगदम्बा के दर्शन होते हैं.
…“डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड. प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड.
खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका. तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग.
चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त.
जय आदि-शक्ति. जय कालका खपर-धनी.
जय मचकुट छन्दनी देव. जय-जय महिरा, जय मरदिनी.
जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी.
जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी. अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी.
बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ..”
विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित
रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे.…कम या ज्यादा न करे. जगदम्बा के दर्शन होते हैं.
अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी.
पूरण करो अब माता कामना हमारी..
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री.
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार.
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार..
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान.
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान..
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै. ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा.”
विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए. ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे. मन्त्र का १०८ बार जप करे. ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे. नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे. प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे. इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी. प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे.
“ॐ काली-काली महा-काली कण्टक-विनाशिनी रोम-रोम रक्षतु सर्वं मे रक्षन्तु हीं हीं छा चारक..”
विधिः चेत्र या आश्विन-शुक्ल-प्रतिपदा से नवमी तक देवी का व्रत करे. उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करे. जप के बाद इसी मन्त्र से १०८ आहुति से. घी, धूप, सरल काष्ठ, सावाँ, सरसों, सफेद-चन्दन का चूरा, तिल, सुपारी, कमल-गट्टा, जौ (यव), इलायची, बादाम, गरी, छुहारा, चिरौंजी, खाँड़ मिलाकर साकल्य बनाए. सम्पूर्ण हवन-सामग्री को नई हांड़ी में रखे. भूमि पर शयन करे. समस्त जप-पूजन-हवन रात्रि में ११ से २ बजे के बीच करे. देवी की कृपा-प्राप्ति होगी तथा रोजाना अपने दोनों की हथेली पर 8 बार मन्त्र बोलकर फूक मारे व हाथो को पूरे शरीर पर फेरे इससे उपरी बाधा – तांत्रिक अभिचार से रक्षा होती है !
.दिग्बन्धन
मन्त्र से जल, सरसों या पीले चावलों को ( अपने चारों ओर ) छोड़ें –
मन्त्र – ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः .
दक्षिणे पदमनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः .
उत्तरे श्री पति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः ॥
ऊर्ध्व रक्षतु धातावो ह्यधोऽनन्तश्च रक्षतु .
अनुक्तमपि यम् स्थानं रक्षतु ॥
अनुक्तमपियत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् .
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः ॥
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया .
अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् .
सर्वेषाम् विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे ॥
हनुमान वशीकरण मन्त्र सहित कुछ आवश्यक मन्त्र-प्रयोग
प्रेषित समय :22:06:16 PM / Mon, Nov 18th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर